- मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस जीआर स्वामीनाथन के खिलाफ संसद में महाभियोग लाने का नोटिस दिया गया है
- जस्टिस स्वामीनाथन ने मदुरै के तिरुप्परनकुंद्रम मंदिर में दीप स्तंभ पर दीप जलाने की अनुमति दी थी
- रिटायर्ड जज जस्टिस सुधीर सक्सेना ने इस मुद्दे पर सियासत को न्यायिक स्वतंत्रता के लिए खतरनाक बताया है
मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस जी आर स्वामीनाथन को हटाने के लिए संसद में महाभियोग प्रस्ताव को लेकर सियासत गर्म है. जस्टिस स्वामीनाथन ने मदुरै के तिरुप्परनकुंद्रम में सुब्रमण्य स्वामी मंदिर के अधिकारियों को 'दीपथूण' (स्तंभ) पर दीप जलाने की अनुमति दी थी. आदेश पर तमिलनाडु से दिल्ली तक बवंडर मचा है. द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) के नेतृत्व में विपक्षी दलों के कई सांसदों ने मंगलवार को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को जस्टिस स्वामीनाथन को पद से हटाने के लिए एक प्रस्ताव लाने का नोटिस सौंपा.
जस्टिस स्वामीनाथन के फैसले पर राजनीति गरम
बीजेपी इस प्रस्ताव को कांग्रेस, डीएमके और अन्य पार्टियों का न्यायपालिका पर अभूतपूर्व और खतरनाक हमला करार दे रही है. पार्टी का आरोप है कि इस कदम से संवैधानिक संस्थानों और बहुसंख्यक समुदाय के धार्मिक अधिकारों के प्रति उसके रवैये को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा होती हैं. NDTV ने इसे लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस सुधीर सक्सेना से बात की. सक्सेना इस मुद्दे पर हो रही सियासत को न्यायिक स्वतंत्रता के लिए बेहद खतरनाक मानते हैं.
जस्टिस स्वामीनाथन के खिलाफ डीएमके ने 100 से अधिक सांसदों के दस्तखत वाला महाभियोग नोटिस लोकसभा स्पीकर को सौंपा है.
सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प है
जस्टिस स्वामीनाथन के पास इस मामले में क्या विकल्प हैं, इस सवाल पर रिटायर्ड जज जस्टिस सक्सेना कहते हैं,'ऐसे मामलों में जब जज का आदेश आता है तो उसके लिए कानूनी उपचार भी हैं. सुप्रीम कोर्ट में विशेष याचिका या फिर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर करने का प्रावधान है. जज की तरफ से यह दायर भी हुई है.'
'ऐसे महाभियोग नोटिस खतरनाक ट्रेंड'
जस्टिस सक्सेना कहते हैं कि जजों के आदेश पर अगर इस तरह महाभियोग के नोटिस दिए जाने लगेंगे, तो न्यायिक स्वतंत्रता खतरे में आ जाएगी. बात एक केस की नहीं है. ये भी हो सकता है कि जज साहब का आदेश सही हो या फिर सुप्रीम कोर्ट ही उस पर स्टे लगा दे. लेकिन यह भी सही है कि जज साहब के आदेश के बाद हिंसा भड़क सकती थी.
'जजों में डर पैदा करने की कोशिश'
जस्टिस सक्सेना महाभियोग को लेकर नेताओं की पहल को गलत कदम मानते हैं. वह कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट इतना सक्षम है कि वह इस मसले का समाधान निकाल सकता है. इस तरह से सियासी मोर्चा खोलने पर हिंदुस्तान के जजों में डर पैदा हो सकता है और मुमकिन है कि कई मामलों में वह चाहते हुए भी निष्पक्ष फैसला नहीं कर पाएं.
लोकसभा में सौंपा है महाभियोग नोटिस
बता दें कि डीएमके ने 100 से अधिक विपक्षी सांसदों के दस्तखत वाला महाभियोग नोटिस लोकसभा स्पीकर को सौंपा है. इस नोटिस में जस्टिस स्वामीनाथन पर आरोप लगाया गया कि उनके आचरण ने न्यायिक निष्पक्षता और पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं. उन पर एक वरिष्ठ वकील और एक खास समुदाय के वकीलों को अनुचित लाभ पहुंचाने का भी आरोप लगाया गया है. नोटिस में दावा किया गया है कि जस्टिस स्वामीनाथन के कई फैसले राजनीतिक विचारधारा से प्रभावित हैं, जो संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों का उल्लंघन है.
56 रिटायर्ड जज कर चुके हैं कड़ी निंदा
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टों के 56 पूर्व न्यायाधीशों ने साझा बयान जारी करके मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन के खिलाफ लाए जा रहे महाभियोग प्रस्ताव की कड़ी निंदा की थी. इनमें जस्टिस दीपक मिश्रा, रंजन गोगोई, एस.ए. बोबडे, डी.वाई. चंद्रचूड़ और मौजूदा CJI सूर्यकांत जैसे नामों का संदर्भ शामिल है. इस साझा बयान में कहा गया कि कुछ सांसदों और वरिष्ठ वकीलों द्वारा उठाया गया यह कदम राजनीतिक प्रेरित है और इसका मकसद न्यायपालिका को डराना है, जबकि महाभियोग जैसी संवैधानिक प्रक्रिया का इस्तेमाल केवल दुर्लभ और अत्यंत गंभीर मामलों में ही होना चाहिए.














