नोएडा (Noida) की गगनचुंबी इमारतों में लापरवाही से हादसों के मामले कम नहीं हो रहे हैं. आए दिन लिफ्ट हादसे सामने आते रहते हैं, जिनमें लोगों की मौत तक हो जाती है. 12 मई की रात को नोएडा के सेक्टर 137 स्थित पारस टिएरा सोसायटी (Paras Tierea Society) में टावर-5 की चौथी मंजिल पर एक लिफ्ट खराब हो गई. लिफ्ट अपने आप ऊपर की ओर जाने लगी जिससे अंदर खड़े लोग घबरा गए. ऐसे में जानते हैं कि लिफ्ट खराब होने का यह क्या मामला था और जान को खतरे में डालने वाले ऐसे हादसे क्यों बढ़ रहे हैं.
उन्होंने बताया कि जैसे ही हमने लिफ्ट में प्रवेश किया तो चार नंबर तक लिफ्ट सही चली लेकिन उसके बाद वह सीधे 25 नंबर टावर पर जाकर रुकी. हमने हाथ से दरवाजा खोला और नीचे उतर आए.
लिफ्ट में जाते हैं तो हमें डर लगता है : स्थानीय लोग
सोसाइटी के निवासियों ने बताया कि लिफ्ट तेज गति से ऊपर गई और 25वीं मंजिल की छत का जाल तोड़कर आधी लिफ्ट बाहर निकल गई. वहीं एक अन्य शख्स ने कहा कि लिफ्ट जब अटकती थी तो हमारी सांसें रुक जाती थीं. उन्होंने कहा कि यह समझ नहीं आ रहा है कि आज तक इस मसले को इतने हल्क तौर पर क्यों लिया गया है. उन्होंने कहा कि अब हम दहशत में हैं और लिफ्ट में जाते हैं तो हमें डर लगता है कि कहीं हमारे साथ यह हादसा न हो जाए.
बढते लिफ्ट हादसों ने लोगों में डर को बढ़ा दिया है. महानगरों की ऊंची-ऊंची इमारतों में रहने वालों की जिंदगी में लिफ्ट अहम हिस्सा है. बावजूद इसके हालिया घटनाओं से कई सवाल उठ रहे हैं. सोसाइटी में लिफ्ट की देखभाल आखिर किसकी जिम्मेदारी है. यह बड़ा सवाल है. ज्यादातर मामलों में सोसाइटी सदस्यों से फीस लेकर चलने वाली अपार्टमेंट ऑनर एसोसिएशन यानी एओए के मैनेजमेंट ही सुरक्षा और सफाई जैसे काम को देखते हैं.
लिफ्ट मेंटिनेंस के लिए सालाना जाते हैं एक करोड़ रुपये
सोसाइटी के सेक्रेट्री सुखपाल सिंह राणा ने बताया कि सोसाइटी में 69 लिफ्ट हैं. इनमें से ओटीज की 42 लिफ्ट और 27 लिफ्ट टीके एलिवेटर्स की हैं. सोसाइटी की लिफ्ट के मेंटिनेंस के लिए हर साल एक करोड़ रुपया जाता है. यह पेमेंट भी एडवांस में होता है. उन्होंने कहा कि सारे टावर में लिफ्ट खराब होती रहती है. हम इन कंपनियों को बार-बार मीटिंग के लिए बुलाते हैं, मेल लिखते हैं लेकिन इनका सही रेस्पोंस नहीं मिलता है.
एनडीटीवी ने जब पारस टियरा सोसाइटी के मैनेजमेंट से लिफ्ट की सालाना देखभाल के अनुबंध को देखना चाहा कि किन शर्तों पर करार हुआ है तो बताया गया कि दो कॉरपोरेट के बीच करार है, इसलिए कागजात नहीं दिखाए जा सकते हैं. सोसाइटी में रहने वाले लोग बताते हैं कि लिफ्ट में जो सर्टिफिकेट लगे हैं, उनमें न तो शर्तें लिखी हैं और न ही किसी के दस्तखत हैं.
ताज्जुब है कि हादसे के दूसरे दिन तक लिफ्ट की देखभाल करने वाली कंपनी ने अभी तक कोई टीम नहीं भेजी है.
उत्तर प्रदेश में लिफ्ट कानून बना, लेकिन लागू नहीं हो सका
फरवरी में उत्तर प्रदेश में लिफ्ट कानून पास हो गया है. हालांकि अभी भी उसके नियम नहीं बन पाए हैं और वो लागू नहीं हो पाया है. लिफ्ट एक्सपर्ट अनुराग अग्रवाल ने कहा कि जवाबदेही तो कानूनी ही होगी. उत्तर प्रदेश में फरवरी में ही सरकार लिफ्ट कानून को लेकर आई है, लेकिन इसके नियम नहीं बनाए गए हैं और वो अधिसूचित नहीं हुआ है.
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