देश में नेशनल हेराल्ड का मामला चल रहा है. लेकिन इसका दूसरा ही पहलू भोपाल में देखने को मिल रहा है. नेशनल हेराल्ड को चलाने वाली कंपनी AJL को भोपाल में ज़मीन मिली थी कि यहां पर नेशनल हेराल्ड, कौमी आवाज़ और नवजीवन का दफ्तर बनेगा. इसी के आस-पास दूसरे मीडिया संस्थानों को भी ज़मीन मिली है थी. जिस ज़मीन पर दफ्तर बने हैं उनका भी कुछ और मामलों में इस्तेेमाल हो रहा है. जिस पर आज दुकानें हैं और मॉल हैं. यह सब बीजेपी के राज में हुआ है. जब इनकी रजिस्ट्री हो रही थी तब क्यों किसी ने नहीं देखा या जानबूझ कर अनदेखा किया गया?
मध्य प्रदेश सरकार ने अब ऐलान किया है कि 1981 में भोपाल-इंदौर में नेशनल हेराल्ड को मिली ज़मीन और बाद में लैंड यूज बदले जाने की जांच होगी. लगभग 41 साल पहले पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने एसोसिएट जनरल्स सहित कई अखबारों को दफ्तर के लिये भोपाल के प्रेस कॉम्प्लेक्स में लीज़ पर जमीन आवंटित की थी. इससे जुड़ी एक और कहानी उन कर्मचारियों-पत्रकारों की है जो सालों से अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं. जिस जमीन पर कई बड़ी-बड़ी दुकानें हैं कभी उसका नाम जवाहरलाल नेहरू के नाम पर रखे जाने की योजना थी, लेकिन कुछ सालों पहले उनके नाम का बोर्ड जमीन पर पड़ा हुआ था, वहां एक निजी बिल्डर का बोर्ड लग गया था.
पूरे मामले में एनडीटीवी को जो दस्तावेज मिले वो बताते हैं कि कैसे एजेएल के डायरेक्टर रहे विश्वबंधु गुप्ता ने 24 अगस्त 2001 में भोपाल प्रेस कॉम्प्लेक्स की प्रॉपर्टी (प्लॉट नंबर 1) की पॉवर ऑफ अटार्नी दिल्ली के बड़े बिल्डर नरेंद्र कुमार मित्तल को दी थी. उस वक्त प्रदेश में दिग्विजय सिंह की सरकार थी. मित्तल की कंपनी गंगा इंटरप्राइजेज को भोपाल के एमपी नगर जोन वन में करीब 1.14 एकड़ जमीन पर बिल्डिंग बनाने के अधिकार मिले थे. दिग्विजय सरकार में नगरीय प्रशासन मंत्री रहे तनवंत सिंह की पत्नी और बहू को बतौर वेंडर प्रोजेक्ट से जोड़ा गया था. 29 मार्च 2007 को भोपाल के दूसरे बिल्डर सौम्या होम्स को बतौर वेंडर प्रोजेक्ट से जोड़ लिया गया और उन्हें 46 प्रतिशत हिस्सेदारी दे दी गई. जमीन का कॉमर्शियल उपयोग नहीं हो सकता था फिर भी यहां सिटी सेंटर बन गया, शो रूम, दुकानें बेची गईं ये सब जब हो रहा था जब बीजेपी सत्ता में आ चुकी थी, और जहां ये हुआ वहां से भोपाल विकास प्राधिकरण का दफ्तर चंद कदमों पर है फिर भी सालों तक उसे जमीन आवंटन की शर्तों का खुला उल्लंघन नजर नहीं आया, नजर तब आया जब दुकान मालिक नामांतरण कराने उसके पास पहुंचे.
