Analysis: महाराष्ट्र में 'वंचित फैक्टर' ने बिगाड़ा MVA का खेल, आंकड़ों से समझिए कितना हुआ नुकसान

2019 के लोकसभा चुनाव में वंचित को जहां 41 लाख 32 हजार 446 वोट मिले थे. वहीं इस चुनाव में ये आंकड़ा घटकर 14 लाख 15 हजार 76 वोट पर पहुंच गया.

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नई दिल्ली:

लोकसभा चुनाव में इस बार महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी (MVA) ने बेहतर प्रदर्शन किया. प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन अघाड़ी अंतिम समय में इंडिया गठबंधन से बाहर निकल गई थी और अकेले चुनाव लड़ा था, हालांकि वो एक भी सीट नहीं जीत पायी. अकोला से चुनावी मैदान में उतरे प्रकाश अंबेडकर भी चुनाव हार गए. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या 'वंचित फैक्टर' महाराष्ट्र में बेअसर रहा? 38 सीटों पर लड़ी वंचित बहुजन अघाड़ी को 2019 की तुलना में क़रीब 27 लाख वोट कम पड़े, लेकिन नौ सीटों पर वंचित को जीत के अंतर से ज़्यादा वोट मिले, ऐसे में वंचित ने सीटों के नतीजों को कहीं ना कहीं प्रभावित किया.

आंकड़ों में साफ दिख रहा है कि महाविकास आघाडी के 4 उम्मीदवार वंचित के कारण हारे. वंचित बहुजन अघाड़ी अगर महाविकास अघाड़ी में शामिल हो जाती, तो महाराष्ट्र में महा-युति की तस्वीर और बिगड़ती नज़र आती.

पिछली बार की तुलना में वंचित को इस साल 27 लाख से ज़्यादा वोट घटे, दूसरे शब्दों में कहें तो आंकड़ों से साफ है कि जनता ने वंचितों को साफ तौर पर नकारा, लेकिन उन्हें मिले वोटों से अघाड़ी को चार सीटों पर झटका ज़रूर लगा. पिछली बार वंचित अघाड़ी के कारण कांग्रेस-राष्ट्रवादी पार्टी को 8 सीटों पर नुकसान उठाना पड़ा था. इस बार भी महाविकास अघाड़ी को वोटों के अभाव के कारण चार सीटों का नुकसान हुआ है.

वंचित बहुजन अघाड़ी की वजह से प्रदेश में दलित और मुसलमानों का वोट बंटा, कई जगह महा विकास अघाड़ी का गेम बिगड़ा. अकोला, बुलढाणा, हातकणंगले और उत्तर पश्चिम मुंबई में वंचित बहुजन के कारण महाविकास अघाड़ी को हार का सामना करना पड़ा.

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अकोला सीट पर खुद प्रकाश अंबेडकर खड़े हुए, इस वजह से यहां लड़ाई त्रिकोणीय रही. अंबेडकर को 2,76,747 वोट मिले और कांग्रेस के अभय पाटिल महज 40,626 वोटों से हार गए. अगर अंबेडकर महाविकास अघाड़ी से खड़े होते तो इस स्थान पर उनकी जीत होती या फिर अंबेडकर ने महाविकास अघाड़ी का समर्थन किया होता, तो कांग्रेस उम्मीदवार जीत जाता.

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बुलढाणा में भी ठाकरे गुट के नरेंद्र खेडेकर पर ऐसे ही गाज गिरी, वो 29 हजार 479 वोटों से हार हारे. यहां वंचित के वसंतराव मगर को 98 हजार 441 वोट मिले. अगर ये वोट खेडेकर को जाते तो उनकी जीत पक्की होती.

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हातकणंगले में ठाकरे उम्मीदवार सत्यजीत पाटिल महज 13 हजार 426 वोटों से हार गए. इस स्थान पर वंचित के उम्मीदवार डीसी पाटिल खड़े थे, उन्हें 32 हजार 696 वोट मिले. इसका असर ठाकरे गुट के उम्मीदवार पर पड़ा.

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उत्तर पश्चिम मुंबई में ठाकरे समूह के उम्मीदवार अमोल कीर्तिकर महज 48 वोटों से हार गए, जबकि इस क्षेत्र में वंचित के उम्मीदवार परमेश्वर रंशुर को 10 हजार 52 वोट मिले.

वंचित अघाड़ी ने सांगली, कोल्हापुर, बारामती और नागपुर जैसे चार निर्वाचन क्षेत्रों में महाविकास अघाड़ी का समर्थन किया था. इनमें से कोल्हापुर, बारामती और सांगली में महाविकास अघाड़ी को जीत मिली है. 

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में वंचित को जहां 41 लाख 32 हजार 446 वोट मिले थे. वहीं इस चुनाव में ये आंकड़ा घटकर 14 लाख 15 हजार 76 वोट पर पहुंच गया. यानी इस लोकसभा चुनाव में पिछले चुनाव की तुलना में अंबेडकर की पार्टी को 27 लाख से ज्यादा वोटों का नुकसान हुआ है.

राजनीतिक विश्लेषक सलीम ख़ान ने कहा कि वंचित बहुजन अघाड़ी को गठबंधन में ही लड़ना चाहिए था, इससे महायुति को और बड़ा नुक़सान पहुंचा पाते. साथ नहीं लड़ने से महाविकास अघाड़ी को नुक़सान हुआ, साथ ही प्रकाश अंबेडकर को भी, नहीं तो अकोला आराम से जीतते और महाराष्ट्र से इनका एक एमपी संसद में जाता. इन्होंने अपना भी नुकसान कर लिया.

अब तक वंचित के रहे कई वोटर भी मानते हैं कि उनका वोट बर्बाद ना हो, इसलिए गठबंधन को चुना. वोट कहीं बंट ना जाए इसलिए वंचित को नहीं दिया. हमें राहुल गांधी चाहिए था. नरेंद्र मोदी को हटाना था. इसलिए वोट बर्बाद होने नहीं दे सकते थे.

प्रकाश साथ होते तो एमवीए का प्रदर्शन और बेहतर होता
महाराष्ट्र में अगर महाविकास आघाडी को प्रकाश आंबेडकर का साथ मिलता, तो आघाडी 34 से ज्यादा सीटें जीत सकती थी. अकोला और हिंगोली को छोड़कर बाकी सभी जगहों पर वंचित को एक लाख से भी कम वोट मिले. 2024 में निराशाजनक प्रदर्शन ने वंचित बहुजन अघाड़ी के राजनीतिक भविष्य पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं.

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