लद्दाख के लिए पूर्ण राज्य की मांग को लेकर केंद्र से बातचीत रही नाकाम, गृहमंत्री से मुलाकात के बाद डेलीगेशन ने कहा

लद्दाख एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस ने संयुक्त रूप से लद्दाख के लिए राज्य का दर्जा और इसे छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग की है.

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डेलीगेशन में पूर्व बीजेपी सांसद थुपस्तान छेवांग (Thupstan Chhewang)शामिल हैं.
नई दिल्ली:

केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के लिए पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग को लेकर 6 सदस्यीय डेलीगेशन की केंद्र सरकार के साथ बातचीत फेल हो गई है. लद्दाख की सिविल सोसाइटी के नेताओं ने सोमवार को दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) से मुलाकात के बाद कहा कि उनकी बातचीत नाकाम रही है. डेलीगेशन में पूर्व बीजेपी सांसद थुपस्तान छेवांग (Thupstan Chhewang)शामिल हैं. लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन (LBA) के प्रमुख छेवांग केंद्र के साथ बातचीत की अगुवाई कर रहे थे.

लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष चेरिंग दोरजे लाक्रुक (Dorjay Lakruk) ने NDTV को बताया, "हमने अमित शाह से उनके आवास पर मुलाकात की. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि छठी अनुसूची के तहत न तो लद्दाख को राज्य का दर्जा दिया जा सकता है और न ही इसकी गारंटी दी जा सकती है. इसीलिए केंद्र के साथ हमारी बातचीत असफल रही है."

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तीसरे दौर की बातचीत के लिए गृह मंत्रालय ने बुलाया था दिल्ली
लाक्रुक के मुताबिक, डेलीगेशन तीसरे दौर की बातचीत के लिए गृह मंत्रालय के बुलावे पर दिल्ली आया था. उन्होंने कहा, "हमने शुरुआत में गृह मंत्रालय के अधिकारियों से मुलाकात की. फिर गृह मंत्री अमित शाह से मिलने उनके आवास पर गए."

सब-कमिटी के सदस्यों की ओर से जारी बयान में कहा गया है, "गृह मंत्री के साथ बैठक में कोई पॉजिटिव रिजल्ट नहीं निकला. इसलिए लद्दाख एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस के नेता अब भविष्य की कार्रवाई पर लोगों से परामर्श करेंगे."

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गृह मंत्रालय ने भी जारी किया बयान
उधर, गृह मंत्रालय ने एक प्रेस बयान में कहा, ''अमित शाह ने डेलीगेशन को आश्वासन दिया कि पीएम मोदी के नेतृत्व में सरकार केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को जरूरी संवैधानिक सुरक्षा मुहैया कराने के लिए प्रतिबद्ध है.'' बयान में कहा गया, "गृह मंत्री अमित शाह ने भरोसा दिया कि लद्दाख पर हाई पावर कमिटी ऐसे संवैधानिक सुरक्षा उपाय मुहैया करने के तौर-तरीकों पर चर्चा कर रही है."

गृह मंत्री ने कहा कि हाई पावर कमिटी के जरिए बने परामर्श तंत्र को इस क्षेत्र की अनूठी संस्कृति और भाषा की रक्षा के उपायों, भूमि और रोजगार की सुरक्षा, समावेशी विकास और रोजगार सृजन, एलएएचडीसी के सशक्तीकरण और जांच जैसे मुद्दों पर काम करना जारी रखना चाहिए. साथ ही सकारात्मक परिणामों के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपाय अपनाए जाने चाहिए."

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सोनम वांगचुक ने कही थी आमरण अनशन की बात
पिछले हफ्ते, लद्दाख के प्रमुख जलवायु कार्यकर्ता और मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित सोनम वांगचुक ने कहा था कि अगर गृह मंत्रालय के अधिकारियों के साथ बातचीत फेल हो जाती है, तो वह जीरो से माइनस के तापमान में आमरण अनशन करेंगे. वांगचुक पर ही आमिर खान की फिल्म थ्री इडियट्स बनी थी.

गृह मंत्रालय ने वैधता की जांच की जताई थी सहमति
इससे पहले, गृह मंत्रालय ने लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और इसे छठी अनुसूची के तहत शामिल करने की वैधता की जांच करने पर सहमति जताई थी. गृह मंत्रालय ने पिछले साल लद्दाख के लोगों की शिकायतों और मांगों को संबोधित करने के लिए एक हाई पवार कमिटी भी बनाई. गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय के नेतृत्व वाली इस कमिटी ने 4 दिसंबर को अपनी पहली बैठक की थी.

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लद्दाख एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस ने संयुक्त रूप से लद्दाख के लिए राज्य का दर्जा और इसे छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग की है. 

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आदिवासी आबादी की रक्षा करती है छठी अनुसूची
संविधान के अनुच्छेद 244 के तहत छठी अनुसूची आदिवासी आबादी की रक्षा करती है. इस अनुसूची से भूमि, सार्वजनिक स्वास्थ्य और कृषि पर कानून बनाने के लिए स्वायत्त विकास परिषदों के निर्माण की अनुमति मिलती है. अब तक, असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में 10 स्वायत्त परिषदें मौजूद हैं.

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दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए अपना अभियान इस बात पर केंद्रित कर रही है कि धारा 370 को निरस्त करने से जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दोनों को कैसे फायदा हुआ. एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, "लेकिन अगर वे चुनाव से ठीक पहले इस मांग को मान लेते हैं, तो यह उनके खिलाफ उल्टा असर होगा."

5 अगस्त 2019 को केंद्र ने आर्टिकल 370 के प्रावधानों को किया था निरस्त
5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाकर पूर्ण राज्य का दर्जा खत्म कर दिया था. इसके बाद जम्मू-कश्मीर को अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था. लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था.

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लेकिन इसके दो साल के अंदर ही लेह और कारगिल के लोगों को राजनीतिक तौर पर बेदखल किया हुआ महसूस करने लगे और तभी से केंद्र के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं.


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