जम्मू कश्मीर: राजौरी हमले के बाद सरकार ने सतर्कता समूहों को किया पुनर्जीवित, हथियार प्राप्त करने के लिए पंजीकरण करा रहे ग्रामीण

जम्मू कश्मीर के राजौरी में ग्राम रक्षा समितियों को पुनर्जीवित करने का काम युद्धस्तर पर किया जा रहा है. दो दशकों में यह पहली बार है जब सरकार इनका पुनर्गठन कर रही है.

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ग्राम रक्षा समूह के सदस्यों को हथियारों से लैस किया जा रहा है.
राजौरी:

आतंकी हमलों से बचाव के लिए सरकार द्वारा जम्मू और कश्मीर (Jammu Kashmir) के राजौरी में ग्राम रक्षा समितियों को पुनर्जीवित करने का काम युद्धस्तर पर चल रहा है. जिले में पहले से ही 5,000 सशस्त्र सदस्य हैं और अधिक ग्रामीण पुलिस से हथियार प्राप्त करने के लिए पंजीकरण करा रहे हैं. इन समितियों के नाम में बदलाव कर ग्राम रक्षा समूह (Village Defence Groups) या वीडीजी कर दिया गया है. यह दो दशकों में पहली बार है जब इतने बड़े पैमाने पर इसका पुनर्गठन किया जा रहा है. इसके प्रत्येक सदस्य को .303 राइफल और 100 राउंड से लैस किया जा रहा है. सरकार उन्हें एसएलआर राइफलों से भी लैस करने की योजना बना रही है.

इन समितियों का गठन करीब 30 साल पहले किया गया था. उस वक्त जम्मू कश्मीर में कानून-व्यवस्था चरमरा गई थी. यहां तक ​​उस वक्त प्रशासन की आम लोगों की रक्षा करने की जिम्मेदारी से बचने और ऐसे समूहों को हथियार देने के लिए आलोचना की गई थी. आखिरकार इन समितियों की भूमिका कम हो गई क्योंकि सुरक्षा बलों ने एक बार फिर अपना नियंत्रण हासिल कर लिया था. 

हालांकि हाल ही में राजौरी के डांगरी गांव में कुछ हिंदुओं - अल्पसंख्यक समुदाय पर हुए आतंकवादी हमले के बाद उन्हें फिर से तैयार किया जा रहा है. 

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राजौरी के पंचायत केंद्रों पर पुलिस हथियारों की जांच कर रही है और प्रशिक्षण की जरूरतों पर ध्यान दे रही है. युवा पुरुष उन हथियारों को ले रहे हैं जो मूल रूप से उनके माता-पिता और अन्य पुराने रिश्तेदारों को बहुत पहले दिए गए थे. 

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एक युवक टिंकू रैना ने कहा, ‘मैं यहां राइफल की सफाई कराने आया हूं. यह जांचने के लिए कि हमला होने पर मैं आतंकवादियों से निपटने के लिए तैयार हूं.‘ 20 वर्षीय युवक ने कहा कि वह अभी तक पुलिस रिकॉर्ड में एक समूह में नामांकित नहीं है, लेकिन अपने चाचा को आवंटित .303 राइफल ले जा रहा है.

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जोगिंदर सिंह एक अन्य महत्वाकांक्षी सदस्य हैं. एक आर्म्स चैकिंग कैंप में वह अपने चाचाओं को आवंटित दो राइफलें ले जा रहा था. उसने कहा, ‘मैं वीडीसी सदस्य बनना चाहता हूं ताकि मेरे नाम पर एक हथियार आवंटित किया जाए और मैं आतंकवादियों से लड़ सकूं.‘ 

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यहां तक ​​कि इन समूहों के कुछ पुराने सदस्य भी हार मानने को तैयार नहीं है, जिसमें से कई 60 की उम्र पार कर चुके हैं. उनका कहना है कि वे सदस्य बने रहेंगे. 

उनमें से एक ने कहा, ‘मैं 66 वर्ष का हूं, लेकिन मैं वीडीसी सदस्य के रूप में बना रहूंगा. मेरा घर जंगलों के पास है और हम वहां अकेले रह रहे हैं. अगर कोई (आतंकवादी) आता है, तो हम लड़ सकते है.‘  

अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों पर हमलों के बाद डोडा जिले में 1990 के दशक की शुरुआत में पहली बार वीडीसी की स्थापना की गई थी. इसके बाद ग्रामीणों को राजौरी और जम्मू क्षेत्र के अन्य जिलों में सशस्त्र किया गया. 

यहां पर करीब 28,000 ऐसे वीडीसी सदस्य हैं, जिनमें ज्यादातर हिंदू समुदाय से हैं. वहीं कुछ सिख और मुसलमान भी हैं. 

जिला पुलिस प्रमुख मोहम्मद असलम ने कहा, ‘हम उन्हें नए हथियार और गोला-बारूद दे रहे हैं, उनका कायाकल्प कर रहे हैं, उनके लिए फायरिंग अभ्यास सत्र आयोजित कर रहे हैं, आतंकवादियों को पकड़ने के लिए अभियान भी चल रहा है.‘ 

सरकार ने पिछले साल वीडीसी सदस्यों को 4,000 रुपये प्रति माह का मानदेय देने की घोषणा की थी, लेकिन अभी तक ऐसा नहीं किया गया है. 

हालांकि कई क्षेत्रों में वीडीसी सदस्यों को आवंटित हथियारों का दुरुपयोग भी चिंता का विषय बना हुआ है.

वीडीसी सदस्यों के खिलाफ विभिन्न जिलों में 200 से अधिक प्राथमिकी दर्ज हैं. इनमें हत्या, बलात्कार, दंगा और ड्रग्स के मामले शामिल हैं. 

डांगरी में जहां आतंकवादियों ने रविवार और सोमवार को हमलों में छह हिंदुओं की जान ले ली थी, वहां पर 72 सशस्त्र वीडीसी हैं. 

स्थानीय पंचायत का कहना है कि कोई भी आपराधिक मामलों का सामना नहीं कर रहा है और उन्हें हथियार आवंटित करने से पहले वे नए वीडीसी के बैकग्राउंड की जांच करेंगे. 

भाजपा नेता रहे सरपंच धीरज शर्मा ने कहा, ‘हम उन लोगों को हथियार नहीं देंगे जो शराब पी रहे हैं, या जिन्हें उच्च रक्तचाप है.‘ 

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