- फरीद जकारिया के अनुसार भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौता संभव है यदि भारत इसे विशेष रणनीति से संभाले
- राष्ट्रपति ट्रंप सौदेबाजी को प्राथमिकता देते हैं और समझौते की घोषणा करना उनके लिए महत्वपूर्ण होता है
- मोदी और ट्रंप के बीच आखिरी बातचीत दिसंबर में हुई थी, जिससे व्यापार समझौते की संभावनाएं बनीं हैं
विदेश मामलों के विशेषज्ञ फरीद जकारिया ने एनडीटीवी को दिए एक विशेष इंटरव्यू में बताया कि अमेरिका के साथ व्यापार समझौता संभव है, बशर्ते भारत इसे एक विशेष तरीके से संभाले. उन्होंने कहा कि हालांकि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सौदेबाजी को प्राथमिकता देते हैं, लेकिन फिर भी समझौते की घोषणा करना चाहते हैं. एनडीटीवी के एडिटर-इन-चीफ राहुल कंवल से बात करते हुए फरीद जकारिया ने कहा कि समझौते में कुछ कठिनाइयां हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ट्रंप को राजी कर सकते हैं.
ज़कारिया ने कहा, "अगर प्रधानमंत्री मोदी उनसे कहें, देखिए, आप एक राजनेता हैं, मैं एक राजनेता हूं, मैं कृषि क्षेत्र में ये रियायतें नहीं दे सकता. मुझे चुनाव का सामना करना है. लेकिन बदले में, मैं ये चीजें कर सकता हूं और फिर आप जानते हैं कि ट्रंप किन चीजों की परवाह करते हैं - अमेरिका में निवेश, कुछ अमेरिकी उत्पाद खरीदना, शायद रक्षा उत्पाद, जो भी हो, मुझे लगता है कि समझौता हो सकता है."
उन्होंने कहा कि डोनाल्ड ट्रंप के साथ सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि "समझौते की घोषणा ही उनके लिए सब कुछ है."
उन्होंने आगे कहा, “आप घोषणा कर सकते हैं कि आप संयुक्त राज्य अमेरिका में 200 अरब डॉलर का निवेश करने जा रहे हैं. वह छह महीने बाद यह जांच नहीं करेगा कि आपने कितना निवेश किया है. अगर आप इस तरह के सभी सौदों के संबंध में उसके इतिहास को देखें, तो वह केवल सौदे की घोषणा चाहते हैं. उन्हें इसके बाद की बारीकियों की उतनी चिंता नहीं है.”
प्रधानमंत्री मोदी ने आखिरी बार 11 दिसंबर को डोनाल्ड ट्रंप से बात की थी, जिससे व्यापार समझौते को लेकर अटकलों को बल मिला है. अगस्त में भारत-अमेरिका संबंधों में आई भारी गिरावट के बाद से ये रुका हुआ है. यह गिरावट वाशिंगटन द्वारा नई दिल्ली के रूसी तेल की निरंतर खरीद पर भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने के बाद आई थी.
फरीद जकारिया से जब पूछा गया कि भारत-अमेरिका संबंधों में मौजूदा तनाव अस्थायी उथल-पुथल है या अधिक मौलिक बदलाव है, तो उन्होंने कहा कि मुझे उम्मीद है कि यह अस्थायी उथल-पुथल ही है.
उन्होंने कहा कि पिछले 25 सालों के घटनाक्रमों को देखते हुए, अमेरिका और भारत ने साझा मूल्यों और हितों पर आधारित संबंध बनाए हैं, जिसमें प्रवासी भारतीयों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. उन्होंने कहा कि मौजूदा स्थिति पूरी तरह से व्यापार से संबंधित है और यह अमेरिका और भारत दोनों के संरक्षणवादी रुख का परिणाम है, जिसे डोनल्ड ट्रम्प के अस्थिर और चंचल व्यक्तित्व ने और बढ़ा दिया है.
हालांकि यह अमेरिका-भारत के संबंधों के लिए एक बुरा दौर है, लेकिन मुझे लगता है कि अगर आप व्यापक संदर्भ में देखें, तो हम कहीं बेहतर स्थिति में हैं, खासकर अगर उद्देश्य दोनों देशों के उद्यमियों, प्रौद्योगिकीविदों, व्यापार और वैज्ञानिक संस्थानों के बीच संबंधों को मजबूत करना है. उन्होंने कहा, "मूल रूप से, उन सभी क्षेत्रों में हितों और मूल्यों का एक बड़ा कन्वर्जेंस है और हम सरकार-से-सरकार के बीच होने वाले छोटे विवाद की चिंता किए बिना इसे आगे बढ़ा सकते हैं."
ट्रंप के 'युद्ध' रोकने के दावे
इस साल की शुरुआत में ऑपरेशन सिंदूर के बाद ट्रंप के "भारत-पाकिस्तान युद्ध रोकने" के कई दावों के बारे में ज़कारिया ने कहा कि यह ट्रंप की "पूरी तरह से नासमझ नीति" है. उन्होंने कहा, "यह दावा करना एक पागलपन है कि उन्होंने दुनिया के सभी युद्ध रोक दिए हैं और इसलिए वे नोबेल पुरस्कार के हकदार हैं. लेकिन आप जानते हैं कि वे संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति हैं. भारत को अमेरिकी राष्ट्रपति की इस चिंता को दूर करने के लिए रचनात्मक तरीके अपनाने होंगे."
ज़कारिया ने कहा कि वास्तविकता यह है कि "ट्रंप कई मायनों में एक जटिल व्यक्ति हैं, लेकिन वे सौदेबाजी की कला को समझते हैं." उन्होंने कहा कि ट्रंप यह अच्छी तरह जानते हैं कि भारत को इस समझौते की ज़रूरत उनसे कहीं ज़्यादा है.
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उन्होंने आगे कहा, "हो सकता है कि वे गलत अनुमान लगा रहे हों और इस बात को न समझ पा रहे हों कि भारत बहुत स्वाभिमानी और राष्ट्रवादी देश है और कुछ काम करने के बजाय आर्थिक कष्ट सहना पसंद करेगा, लेकिन ट्रंप से यह कहने का कोई न कोई रचनात्मक तरीका ज़रूर होगा कि 'युद्धविराम कराने में आपका बहुत बड़ा योगदान रहा', बिना यह कहे कि आपने वास्तव में युद्धविराम कराया था. कूटनीति का यही सार है - ऐसे सूत्रबद्ध तरीके जिनसे दोनों पक्ष किसी न किसी तरह संतुष्ट महसूस करें."














