इजरायल में भारतीयों के साथ कैसा होता है बर्ताव? वहां एक साल बिताने वाले NDTV के रिपोर्टर की जुबानी

कई भारतीय छात्र इजरायल में घूमने निकलते हैं तो एक सामान्‍य निर्देश यह होता है कि भारतीयों को ना ही इजरायल में कोई खतरा है और न ही फिलिस्‍तीन में खतरा है. ऐसे में भारतीयों को न खाने पीने की चिंता है और न रहने की.

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जंग का माहौल है तो जो खतरा सबके लिए है वो भारतीयों के लिए भी है.
नई दिल्‍ली:

इजरायल और हमास की जंग (Israel Hamas War) हर गुजरते दिन के साथ भीषण और भीषण होती जा रही है. इजरायल में भारतीयों की भी अच्छी खासी तादाद है. वहां फंसे भारतीयों की 'ऑपरेशन अजय' (Operation Ajay) के तहत सरकार की ओर से वतन वापसी करवाई जा रही है. ऐसे में अब जिज्ञासा लोगों के मन में जरूर होगी कि आम भारतीय से इजरायल और फिलिस्‍तीन में कैसा सलूक किया जाता है. इस बारे में एनडीटीवी के रिपोर्टर मोहम्‍मद गजाली ने अपने अनुभव शेयर किए हैं, जिन्होंने वहां करीब एक साल तक रहकर पढ़ाई की है. मोहम्मद गजाली ने हाइफा शहर की यूनिवर्सिटी ऑफ हाइफा से 'पीस एंड कॉन्फ्लिक्‍ट मैनेजमेंट' में मास्‍टर्स किया है. इस दौरान उन्होंने इजरायल को करीब से देखा है.

1948 में इजरायल की स्‍थापना होती है और उस वक्‍त भारत को आजाद हुए भी बहुत ही कम वक्‍त हुआ था. भारत भी ब्रिटिश सरकार के शासन में आता था और वहां भी ब्रिटेन की ही हुकूमत थी. फिलिस्‍तीन को दो भागों में बांटकर ब्रिटिश सरकार ने वहां पर इजरायल की स्‍थापना की थी.

जहां इजरायल के पहले प्रधानमंत्री डेविन बेन गुरियन थे तो पंडित जवाहरलाल नेहरू ने प्रधानमंत्री के रूप में भारत की कमान संभाली थी. जानकारों का मानना है कि दोनों ही बेहद दूरदर्शी नेता थे और अपने देश को आगे ले जाने के शुरुआती दौर में थे. 

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इजरायल के क्‍लासिफाइड डॉक्‍यूमेंट को जब सार्वजनिक किया गया तो उससे पता चलता है कि दोनों नेता चिट्ठी के माध्‍यम से एक दूसरे के संपर्क में थे. 1962 के युद्ध के वक्‍त पंडित नेहरू ने इजरायल से सैन्‍य हथियार मंगाने की बात की थी. हालांकि उनकी शर्त थी कि जिस जहाज से वो हथियार आएंगे, उस पर इजरायल का झंडा नहीं होगा. जिससे अरब मुल्‍कों के साथ भारत के जो रिश्‍ते हैं, उनमें कड़वाहट न आ जाए. हालांकि इजरायल के प्रधानमंत्री ने साफ कह दिया था कि मदद चाहिए तो उस पर इजरायल का झंडा लगा होगा. इसके बाद नेहरू को उनकी बात माननी पड़ी थी. 

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वहीं 1971 के युद्ध के वक्‍त भी इजरायल ने भारत की मदद की थी. तत्‍कालीन प्रधानमंत्री गोल्‍डा मेयर से भारत ने मदद मांगी थी और भारत को हथियार मुहैया कराए थे.

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इजरायल और भारत के रिश्‍तों में पिछले कुछ सालों में गर्मजोशी देखी गई है. खासतौर पर नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से. पीएम मोदी ने 2017 में इजरायल का दौरा किया था. नरेंद्र मोदी भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने इजरायल का दौरा किया है. तब से दोनों देशों के रिश्‍ते और बेहतर हुए हैं और दोनों देशों के बीच कई एमओयू साइन हुए हैं. इसका असर इजरायल जाने वाले आम भारतीयों पर भी पड़ा है और लोग भारतीयों से गर्मजोशी से मिलते हैं. 

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इजरायल में भारतीयों के साथ नहीं सुनी अप्रिय घटना 

गजाली के मुताबिक, इजरायल में हर तरह की फल-सब्‍जी उगाई और मुहैया होती है. इसलिए भारतीयों को खाने और रहने की कोई दिक्‍कत नहीं होती है. साथ ही उन्‍होंने बताया कि इजरायल में भारतीयों के साथ कभी कोई अप्रिय घटना सुनने में नहीं आई है. भारत के कई यहूदी पलायन कर इजरायल में रहने गए हैं.

उन्‍होंने बताया कि फिलिस्‍तीन को लेकर भारत का रुख एकदम साफ है. भारत का मानना है कि हिंसा नहीं होनी चाहिए और दोनों देशों के बीच शांति वार्ता होती रहनी चाहिए. साथ ही भारत फिलिस्‍तीन को संयुक्‍त राष्‍ट्र के जरिये मदद भी देता रहता है. आंकड़ों के मुताबिक, 2018 के बाद कई अरब डॉलर भारत ने फिलिस्‍तीन की मदद के लिए दिए हैं. फिलिस्‍तीन के इलाकों के कई विश्वविद्यालयों में भारत आर्थिक मदद मुहैया कराता है, जिससे बच्‍चों को स्‍कॉलरशिप दी जा सके और कई फिलिस्‍तीनी छात्र भारत में पढ़ने के लिए भी आते हैं. 

भारतीयों को न इजरायल में खतरा, न फिलिस्‍तीन में 

उन्‍होंने बताया कि कई भारतीय छात्र इजरायल में घूमने निकलते हैं तो एक सामान्‍य निर्देश यह होता है कि भारतीयों को ना ही इजरायल में कोई खतरा है और न ही फिलिस्‍तीन में खतरा है. ऐसे में भारतीयों को न खाने पीने की चिंता है और न रहने की. दोनों ही मुल्‍कों में किसी तरह से ऐसा नहीं है कि भारतीयों को कोई खतरा हो. हालांकि जंग का माहौल है तो जो खतरा सबके लिए है वो भारतीयों के लिए भी है. बहुत से लोग वहां के धार्मिक स्‍थलों पर भी जाते हैं. 

हिंदुस्‍तान के लोगों के साथ वहां पर न कोई भेदभाव होता है और न ही भारतीयों को वहां पर कोई खतरा महसूस होगा.

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