जस्टिस बीआर गवई के वे पांच फैसले जिनका हुआ सीधा असर, नोटबंदी से लेकर बुलडोजर न्याय तक

जस्टिस बीआर गवई ने 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ले ली है.जस्टिस गवई सुप्रीम कोर्ट के कई संविधान पीठ का हिस्सा रहे हैं. आइए जानते हैं उन पांच फैसलों के बार में, जिन्हें उन बेंच ने सुनाया जिसमें जस्टिस गवई शामिल रहे.

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नई दिल्ली:

जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ले ली है. राष्ट्रपति भवन में बुधवार को आयोजित एक संक्षिप्त समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जस्टिस गवई को शपथ दिलाई. उन्होंने हिंदी में शपथ ली.जस्टिस गवई को 24 मई, 2019 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था.इससे पहले वो बांबे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में जज के रूप में काम कर रहे थे. उनका कार्यकाल इस साल 23 नवंबर तक होगा.जस्टिस गवई सुप्रीम कोर्ट के कई संविधान पीठ का हिस्सा रहे हैं. इस दौरान वह कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा बने.आइए जानते है कुछ ऐसे ही फैसलों के बारे में.

नोटबंदी पर सरकार के फैसले को सही ठहराया

नरेंद्र मोदी सरकार ने आठ नवंबर 2016 में नोटबंदी करने का फैसला लिया था. सरकार ने पांच सौ और एक हजार रुपये के नोटों को बंद करने का फैसला लिया था. सरकार के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. सरकार के फैसले के खिलाफ देश के हाई कोर्टों में 50 से अधिक याचिकाएं दायर की गई थीं. सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई का फैसला किया. 16 दिसंबर 2016 को यह मामला संविधान पीठ को सौंपा गया. इस पीठ में जस्टिस एस अब्दुल नजीर, बीआर गवई, एएस बोपन्ना, वी रामसुब्रमण्यम और जस्टिस बीवी नागरत्ना शामिल थे. 

राष्ट्रपति भवन में जस्टिस बीआर गवई को सीजेआई की शपथ दिलातीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू.

सुनवाई के बाद इस पीठ ने चार-एक के बहुमत से फैसला सुनाते हुए नोटबंदी के फैसले को सही ठहराया था.जस्टिस बीवी नागरत्ना ने अल्पमत का फैसला दिया था.उन्होंने नोटबंदी के फैसले को गैरकानूनी बताया था. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि उनके फैसले का सरकार के पुराने फैसले पर कोई असर नहीं पड़ेगा. वहीं जस्टिस गवई ने अपने फैसले में कहा था कि नोटबंदी पर फैसला लेने के प्रॉसेस पर सवाल नहीं उठाए जा सकता है, क्योंकि सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने आपसी सहमति से फैसला लिया था. उन्होंने फैसले को कानूनन सही बताया था. उन्होंने कहा था कि नोटबंदी का मकसद हासिल हुआ या नहीं, इसका नोटबंदी के प्रॉसेस से कोई संबंध नहीं है. 

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जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाने पर फैसला

केंद्र सरकार ने पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटा दिया था. सरकार ने पूर्ण राज्य जम्मू कश्मीर को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख नाम के दो केंद्र शासित राज्यों में बांट दिया था.सरकार के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 23 याचिकाएं दायर की गई थीं. सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों के संवैधानिक पीठ ने इन याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की थी.इस पीठ में तत्काली सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस संजीव खन्ना शामिल थे. 

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इस संविधान पीठ ने 11 दिसंबर 2023 को सर्वसम्मति से सुनाए अपने फैसले में जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाने को कानून सम्मत बताया था.इस पीठ ने तीन फैसले दिए थे. पहला फैसला 352 पेज का था. जिसमें जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस गवई का मत शामिल है. दूसरा फैसला 121 पेज का है. उसमें जस्टिस कौल का मत है. तीसरा फैसला तीन पेज का है.उसमें जस्टिस खन्ना का मत शामिल है.अनुच्छेद-370 पर सभी पांच जजों ने एकमत होकर फैसला सुनाया. 

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देश के लिए कुछ अहम फैसले सुनाने वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंचों में शामिल रहे हैं जस्टिस बीआर गवई.

इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम फैसला

जस्टिस गवई पांच जजों की उस पीठ का भी हिस्सा रहे, जिसने राजनीतिक फंडिंग के लिए इस्तेमाल की जाने वाली इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया था. इस पीठ ने 15 फरवरी 2024 को सुनाए अपने फैसले में इलेक्टोरल बॉन्ड को अज्ञात रखना सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19 (1) (ए) का उल्लंघन बताया था.

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इलेक्टोरल बॉन्ड पर फैसला सुनाने वाले पीठ में तत्कालीन सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पादरवीला और जस्टिस मनोज मिश्र शामिल थे.इस पीठ ने बॉन्ड जारी करने वाले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को आदेश दिया था कि वो अब तक जारी किए गए इलेक्टोरल बॉन्ड की पूरी जानकारी चुनाव आयोग को उपलब्ध कराए. अदालत ने चुनाव आयोग को इन जानकारियों को सार्वजनिक करने का आदेश दिया था.

आरक्षण में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की पीठ ने दो अगस्त 2024 को सुनाए अपने फैसले में कहा था कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में सब-कैटेगरी को भी आरक्षण दिया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट के इस संवैधानिक पीठ ने छह बनाम एक के मत से यह फैसला सुनाया था.इस पीठ में जस्टिस बीआर गवई भी शामिल थे. उन्होंने कहा था कि सरकार यह नहीं कर सकती कि किसी एक जनजाति को पूरा आरक्षण दे दे. उन्होंने अपने फैसले में कहा था कि अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी)आरक्षण जैसे अनुसूचित जाति और जनजाति में भी क्रीमी लेयर आना चाहिए.लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि क्रीमी लेयर कैसे निर्धारित किया जाएगा.

इस बेंच में तत्कालीन सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस मनोज मिश्र, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा, जस्टिस बेला त्रिवेदी शामिल थे.जस्टिस बेला त्रिवेदी का फैसला बाकी के जजों से अलग था. 

देश के मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ लेने के बाद उपस्थित लोगों का अभिवादन करते जस्टिस बीआर गवई.

बुलडोर न्याय पर भी दिया फैसला

सुप्रीम कोर्ट के दो जजों के पीठ ने 14 नवंबर 2024 को देशभर में हो रहे बुलडोजर न्याय पर अपना फैसला सुनाया था.इसमें कहा गया था कि किसी व्यक्ति के घर या संपत्ति को केवल इसलिए तोड़ना कि वह अपराधी है या उन पर अपराध के आरोप हैं, कानून के खिलाफ है.अदलात ने अपने फैसले में नोटिस देने, सुनवाई करने और तोड़फोड़ के आदेश जारी करने से जुड़े कई दिशा-निर्देश दिए थे. 

इस फैसले को सुनाया था जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन के पीठ ने. पीठ ने कहा था कि घर या कोई जायदाद तोड़ने से पहले कम से कम 15 दिन का नोटिस देना होगा. यह नोटिस रजिस्टर्ड पोस्ट से भेजनी होगी. नोटिस को कथित अवैध ढांचे पर चिपकाना भी होगा.अदालत ने कहा था कि नोटिस पर पहले की तारीख न दी जाए.इससे बचने के लिए अदालत ने कहा था कि नोटिस की एक कॉपी कलेक्टर या जिला मजिस्ट्रेट को ईमेल पर भेजा जाए. 

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