करगिल युद्ध के 25 साल: युद्ध के नायकों से दुश्मनों को धूल चटाने तक, जानें सबकुछ

Kargil War: साल 1999 की गर्मियों तक अधिकतर अनसुने नाम थे, जैसे तोलोलिंग, टाइगर हिल, द्रास, करगिल, मरपोला, बटालिक और अन्य.अंततः ये सभी जगहें सैन्य इतिहास में लड़ी गईं. कुछ सबसे अधिक ऊंचाई वाली लड़ाइयों के लिए मैदान बन गईं.

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कारगिल युद्ध के 25 साल.
दिल्ली:

Kargil War: आज से 25 साल पहले भारत को उत्तरी कश्मीर में एक अप्रत्याशित चुनौती का सामना करना पड़ा था.18 हजार फिट की ऊंचाई पर हुई घुसपैठ से नेशनल हाइवे 1ए पर खतरा पैदा हो गया था. इस हाइवे को श्रीनगर और लेह की लाइफलाइन माना जाता है. इस पूरे इलाके में केवल यही एक ऑलवेदर सड़क है. घुसपैठ करने वाले कोई आम घुसपैठिए नहीं थे. वे हथियारों से लैस पाकिस्तानी सेना के सैनिक थे. उन्हें नेशनल हाइवे 1A को काटने का लक्ष्य दिया गया था. इस लक्ष्य पर वे नियंत्रण रेखा से लगती ऊंची खाली जगहों पर बैठकर निशाना साध रहे थे. 

भारतीय सेना ने लद्दाख की महत्वपूर्ण पहाड़ियों पर कब्जा करने वाले पाकिस्तानी सैनिकों को पीछे धकेल दिया था और इस युद्ध में विजय हासिल की थी. करगिल विजय दिवस 1999 के युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की जीत को चिह्नित करने के लिए हर साल 26 जुलाई को मनाया जाता है. करगिल युद्ध की पूरी कहानी आप इस लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं.

भारतीय क्षेत्र में स्थित थीं ये चोटियां

सेना और वायु सेना के लिए आदेश स्पष्ट थे कि किसी भी कीमत पर घुसपैठियों को बेदखल कर भारतीय इलाके को खाली करना है. राष्ट्रीय राजमार्ग 1ए की रक्षा करनी है. यह सुनिश्चित करें कि करगिल की चोटियों पर पाकिस्तान फिर कभी कब्जा न कर पाए.  1999 की गर्मियों तक अधिकतर अनसुने नाम थे, जैसे तोलोलिंग, टाइगर हिल, द्रास, करगिल, मरपोला, बटालिक और अन्य.अंततः ये सभी जगहें सैन्य इतिहास में लड़ी गईं. कुछ सबसे अधिक ऊंचाई वाली लड़ाइयों के लिए मैदान बन गईं. उस समय एनडीटीवी वहां मौजूद रहकर टेलीविजन पर दिखाए गए भारत के पहले युद्ध के हर पहलू की रिपोर्टिंग कर रहा था. जमीन से भी और आसमान से भी.

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श्रीनगर: करगिल युद्ध के दौरान जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर एक प्रमुख लॉजिस्टिक हब था. भारतीय सेना के उत्तरी कमांड के लिए इसने मुख्य बेस के रूप में काम किया. सेना की उत्तरी कमांड ने ही पाकिस्तान की घुसपैठ के खिलाफ सैन्य कार्रवाई का समन्वय किया.  

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सोनमर्ग: यह श्रीनगर-लेह हाइवे पर स्थित एक सुंदर हिल स्टेशन है.करगिल युद्ध के दौरान सोनमर्ग भारतीय सैनिकों के लिए एक महत्वपूर्ण जगह थी. सोनमर्ग की द्रास सेक्टर से निकटता ने इसे सप्लाई और आवागमन के लिए एक महत्वपूर्ण बिंदु बना दिया. 

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द्रास (तोलोलिंग,टाइगर हिल): द्रास सेक्टर,रणनीतिक चोटियों टाइगर हिल (प्वाइंट 5140) और तोलोलिंग समेत, करगिल युद्ध का केंद्र था. इन ऊंचाइयों पर फिर से कब्जा करने के लिए पाकिस्तानी सेना से भीषण लड़ाई लड़ी गई. इस लड़ाई में 13 जून, 1999 को तोलोलिंग पर हुआ कब्जा इस लड़ाई का एक प्रमुख मोड़ था.

