महाराष्ट्र के मंत्री अनिल देशमुख और नवाब मलिक (Nawab Malik) की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई. कोर्ट ने सुनवाई के बाद फैसला सुनाते हुए दोनों नेताओं की किसी तरह की राहत देने से मना कर दिया है. लिहाजा, अब अनिल देशमुख और नवाब मलिक विधान परिषद के चुनाव में अब वोट नहीं डाल पाएंगे. इससे पहले कोर्ट में सीनियर एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा ने बहस शुरू की. बेंच ने पूछा कि दोनों महाराष्ट्र सरकार में मंत्री हैं . अरोड़ा ने कहा कि हमने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है. हम जमानत पर रिहाई नहीं मांग रहे हैं . हम कस्टडी में वोट डालने की मांग कर रहे हैं . इसका खर्च भी हम उठाएंगे. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 62(5) में इसका प्रावधान है.
इस पर जस्टिस सीटी रविकुमार ने कहा कि ये अपवाद तब है, जब आप हिरासत में लिए गए हों. तब आप कर सकते हो, यदि आप पुलिस हिरासत में हैं तो आप इसके हकदार हो सकते हैं लेकिन यहां आप न्यायिक हिरासत में हैं. जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कहा कि आपको कब गिरफ्तार किया गया. ये तारीख प्रासंगिक है. अगर आपको वोट डालने से रोकने के लिए गिरफ्तार किया गया है तो ये बात अलग होगी. SG तुषार मेहता ने कहा कि एक को 2021 में गिरफ्तार किया गया था.
अरोड़ा ने कहा कि अगर मैं एक सामान्य नागरिक होता, तो मुझे वोट देने के लिए मशीनरी मांगने का अधिकार नहीं होता. लेकिन मैं एक निर्वाचित प्रतिनिधि हूं. हम दोनों लाखों मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं. लाखों लोगों ने हमें कानून बनाने का अधिकार दिया है. हम उन लाखों लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं. हमें वोट देने से नहीं रोका जाना चाहिए.
मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि ये तो हमारा संवैधानिक अधिकार है. कोर्ट ने तुरंत टोका कि ये वैधानिक अधिकार है. इस पर फिर मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि वोट देने का अधिकार हमारा मौलिक अधिकार भले न हो लेकिन संवैधानिक अधिकार तो है ही. मो शहाबुद्दीन के वोट देने का जिक्र करते हुए अरोड़ा ने कहा कि उनको भी उपराष्ट्रपति चुनाव में तिहाड़ जेल से लाकर वोट दिलवाया गया था. कोर्ट ने कहा कि ये परिस्थिति और तथ्यों पर निर्भर करता है कि चुनाव में वोट की वैल्यू क्या होगी?
कोर्ट ने अरोड़ा से पूछा कि भले ही हम अभी आदेश पारित कर दें तो क्या आप जाकर वोट कर पाएंगे. अगर आप हमें टेलीग्राफिक ऑर्डर देते हैं, तो हमें मौका मिल सकता है. हम जनता के प्रतिनिधि हैं. हम उन लाखों लोगों की ओर से वोट करेंगे. जस्टिस धूलिया ने कहा कि लेकिन कानून में ऐसी कोई अलग व्याख्या नहीं है. अगर कानून में ऐसी अलग करने वाली व्याख्या है तो हमे दिखाइए कम से कम छोटा सा दिखाइए.
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा क्या आप बेल भी मांग रहे हैं ? अरोड़ा ने कहा कि हम बेल नहीं मांग रहे हैं. हम तो वोट देने के अधिकार का संरक्षण मांग रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि रिजल्ट कब आने हैं? आज शाम ही मतगणना होगी और 22 जून को चुनावी प्रक्रिया पूरी हो जाएगी. हाईकोर्ट का फैसला शुक्रवार देर रात अपलोड हुआ था.
कोर्ट ने कहा कि अभी भी हम आपको इजाजत दे भी देते हैं तो क्या आप शारीरिक रूप से जाकर वोट कर पाएंगे. अरोड़ा ने कहा कि आप इजाजत दें तो हममें से वोट दे पाएंगे. आप अपने आदेश के ऑपरेटिव पार्ट कोर्ट में बता दें. विस्तृत आदेश बाद में आ जाए. कोर्ट ने कहा कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम वोटरों में भेदभाव नहीं करता. वैसे दो-तीन दिन मतदान में रहते तो शायद हम आपको इजाजत दे देते.
अरोड़ा ने कहा कि हमने विकल्प के तौर पर अंतरिम बेल के लिए भी गुहार लगाई है. नहीं तो पुलिस के पहरे में हमे वोट देने का अधिकार मिले. कोर्ट ने कहा कि यदि आप किसी मामले में प्रिवेंटिव उपाय के तहत जेल में हैं तो आपको मतदान देने की इजाजत देने में कानून के तहत कोई रोक नहीं है, लेकिन आपका मामला मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ा हुआ है, जिसमें कानून के मुताबिक कोर्ट से राहत नही दी जा सकती.
अरोड़ा ने कहा कि कम निर्वाचित प्रतिनिधि के रूप में अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं. अगर हमें रोका गया तो ये पूरे क्षेत्र को वोट से वंचित करना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तो फिर कल को आप कहेंगे कि हमें जेल से रिहा करो क्योंकि मेरे निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नहीं किया जा रहा है.
कोर्ट ने कहा कि फर्ज करें कि किसी दल के दस बारह सदस्य जेल में हों तो बहुमत पर असर पड़ सकता है. लेकिन आप दो लोग हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि क्या संविधान में आम चुनाव और विधान मंडल चुनाव के लिए अलग-अलग नियम हैं? कोई अंतर किया गया है? मेहता ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 62 की व्याख्या करते हुए कहा कि अगर MLC चुनाव में छूट दी गई तो ये MLA चुनाव में भी इसका हवाला दिया जाएगा. शहाबुद्दीन को मिली वोटिंग की इजाजत उपराष्ट्रपति चुनाव में मिली थी.
तुषार मेहता ने कहा कि अगर इनके मतदान के अधिकार को संवैधानिक अधिकार भी मान लिया जाए तो भी इन्हें प्रतिबंधित किया जा सकता है. क्योंकि मौलिक अधिकारों को भी वाजिब प्रतिबंशिनक साथ सीमित किया जा सकता है. कैद के दौरान नागरिक की आजादी के साथ कहीं भी आने जाने का अधिकार भी तो सीमित होता है. ऐसे में इन दोनों के बैकग्राउंड को देखते हुए इन्हें वोट देने के लिए जेल से बाहर आने की इजाजत देने का कोई तुक नहीं है. अनुकूल चंद्र के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला बिल्कुल साफ है.
कोर्ट ने मीनाक्षी अरोड़ा से कहा कि आपके मामले में बुनियादी अधिकार और संवैधानिक अधिकार कैसे प्रभावित होते हैं? विधान परिषद के एक तिहाई सदस्य विधायकों की ओर से चुने जाते हैं. चुने गए विधायक वोट करते हैं. मैं विधायक हूं, वोटर हूं. इलेक्टोरल का हिस्सा हूं. संवैधानिक प्रावधान का हिस्सा हूं . मुझे संविधान से ये अधिकार मिला हुआ है.
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