इस मामले में कांग्रेस के मीडिया विभाग के चेयरमैन के के मिश्रा ने कहा बिल्डिंग परमिशन से लेकर सबकुछ शिवराज सरकार ने दी है, सरकार तो बीजेपी की थी आंख मूंदकर बैठी थी कार्रवाई हो अधिकारियों पर. नामांतरण के आवेदनों को बीडीए ने निरस्त कर दिया. 80 के दशक में कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की सरकार ने राजधानी भोपाल में कई मीडिया संस्थानों को अखबारों के संचालन के लिए महाराणा प्रताप नगर के इंदिरा प्रेस कॉम्प्लेक्स में 27 एकड़ 22 डेसिमल जमीन तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने लीज पर दी थी. इन संस्थानों में एसोसिएटेट जर्नल्स लिमिटेड भी शामिल थी. एजेएल के हिंदी अखबार दैनिक नवजीवन के प्रकाशन के लिए भोपाल में करीब पौने दो एकड़ का प्लॉट सिर्फ 1 रुपए वर्गफीट पर आवंटित किया गया था. यहां प्रिंटिंग प्रेस लगाकर नवजीवन अखबार को छापा गया लेकिन 1992 में अखबार बंद हो गया. जिन अखबारों को ज़मीन मिली थी उनके लिये कई शर्तें थी सबसे अहम की जमीन का कोई और इस्तेमाल नहीं होगा. जिन्होंने यहां प्रॉपर्टी खरीदी वो सालों से परेशान हैं.
सरकार कह रही है वो संपत्ति सीज कर सकती है, साथ ही लीज शर्तों में गड़बड़ी पर कार्रवाई में हुई देरी पर वो सरकार को नहीं सिर्फ अधिकारियों को दोषी मानती है. नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने कहा यहां सीधा लीज की शर्तों का उल्लंघन हुआ है सीज करने पर स्टे नहीं है तो सरकार कर सकती है. ये बात सही है कि बीच में अधिकारियों के स्तर पर गड़बड़ी हुई है इसकी भी जांच करा रहे हैं इसके लिये कौन से अधिकारी दोषी हैं उनके खिलाफ भी कार्रवाई होगी.
तकलीफ अकेले दुकानदारों की नहीं, इस तमाम सियासत में प्रेस से जुड़े 89 परिवारों को भुला दिया गया जो कोर्ट से लेकर राहुल गांधी तक के पास न्याय की आस में पहुंचे, सोनिया गांधी-राहुल गांधी सबकी आय बढ़ती रही लेकिन इन्हें इंसाफ नहीं मिला, कानूनी लड़ाई लड़ते-लड़ते कई लोग दुनिया से जा चुके हैं, कई आर्थिक तौर पर बदहाल हो गये.
भोपाल संस्करण में काम करने वाले 89 कर्मचारी बताते हैं कि सैलरी ग्रेज्युटी नहीं मिली, कर्मचारियों को धोखे में रखकर जमीन बेची गई. आधे कर्मचारियों की मौत हो गई. उनके प्रेस की जमीन पर आलीशन इमारत बन गई ... महात्मा गांधी के वक्त छपे अखबार की ऐतिहासिक मशीन तक गायब हो गयी, चोरी की रिपोर्ट लिखवाई गई कर्मचारी पत्रकार धरना प्रदर्शन करते रहे लेकिन ना बकाया मिला ना इंसाफ.
कांग्रेस कह रही है, जांच की वजह से दिक्कत आई केन्द्र पैसा दे, राज्य सरकार कह रही है कांग्रेस ने धोखा किया वो न्याय देंगे. कांग्रेस नेता केके मिश्रा ने कहा मैं मानता हूं वो भुगतान उनका होना चाहिये ईडी ने केस लगा दिया शिथिल हुआ हमारे लीडरों के मन में बेईमानी होती जो जांच बंद हो गई उस जांच को ईडी ने फिर क्यों खोला, नेशनल हेराल्ड के कर्मचारियों का पैसा केन्द्र के माध्यम से करवाएं. वहीं नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने कहा उनके साथ न्याय करेंगे, ना सिर्फ कर्मचारी बल्कि फ्रीडम फाइटर्स के साथ कांग्रेस ने धोखा किया है.
बहरहाल अकेला एजेएल नहीं, कुल 39 अखबार मालिकों को भोपाल के प्रेस कॉम्प्लेक्स में 30 साल की लीज पर दी गई थी, ज्यादातर ने नियमों का पालन नहीं किया, सवाल ये है कि क्या सरकार सबपर कार्रवाई करेगी.आज भोपाल में एजेएल की जिस जमीन पर व्यवसायिक इमारतें खड़ी हैं वो कम से कम 200-250 करोड़ की हैं, 2014 से 2019 के बीच राहुल गांधी की संपत्ति लगभग 68 फीसद बढ़कर 15 करोड़ के पार पहुंच गई लेकिन 89 परिवारों का लगभग 3 करोड़ उन्हें नहीं मिला.
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