उत्तर प्रदेश में कुम्हलाया कमल, राहुल-अखिलेश की जोड़ी ने BJP को दिया जोर का झटका

बीजेपी के लगातार स्वार्थ का गठबंधन के आरोप के बावजूद उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस ने सकारात्मक मुद्दों के साथ चुनाव प्रचार किया और लोगों के बीच उस एजेंडे को लेकर विश्वास बनाने में सफल रहे.

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नई दिल्ली:

लोकसभा चुनाव को लेकर मतगणना (Lok Sabha Election Result 2024) अंतिम दौर में है. नतीजों और रुझानों के मुताबिक, NDA 290 और इंडिया गठबंधन 230 सीटों के आसपास लीड करती दिख रही है. एनडीए और खासकर बीजेपी के लिए ये आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं. 370 सीटों का नारा देने वाली बीजेपी को उत्तर प्रदेश से बड़ी उम्मीद थी. उन्हें लग रहा था कि 80 में से 72 से 75 सीटें वो जीत सकती है, लेकिन नतीजों से उसे बड़ा झटका लगा है. यहां बीजेपी इंडिया गठबंधन से पिछड़ गई.

उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों पर सबकी निगाहें टिकी हुई थीं. पिछले दो आम चुनावों में मुकाबला एकतरफा रहा था. बीजेपी ने प्रचंड जीत हासिल की. 2014 में बीजेपी ने 71 सीटें तो 2019 में 62 सीटों पर जीत हासिल की थी. लेकिन इस बार के चुनाव में बीजेपी काफी पिछड़ गई है. नतीजों के मुताबिक 80 में 33 सीटों पर बीजेपी, जबकि 43 सीटों पर INDIA गठबंधन बढ़त बनाए हुए है.

पिछले दो लोकसभा चुनाव में शानदार नतीजे के बाद खासकर उत्तर प्रदेश में बीजेपी के हौसले बुलंद थे. राम मंदिर के उद्घाटन और रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद तो ऐसा लग रहा था कि बीजेपी यूपी में लगभग क्लीन स्वीप करेगी. लेकिन शायद अतिआत्मविश्वास और जनता की नब्ज पकड़ने में यहां बीजेपी नाकाम साबित हुई. बीजेपी को लगा कि हिंदुत्व और राम मंदिर का मुद्दा यूपी में सबसे बड़ा है, लेकिन विपक्ष के गठजोड़ और सामाजिक समीकरण साधने की रणनीति के आगे बीजेपी कमजोर साबित हुई.

तकरीबन डेढ़ साल पहले इंडिया गठबंधन बनने और उसे असल शक्ल लेने में देरी को लेकर काफी सवाल उठाए गए. लंबे समय तक यूपी में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन को लेकर उहापोह की स्थिति बनी रही, लेकिन अब रुझानों से ऐसे लग रहा है कि देर आए लेकिन दुरुस्त आए.

उत्तर प्रदेश को लेकर बीजेपी सबसे आश्वस्त दिख रही थी. एक तरफ सबसे लोकप्रिय नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा तो वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कुशल प्रशासक की छवि, डबल इंजन की इस जोड़ी की बदौलत बीजेपी पिछले दो चुनाव की तरह इस बार भी बड़े बहुमत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थी, लेकिन जमीनी हकीकत को समझने में नाकाम और रणनीति में चूक की वजह से अपने सबसे मजबूत गढ़ यूपी में बीजेपी इंडिया गठबंधन से पिछड़ गई. 

इंडिया गठबंधन बनने के बाद भी बीजेपी ने जहां बिहार में जेडीयू तो वहीं उत्तर प्रदेश में आरएलडी के जयंत चौधरी को अपने साथ लिया, ताकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एकमुश्त जाट वोट एनडीए के साथ आज जाए, हालांकि किसानों के बीच बीजेपी को लेकर नाराजगी थी और उसे खत्म करने के लिए बीजेपी ने हरसंभव कोशिश भी की. इसका उन्हें कुछ फायदा तो हुआ लेकिन उम्मीदों के मुताबिक नतीजों में नहीं बदल सका.

उत्तर प्रदेश में दो लड़कों की जोड़ी ने बीजेपी का सामना करने के लिए साथ आना तय किया, और फिर सामाजिक समीकरण साधने की कोशिश के साथ ही अखिलेश यादव की पीडीए (PDA) यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक की रणनीति काम कर गई. बीजेपी के लगातार स्वार्थ का गठबंधन के आरोप के बावजूद सपा और कांग्रेस ने सकारात्मक मुद्दों के साथ चुनाव प्रचार किया और लोगों के बीच उन मुद्दों को लेकर विश्वास बनाने में सफल रहे.

यूपी में 75 सीटों पर लड़ी थी बीजेपी

बीजेपी ने इस बार राज्य की 80 लोकसभा सीटों में से 75 पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे, जबकि गठबंधन सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) ने मिर्जापुर और रॉबर्ट्सगंज (सुरक्षित) सीट, सुभासपा ने घोसी और आरएलडी ने बिजनौर और बागपत से चुनाव लड़ा था. INDIA गठबंधन में शामिल कांग्रेस और सपा ने यूपी में साथ मिलकर चुनाव लड़ा. कांग्रेस ने 17 सीटों पर कैंडिडेट उतारे थे, तो वहीं बाकी सीटों पर सपा ने अपने उम्मीदवार खड़े किए थे.

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