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काकसर: काकसर करगिल जिले का एक गांव था. भारतीय सैनिकों ने जब पाकिस्तानी घुसपैठियों को पीछे खदेड़ने की कोशिश की तो वहां बहुत जोरदार लड़ाई हुई थी. इस लड़ाई के शुरुआती चरण में काकसर पर कब्जा बहाल करना एक महत्वपूर्ण उद्देश्य था.

करगिल: करगिल कस्बा,करगिल जिले का मुख्यालय है.करगिल एक प्रमुख लॉजिस्टिक हब था.करगिल युद्ध का स्मारक यहीं बनाया गया.स्मारक को इस लड़ाई में अपना बलिदान देने वाले भारतीय सैनिकों के सम्मान में बनाया गया था.

बटालिक: सिंधु नदी के पूर्व में स्थित बटालिक सेक्टर में पाकिस्तानी सेना ने रणनीतिक महत्व की चोटियों पर कब्जा जमा लिया था. इस क्षेत्र ने इस लड़ाई में पाकिस्तानी सेना की प्रत्यक्ष भागीदारी को साबित किया. इन चोटियों पर फिर से कब्जा हासिल करने और इलाके को सुरक्षित बनाने के लिए भीषण लड़ाई हुई थी. 

लेह: भारतीय सेना को रसद और प्रशासनिक मदद पहुंचाने के लिए लेह ने एक महत्वपूर्ण रियर बेस के रूप में काम किया.

कब क्या हुआ जानें

तीन मई, 1999: स्थानीय चरहवाहों ने करगिल में भारतीय सेना को पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकवादियों की मौजूदगी की जानकारी दी.

पांच मई 1999: चरवाहों की शुरूआती रिपोर्टों के जवाब में भारतीय सेना के गश्ती दल भेजे गए.पाकिस्तानी सैनिकों ने पांच भारतीय सैनिकों को पकड़ कर उनकी हत्या कर दी. पाकिस्तानी सेना ने करगिल में भारतीय सेना के गोला-बारूद के ढेर को नष्ट कर दिया.

10 से 25 मई, 1999: इस दौरान द्रास, काकसर और मुस्कोह सेक्टर में भी घुसपैठ की खबरें मिलीं. भारत ने करगिल जिले की सुरक्षा मजबूत करने के लिए कश्मीर से और अधिक सैनिक भेजे. भारतीय सेना ने कब्जाई गई चोटियों पर अपना कब्जा बहाल करने के लिए 'ऑपरेशन विजय' शुरू किया.

26 मई 1999: भारतीय वायु सेना ने 'ऑपरेशन सफेद सागर'शुरू कर पाकिस्तानी कब्जों पर हवाई हमला शुरू कर दिया.\

27-28 मई, 1999: पाकिस्तानी बलों ने भारतीय वायुसेना के तीन लड़ाकू जहाजों (मिग-21, मिग-27 और एमआई-12) को मार गिराया.

एक जून, 1999: पाकिस्तान ने कश्मीर और लद्दाख में नेशनल हाइवे-1 पर गोलाबारी शुरू की.

पांच जून, 1999: भारत ने पाकिस्तानी सैनिकों के पास से बरामद किए गए कागजात सार्वजनिक किए. ये कागजात इस हमलें में उनकी संलिप्तता को प्रमाणित करते थे.

नौ जून, 1999: बटालिक सेक्टर में भारतीय सैनिकों ने दो महत्वपूर्ण चोटियों पर फिर से कब्जा जमाया.

13 जून 1999: जोरदार लड़ाई के बाद भारतीय सेना ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण द्रास सेक्टर के तोलोलिंग चोटी पर फिर से कब्जा जमा लिया.

चार जुलाई, 1999: भारतीय सेना ने द्रास सेक्टर में महत्वपूर्ण टाइगर हिल पर फिर से कब्जा जमाया.

पांच जुलाई, 1999: पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने करगिल से पाकिस्तानी सैनिकों को वापस हटाने की घोषणा की.

11-14 जुलाई, 1999: जब भारतीय सेना ने महत्वपूर्ण चोटियों पर कब्जा जमाया तो पाकिस्तानी सुरक्षा बल वहां से पीछे हट गए. 

