अफगानिस्तान के साथ रिश्ते सुधारने की दिशा में भारत ने एक बड़ा कदम उठाया है. भारत के किसी अधिकारी ने पहली बार आधिकारिक तौर पर अफगानिस्तान के रक्षा मंत्री मोहम्मद याकूब मुजाहिद से मुलाकात की. याकूब तालिबान के पूर्व सुप्रीम मुल्ला उमर के बेटे हैं.काबुल में बुधवार को उनसे विदेश मंत्रालय में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान से जुड़े मामले देखने वाले संयुक्त सचिव जेपी सिंह ने मुलाकात की. इस मुलाकात के बाद तालिबान सरकार ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर कहा कि दोनों देशों ने द्विपक्षीय रिश्तों को और मजबूत बनाने पर चर्चा की.
भारत-अफगानिस्तान संबंध
अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार को इस्लामिक एमिरेट्स ऑफ अफगानिस्तान के नाम से जाना जाता है. तालिबान ने हथियार के दम पर अगस्त 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता हथियाई थी. अफगानिस्तान के दौरे पर गए जेपी सिंह ने तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी और अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई से भी मुलाकात की.
बुधवार को काबुल में जेपी सिंह और मोहम्मद याकूब मुजाहिद की द्विपक्षीय मुलाकात के बाद तालिबान के राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्रालय ने एक्स पर लिखा कि नेशनल डिफेंस मिनिस्ट्री के प्रशासक ने अपने ऑफिस में भारत से आए प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की.बैठक के दौरान दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय संबंधों, खासतौर पर मानवीय सहयोग का दायरा बढ़ाने की इच्छा जताई. इसके अलावा अफगानिस्तान और भारत के संपर्कों को और बढ़ाने पर चर्चा की.याकूब भारत के साथ रक्षा संबंधों को मतबूत करने की इच्छा पहले ही जता चुके हैं.
भारत का अफगानिस्तान में हित
जेपी सिंह का इस साल यह दूसरा अफगानिस्तान दौरा था.इससे पहले उन्होंने मार्च में भी काबुल की यात्रा की थी. इस दौरान उन्होंने काबुल में मुत्ताकी और करजई से मुलाकात की थी. तालिबान के सत्ता संभालने के बाद भारतीय अधिकारी कम से कम पांच बार अफगानिस्तान की यात्रा कर चुके हैं.इस तरह की पहली यात्रा जून 2022 और दूसरी यात्रा अक्तूबर 2022 में हुई थी. इस साल जनवरी में काबुल में आयोजित अफगानिस्तान रिजनल कोऑपरेशन इनिशिएटिव में भी भारत शामिल हुआ था. अफगानिस्तान में सत्ता हथियाने के बाद यह तालिबान की ओर से पहला अतंरराष्ट्रीय आयोजन था. इसमें भारत समेत 11 देश शामिल हुए थे.
दिल्ली में अफगानिस्तान का दूतावास पिछले साल अक्तूबर से बंद है. दूतावास बंद होने से पहले कहा गया था कि भारत सरकार से उसे समर्थन नहीं मिल रहा है.दूतावास में तैनात अफगान अधिकारियों के आपसी विवाद और अंदरूनी कलह के बीच यह कदम उठाया गया था.इनमें से कुछ अधिकारी तालिबान प्रशासन के लिए काम करने के इच्छुक थे. दूतावास ने कामकाज करने के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण और मुश्किल बताया था.इसके बाद से ही तालिबान नई दिल्ली स्थित अफगान दूतावास में अपना एक राजनयिक नियुक्ति करने के लिए भारत से इजाजत मांग रहा है. उसका कहना है कि भारत और अफगानिस्तान के अच्छे संबंध दोनों देशों और उनके लोगों के लिए अच्छा है.यह तब हो रहा है जब अफगानिस्तान का अपने पड़ोसी पाकिस्तान के साथ संबंध लगातार खराब होते जा रहे हैं.वहीं चीन ने अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को मान्यता दे रखी है.चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस साल 30 जनवरी को चीन के लिए तालिबान के आधिकारिक राजदूत असदुल्लाह बिलाल करीमी का लेटर ऑफ क्रेडिंशियल स्वीकार किया था.
अफगानिस्तान में भारत का निवेश
काबुल में बुधवार का घटनाक्रम इस बात का परिचायक है कि भारत अफगानिस्तान में तालिबान सरकार को मान्यता दिए बिना भी मानवीय सहायता के साथ-साथ पुननिर्माण के काम में शामिल होने का इच्छुक है.तालिबान के सत्ता में आने से पहले भारत अफगानिस्तान में 400 से अधिक परियोजनाएं चला रहा था. ये परियोजनाएं अफगानिस्तान के सभी 34 प्रांतों में चल रही थीं.भारत ने अफगानिस्तान की संसद का भी निर्माण करवाया था. उसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था. भारत अफगानिस्तान ने शिक्षा और तकनीक के क्षेत्र में भी मदद की है. भारत ने अफागानिस्तान में करीब चार अरब डॉलर का निवेश किया हुआ है.
भारत ने अफगानिस्तान में तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है. काबुल स्थित भारतीय दूतावास 2022 से बंद है. वहां केवल एक तकनीकी टीम ही काम कर रही है.
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