एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) पिछले दो साल में महाराष्ट्र की राजनीति में ध्रुव तारे की तरह उभरे हैं. मराठा प्रदेश की तमाम सियासी चालें उनको ही केंद्र में रखकर चलीं जा रही हैं. शिवसेना में बगावत करने के बाद, मुख्यमंत्री बनने से लेकर लोकसभा चुनाव के परिणाम (Lok Sabha Election Result 2024) तक राजनीतिक विश्लेषक बार-बार उनके सियासी कद को मापते रहे हैं. आम चुनाव के नतीजों के बाद एक बार फिर से ये चर्चा तेज हो चली है कि एकनाथ शिंदे का असली शिवसेना का दावा कितना सही रहा?
दो साल पहले पार्टी में बगावत होने के बाद ये पहला ऐसा मौका था, जब एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे के गुट चुनाव में भिड़ रहे थे. लोकसभा चुनाव के नतीजों से कई सवालों के जवाब मिले हैं. लेकिन अब भी एक बड़ा सवाल बरकरार है कि असली शिवसेना किसकी है? उद्धव ठाकरे की या एकनाथ शिंदे की? इसकी असली परीक्षा विधानसभा चुनाव में होगी.
15 सीटों पर चुनाव लड़कर 7 पर जीती एकनाथ शिंदे की शिवसेना
लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने 15 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उनमें से उन्हें सात पर जीत मिली है, जिसमें सीएम शिंदे का राजनीतिक क्षेत्र ठाणे भी शामिल है, हालांकि वो मुंबई में अपने प्रतिद्वंद्वी शिवसेना (यूबीटी) से दो सीट हार गए. उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने 21 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसे 9 पर सफलता मिली.
वहीं एनसीपी की बात करें तो मूल शरद पवार की एनसीपी ने इस लोकसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन किया और 8 सीटों पर जीत दर्ज की, वहीं भतीजे अजित पवार की एनसीपी को महज 1 सीट हासिल हुई.
13 सीटों पर था शिवसेना के दोनों गुटों का सीधा मुकाबला
शिवसेना 15 सीट में से 13 पर अपनी प्रतिद्वंद्वी शिवसेना (यूबीटी) के साथ सीधे मुकाबले में थी और उनमें से छह सीट पर उसे जीत मिली है. ये सीट ठाणे, कल्याण, हातकणंगले, बुलढाणा, औरंगाबाद और मावल हैं. उसे मुंबई दक्षिण और मुंबई दक्षिण मध्य निर्वाचन क्षेत्रों में हार का सामना करना पड़ा, लेकिन मुंबई उत्तर पश्चिम सीट से उसके उम्मीदवार ने 48 मतों के मामूली अंतर से सीट बरकरार रखी. मुंबई में ही साल 1966 में शिवसेना का जन्म हुआ था.
एकनाथ शिंदे ने बताया सीटों के नुकसान का कारण
हालांकि एकनाथ शिंदे ने एनडीए द्वारा संविधान को बदलने से संबंधित विपक्ष का दुष्प्रचार और उम्मीदवारों की घोषणा में देरी को शिवसेना और उसके सहयोगियों को सीटों पर नुकसान का कारण बताया. उन्होंने कहा कि विपक्ष की वोटबैंक की राजनीति ने एनडीए के प्रदर्शन को प्रभावित किया. शिंदे ने कहा, ''विपक्षी दलों ने लगातार संविधान को बदलने का दुष्प्रचार किया. हम मतदाताओं में संदेह को दूर करने में नाकाम रहे और वोटबैंक की राजनीति के कारण भी हमें नुकसान हुआ.''
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में 'असली शिवसेना' की परीक्षा
हालांकि शिंदे की अगली चुनौती इस साल के अंत में होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव होंगे. ये चुनाव असल में तय करेगा कि 2022 में दो हिस्सों में बंटने वाली पार्टी का कौन सा गुट 'असली' शिवसेना है.
एकनाथ शिंदे ने कई बार ये बात दोहराई है कि उन्होंने बगावत इसलिए की, क्योंकि उद्धव ठाकरे ने शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे की विचारधारा को त्याग दिया था. वो मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते थे, लेकिन बाल ठाकरे की विचारधारा से समझौता होते देख उन्हें विद्रोह करना पड़ा. उन्होंने आरोप भी लगाया कि बालासाहेब ठाकरे पार्टी पदाधिकारियों को दोस्त मानते थे लेकिन उद्धव हमें घरेलू सहायक समझने लगे थे.
शिंदे जून 2022 में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना से अलग हो गए थे और उन्होंने भाजपा के समर्थन से सरकार बनाई.
कौन हैं एकनाथ शिंदे?
एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र की राजनीति में अब एक कद्दावर शख्सियत बन गए हैं. कभी ऑटो रिक्शा चलाने वाले शिंदे ने 1997 में पार्षद से राजनैतिक सफर की शुरुआत की. 2004, 2009, 2014 और 2019 में वो लगातार चार बार महाराष्ट्र विधानसभा में चुने गए. 2014 में जीत के बाद उन्हें शिवसेना विधायक दल का नेता चुना गया था, और फिर वो महाराष्ट्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे.
एक दौर था, जब एकनाथ शिंदे को ठाकरे परिवार का सबसे करीबी समझा जाता था, लेकिन बदले हालात में आज वे ठाकरे परिवार के कट्टर विरोधी हो गए हैं. बहरहाल, इसी सियासी रंजिश का नतीजा है कि वे आज महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं.
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