26 जुलाई, 1999: भारतीय सेना ने सभी पाकिस्तानी बलों के वहां से चले जाने की घोषणा करते हुए 'ऑपरेशन विजय'को सफल बताया.

ये हैं करगिल की लड़ाई के हीरो

परमवीर चक्र (पीवीसी) विजेता

ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव

  • 18वीं ग्रेनेडियर: टाइगर हिल पर तीन रणनीतिक बंकरों पर कब्जा करने का कठिन लक्ष्य दिया गया था.
  • तीन गोलियां लगने के बाद भी उन्होंने लड़ना जारी रखा और दूसरे बंकर को तबाह कर अपनी प्लाटून को आगे बढ़ने का आदेश दिया.
  • इस अदम्य साहस और वीरता का प्रदर्शन करने के लिए उन्हें 'परम वीर चक्र'से सम्मानित किया गया. 

लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडेय- 1/11 गोरखा राइफल्स

  • 'परमवीर चक्र'हासिल करने के लक्ष्य के साथ ही सेना में शामिल हुए थे.
  • इनको बाटलिक सेक्टर से दुश्मन सैनिकों को हटाने का लक्ष्य दिया गया था.  इन्होंने घुसपैठियों को पीछे खदेड़ने के लिए भीषण गोलाबारी के बीच सिलसिलेवार हमले किए.
  • हमले में शहीद होने से पहले जुबार टॉप और खालुबार हिल पर कब्जा जमा लिया. मरणोपरांत 'परमवीर चक्र' से सम्मानित किए गए.

कैप्टन विक्रम बत्रा - 13 जेएके राइफल्स

  • 13 जेएके राइफल्स में दिसंबर 1997 में कमिशन मिला.
  • करगिल युद्ध के दौरान इनका कोडनेम 'शेर शाह' था. उन्होंने महत्वपूर्ण प्वाइंट 5140 पर कब्जा जमाया.
  • प्वाइंट 4875 पर कब्जा जमाने के लिए हुई लड़ाई में स्वेच्छा से भाग लिया.
  • प्वाइंट 4875 पर हुई लड़ाई में सात जुलाई 1999 को शहीद हो गए.
  • मिशन की सफलता के बाद 'ये दिल मांगे मोर' कहकर काफी मशहूर हुए.
  • मरणोपरांत 'परमवीर चक्र'से सम्मानित किया गया.

राइफलमैन संजय कुमार -13 जेएके राइफल्स

  • एरिया फ्लैट टॉप पर हुई लड़ाई में अदम्य साहस का परिचय दिया. 
  • दुश्नन के बंकर पर हमला कर तीन पाकिस्तानी सैनिकों ढेर कर दिया. 
  • तीन गोलियां लगने के बाद भी लड़ाई लड़ते रहे.
  • दुश्मन के मोर्चे पर तबतक कब्जा जमाए रखा,जबतक कि सहायता के लिए और सैनिक नहीं पहुंच गए. 
  • इस बहादुरी के लिए उन्हें 'परमवीर चक्र'से सम्मानित किया गया. 

महावीर चक्र (एमवीसी) विजेता

  • कैप्टन अनुज नैयर -17वीं जाट बटालियन.
  • टाइगर हिल पर दुश्मन के मोर्चे पर कब्जे के लिए चलाए गए अभियान का नेतृत्व किया. 
  • लड़ाई के दौरान सात जुलाई 1999 को शहीद हुए.

मेजर राजेश सिंह अधिकारी -18 ग्रेनिडियर

  • 18वीं ग्रेनियर बटालियन के कमांडर थे.
  • तोलोलिंग टॉप पर कब्जे की लड़ाई का नेतृत्व किया.
  • कार्रवाई के दौरान 30 मई 1999 को शहीद हुए.

कैप्टन गुरजिंदर सिंह सूरी -12 बिहार बटालियन

  • मुश्कोह घाटी में बिरजेन टॉप पर हमले का नेतृत्व किया.
  • नौ दिसंबर 1999 को लड़ाई के दौरान शहीद हो गए.

