बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र के दो अस्पतालों की भयावह स्थिति का स्वत: संज्ञान लिया है. इसमें नांदेड़ का वो अस्पताल भी शामिल है, जहां 72 घंटों में 16 बच्चों सहित 31 लोगों की मौत हो गई थी. मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की खंडपीठ ने राज्य सरकार को स्वास्थ्य के लिए बजटीय आवंटन का ब्योरा पेश करने का निर्देश दिया है.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने नांदेड़ मामले में सुमोटो याचिका पर सुनवाई करते हुए नांदेड़ के सरकारी अस्पताल में हो रही मौत को गंभीरता से लिया है. कल इस तत्काल सुनवाई होगी.
हाईकोर्ट ने राज्य के महाधिवक्ता वीरेंद्र सराफ को राज्य सरकार की भूमिका स्पष्ट करने का निर्देश दिया है.
इस मौके पर चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय ने कहा कि अगर मैन पावर की कमी और दवाओं की कमी से मौतें होंगी, तो इसे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
इससे पहले दिन में अधिवक्ता मोहित खन्ना ने पीठ को दी अर्जी में अनुरोध किया था कि वो सरकारी अस्पतालों में हुई मौतों पर स्वत: संज्ञान ले.
पीठ ने शुरुआत में खन्ना को निर्देश दिया कि वो याचिका दायर करे. अदालत ने कहा कि वह प्रभावी आदेश जारी करना चाहती है.
अदालत ने इसके साथ ही अधिवक्ता से कहा कि वह अस्पतालों में रिक्तियों, दवाओं की उपलब्धता, सरकार द्वारा खर्च की जाने वाली राशि आदि की जानकारी एकत्र करें.
हालांकि, दोपहर में अदालत ने कहा कि वह मामले पर स्वत: संज्ञान ले रही है और रेखांकित किया कि अस्पतालों के चिकित्सकों ने बिस्तर, कर्मियों और दवाओं की कमी को कारण बताया है जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता.
खन्ना ने अपनी अर्जी में कहा कि 30 सितंबर से अगले 48 घंटे में नांदेड़ के डॉ.शंकर राव चव्हाण शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल में नवजातों सहित कुल 31 लोगों की मौत हुई थी .
अर्जी में कहा गया कि छत्रपति संभाजीनगर के राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल में दो से तीन अक्टूबर के बीच नवजातों सहित 18 मरीजों की मौत दर्ज की गई थी.
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मंगलवार को कहा था कि उनकी सरकार ने नांदेड़ के अस्पताल में हुई मौतों को बहुत ही गंभीरता से लिया है और विस्तृत जांच रिपोर्ट आने के बाद उचित कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने अस्पताल में दवा एवं कर्मियों की कमी से भी इनकार किया है.