कानून सतर्क लोगों की मदद करता है, न कि उनकी जो अधिकारों को लेकर लापरवाही बरतते हैं : SC

उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि कानून सतर्क लोगों की मदद करता है, न कि उनकी जो अपने अधिकारियों के प्रति लापरवाही बरतते हैं. न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर माधवन की पीठ ने बेंगलुरु में संपत्ति विवाद से जुड़े एक मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins
फाइल फोटो
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि कानून सतर्क लोगों की मदद करता है, न कि उनकी जो अपने अधिकारियों के प्रति लापरवाही बरतते हैं. न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर माधवन की पीठ ने बेंगलुरु में संपत्ति विवाद से जुड़े एक मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की.

कोर्ट ने अग्रिम राशि लौटाने का मना किया 

पीठ एक संपत्ति की कुल बिक्री राशि की पहली किस्त के रूप में चुकाई गई 20 लाख रुपये की राशि जब्त किए जाने से जुड़े मुद्दे पर सुनवाई कर रही थी. उसने मामले में प्रासंगिक ‘बयाना राशि' और ‘अग्रिम राशि' के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि कर्नाटक उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता को अग्रिम राशि लौटाने का आदेश देने से इनकार कर दिया, क्योंकि उसने मुकदमे में धन वापसी का कोई अनुरोध नहीं किया था. शीर्ष अदालत ने कहा कि यह स्थापित कानून है कि मुकदमे में सुनवाई के किसी भी चरण में संशोधन किया जा सकता है, ताकि वादी को बयाना राशि की वापसी सहित वैकल्पिक राहत हासिल करने का अधिकार मिल सके और अदालतों को ऐसे संशोधनों की अनुमति देने के लिए व्यापक न्यायिक विवेकाधिकार प्राप्त है. 

अग्रिम राशि लौटाने का नहीं हुआ अनुरोध 

पीठ ने विशिष्ट राहत अधिनियम 1963 के एक प्रावधान का हवाला दिया और कहा कि अदालतें स्वत: संज्ञान के आधार पर ऐसी राहत नहीं दे सकतीं. पीठ ने कहा कि संबंधित प्रावधान पर्याप्त रूप से व्यापक और लचीला है, जिससे याचिकाकर्ता को अपीलीय स्तर पर भी उक्त राहत के लिए मुकदमे में संशोधन का अनुरोध करने की इजाजत मिलती है. उसने कहा, “हालांकि, मुकदमे में संशोधन के लिए ऐसा कोई आवेदन न तो निचली अदालत में और न ही उच्च न्यायालय में प्रथम अपील पर सुनवाई के दौरान पेश किया गया. इसका मतलब यह है कि याचिकाकर्ता ने कभी भी अग्रिम राशि वापस दिलाने का अनुरोध नहीं किया.”

Advertisement

कानून सतर्क लोगों की मदद करता है

पीठ ने कहा, “यहां यह कहना उपयुक्त होगा कि कानून सतर्क लोगों की मदद करता है, न कि उनकी जो अपने अधिकारों को लेकर लापरवाही बरतते हैं.” शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के अगस्त 2021 के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया. पीठ ने कहा कि यह विवाद 55.50 लाख रुपये की कुल बिक्री राशि वाली एक संपत्ति के सिलसिले में जुलाई 2007 में किए गए बिक्री समझौते के विशिष्ट निष्पादन के दावे से पैदा हुआ था. उसने कहा कि समझौते के तहत 20 लाख रुपये का आंशिक भुगतान किया गया था और यह तय किया गया था कि अगले चार महीने में बाकी रकम अदा किए जाने के साथ ही बिक्री लेनदेन पूरा हो जाएगा.

Advertisement

न्यायालय ने अग्रिम और बयाना शब्द की परिभाषा बताई

शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि उसके विचारणीय एकमात्र सवाल यह था कि क्या याचिकाकर्ता कथित तौर पर “अग्रिम राशि” के रूप में चुकाए गए 20 लाख रुपये वापस पाने का हकदार है. पीठ ने कहा कि समझौते में अग्रिम राशि के संबंध में एक स्पष्ट खंड शामिल था, जिसमें कहा गया था कि खरीदार के समझौते की शर्तों को पूरा करने में चूकने की सूरत में अग्रिम भुगतान की गई राशि जब्त हो जाएगी.सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि “अग्रिम” शब्द का अर्थ किसी समझौते के पूर्ण भुगतान से पहले आंशिक रूप से चुकाई गई राशि से होता है, वहीं “बयाना” शब्द का अर्थ किसी समझौते को पक्का करने के मकसद से दी गई धनराशि से है, जो करार न होने पर जब्त कर ली जाती है, जबकि करार पूरा होने पर कुल कीमत में समायोजित कर ली जाती है. उसने कहा कि 20 लाख रुपये की राशि स्पष्ट रूप से “बयाना राशि” थी और यह करार के समुचित निष्पादन के लिए गारंटी की प्रकृति की थी.
 

Advertisement
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
Featured Video Of The Day
Haryana-Punjab Water Dispute: CM Nayab Singh Saini ने पंजाब के फैसले को बताया 'असंवैधानिक'
Topics mentioned in this article