नायक दिगेंद्र कुमार -2 राजपूताना राइफल्स

  • ये उस समूह का हिस्सा थे,जिसे प्वाइंट 4875 (तोलोलिंग) पर कब्जा जमाने का काम सौंपा गया था.
  • एक हाथ में गोली लगने के बाद भी दूसरे हाथ में अपनी लाइट मशीनगन (एलएमजी) लेकर लगातार फायरिंग जारी रखी.
  • इस साहस और संकल्प का प्रदर्शन करने के लिए उन्हें'महावीर चक्र'से सम्मानित किया गया.  

लेफ्टिनेंट बलवान सिंह- 18 ग्रेनेडियर

  • यह उस घातक प्लाटून का हिस्सा थे,जिसे 3 जुलाई 1999 को उत्तर-पूर्व दिशा से टाइगर हिल पर हमले का लक्ष्य दिया गया था.
  • 16 हजार 500 फीट की ऊंचाई पर चोटी तक पहुंचने के लिए एक खतरनाक और अनिश्चित मार्ग पर 12 घंटे तक अपनी टीम का नेतृत्व किया.
  • इस दौरान तोपखाने उनकी टुकड़ी पर लगातार गोले बरसाते रहे.   
  • बुरी तरह घायल होने के बाद भी एक नजदीकी लड़ाई में दुश्मन के चार सैनिकों को मार डाला.
  • उनके इस प्रेरणादायक नेतृत्व और बहादुरी ने टाइगर हिल पर कब्जा जमाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.\
  • इस साहस और निस्वार्थ सेवा के लिए उन्हें 'महावीर चक्र'से सम्मानित किया गया.

नायक इमलियाकुम एओ - 2 नागा

  • नगालैंड के रहने वाले थे.
  • 2 नगा रेजिमेंट में काम किया.
  • मशकोह घाटी में अभियान के दौरान असाधारण बहादुरी का प्रदर्शन किया.
  • करगिल युद्ध के दौरान उनके कार्यों के लिए 'महावीर चक्र'से सम्मानित किया गया.
  • पहाड़ी इलाके के युद्ध कौशल के लिए जाने जाते हैं.

कैप्टन कीशिंग क्लिफोर्ड नोंग्रम -12 जेएके लाइट इन्फेंट्री

  • बाटलिक सेक्टर में प्वाइंट 4812 पर हुई लड़ाई का नेतृत्व किया.
  • इस दौरान एक जुलाई 1999 को शहीद हो गए.
  • बेहद ही चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में अपने नेतृत्व और साहस के लिए जाने जाते हैं.
  • मरणोपरांत 'महावीर चक्र'से सम्मानित किए गए.

कैप्टन नीकेझाकुओ केंगुरुसे -2 राजपूताना राइफल्स

  • द्रास सेक्टर में लड़ाई का नेतृत्व किया.
  • 28 जून 1999 को कार्रवाई में शहीद हुए.
  • मरणोपरांत 'महावीर चक्र'से सम्मानित किए गए.
  • उनके सहकर्मी उन्हें उनके निक नेम 'निबू' के नाम से पुकारते थे. 
  • पहाड़ों पर चढ़ने की महारत उनके लिए निर्णायक साबित हुई.

मेजर पद्मपाणि आचार्य -2 राजपूताना राइफल्स

  • 2 राजपूताना राइफल्स में कंपनी कमांडर थे.
  • तोलोलिंग की चोटी पर दुश्मन के एक मोर्चे पर कब्जा जमाने का लक्ष्य दिया गया था.
  • पाकिस्तानी गोलाबारी और गोलियों का सामना करते हुए मिशन को पूरा करने के बाद शहीद हो गए.
  • उनकी वीरता और काम के प्रति लगन के लिए उन्हें मरणोपरांत 'महावीर चक्र' से सम्मानित किया गया.

मेजर सोनम वांगचुक -लद्दाख स्काउट

  • चोरबत ला सब सेक्टर में अभियान का नेतृत्व किया.
  • रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चोरबत ला दर्रे को सुरक्षित करने में उन्होंने महत्वपूर्ण काम किया था.
  • करगिल युद्ध में उनकी भूमिका को देखते हुए 'महावीर चक्र' से सम्मानित किया गया.
  • वांगचुक को अधिक ऊंचाई वाले इलाके और अपने स्थानीय इलाके की असाधारण जानकारी के लिए जाना जाता है.

मेजर विवेक गुप्ता - 2 राजपूताना राइफल्स

  • द्रास सेक्टर में पाकिस्तानी घुसपैठियों के खिलाफ खतरनाक हमले का नेतृत्व किया.
  • इस कार्रवाई में शहीद होने से पहले दुश्मन के दो बंकरों पर कब्जा जमा लिया था. 
  • रेजिमेंट में नियुक्त होने के ठीक सात साल बाद लड़ते हुए शहीद हुए. 
  • इस बहादुरी और सर्वोच्च बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत 'महावीर चक्र' से सम्मानित किया गया.

टाइगर हिल (समुद्र तल से ऊंचाई 16 हजार 700 फीट)

टाइगर हिल उन सबसे ऊंची और रणनीतिक महत्व की चोटियों में से एक थी, जिस पर पाकिस्तानी सेना ने कब्जा कर लिया था.इस पर फिर से कब्जा जमाना काफी महत्वपूर्ण था, क्योंकि यह श्रीनगर-लेह राजमार्ग पर नजर रखने के एक सुविधाजनक जगह थी. टाइगर हिल पर हमले की योजना सावधानीपूर्वक बनाई गई थी. इसमें विषम परिस्थितियों में कई दिशाओं से किया जाने वाला हमला शामिल था. यह ऑपरेशन करगिल युद्ध में एक महत्वपूर्ण मोड़ था. यह भारतीय सैनिकों के दृढ़ संकल्प और उनकी बहादुरी का प्रतीक था.टाइगर हिल पर सफलतापूर्वक कब्जे ने भारतीय सेना के मनोबल को काफी बढ़ा दिया.इससे एक निर्णायक जीत हासिल हुई. 

इस रणभूमि के प्रमुख सैनिक

कैप्टन विक्रम बत्रा: टाइगर हिल पर सफल हमले में अहम भूमिका निभाई थी.इस महत्वपूर्ण जगह पर फिर कब्जा करने में उनके निडर नेतृत्व और बहादुरी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.उनकी बहादुरी को देखते हुए उन्हें मरणोपरांत 'परमवीर चक्र'से सम्मानित किया गया.

राइफलमैन संजय कुमार: टाइगर हिल पर हुई लड़ाई के दौरान उल्लेखनीय साहस का प्रदर्शन किया.दुश्मन के बंकरों को नष्ट कर दिया और घायल होने के बाद भी लड़ाई जारी रखी.उनके इस साहस ने ऑपरेशन की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.उन्हें 'परमवीर चक्र'से सम्मानित किया गया. 

तोललिंग (समुद्र तल से ऊंचाई 15 हजार फीट)

तोललिंग की लड़ाई करगिल युद्ध की एक महत्वपूर्ण लड़ाई थी.तोललिंग रिज पर पाकिस्तानी सेना ने भारी किलेबंदी की थी. राजमार्ग को सुरक्षित बनाने और लेह तक आपूर्ति लाइनों को बनाए रखने के लिए तोलोलिंग पर दोबारा कब्जा जमाना जरूरी था.इस लड़ाई के दौरान भारतीय सेनाओं को दुश्मन की भीषण गोलाबारी और कठिन इलाके का सामना करना पड़ा.कई हफ्तों की भीषण लड़ाई के बाद आखिरकार वे रिज पर कब्जा जमा पाने में सफल रहे.इस जीत से इस इलाके में भारतीय अभियानों को महत्वपूर्ण बढ़त मिली.इस जीत ने आगे की सफलताओं का मार्ग प्रशस्त किया. 

रणभूमि के प्रमुख सैनिक

मेजर राजेश सिंह अधिकारी: तोलोलिंग पर कब्जा करने के अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.उनके नेतृत्व कौशल और बहादुरी ने दुश्मन पर काबू पाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.उन्हें मरणोपरांत 'महावीर चक्र' से सम्मानित किया गया.

कैप्टन अनुज नैयर: युद्ध के दौरान असाधारण साहस और नेतृत्व का प्रदर्शन किया.अपने सैनिकों का आगे बढ़कर नेतृत्व किया और सर्वोच्च बलिदान दिया.रिज को सुरक्षित बनाने में उनका काम बहुत महत्वपूर्ण था.उन्हें मरणोपरांत 'महावीर चक्र'से सम्मानित किया गया. 

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