यूक्रेन से लौटे भारतीय मेडिकल स्‍टूडेंट्स के मुद्दे पर IMA ने लिखा पीएम मोदी को पत्र

यूक्रेन में छह साल का एमबीबीएस पाठ्यक्रम और दो साल का इंटर्नशिप प्रोग्राम है और यह भारत के निजी मेडिकल कॉलेजों की तुलना में काफी किफायती है. ऐसे में युद्धग्रस्त देश से लौट रहे हजारों छात्रों का भविष्य अधर में है.

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यूक्रेन के मेडिकल स्‍टूडेंट्स के मुद्दे पर आईएमए ने पीएम मोदी को पत्र लिखा है
नई दिल्‍ली:

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने यूक्रेन के मेडिकल कॉलेजों में विभिन चरणों में अंडर ग्रेजुएट कोर्स कर रहे स्‍टूडेंट्स के भविष्‍य पर मंडरा रहे अनिश्चितता के बादल को लेकर पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है. पत्र में कहा गया है कि इस यूरोपीय देश से निकाले गए सभी मेडिकल स्‍टूडेंट भारतीय नागरिक हैं और इन्‍होंने भारत में नियामक प्राधिकरणों (statutory authorities) से पात्रता प्रमाण पत्र प्राप्त करने के बाद वहां प्रवेश हासिल किया है. विभिन्‍न चरणों में एकमुश्‍त उपाय के रूप में इन्‍हें देश के मौजूदा मेडिकल संस्‍थानों में समायोजित किया जाएगा. इसके लिए मेडिकल छात्र के संबंधित गृह राज्य का ध्यान रखा जाए और उन्हें स्थानीय मेडिकल कॉलेजों में ही समायोजित किया जाए. लेकिन यह एक बार की जो तात्कालिक सुविधा दी जाए, उसे मेडिकल कॉलेज में बढ़ी हुई सीटों की क्षमता के तौर पर न मान लिया जाए. इसे सिर्फ भारतीय मेडिकल संस्थानों में उनके बाकी बचे एमबीबीएस कोर्स को पूरा कराने की प्रक्रिया के तौर पर रखा जाए.

आईएमए के सेक्रेटरी जनरल जयेश लेले ने कहा, '17 से 20 हजार छात्र अचानक छोड़ कर आए तो उनकी पढ़ाई  अधूरी रह जाएगी. उसको पूरा यहां भारत में करवाया जाए.ये पढ़ कर यहीं आने वाले थे.500 से ज्यादा मेडिकल कॉलेज हैं तो दाखिला मुमकिन है.मानवीय आधार पर यहां दाखिला दिया जाए. 20 हजार डॉक्टर हम खोना नहीं चाहते.ये करना मुमकिन है, मुश्किल नहीं. 20 हजार में कोई फर्स्ट ईयर,कोई सेकंड ईयर, कोई थर्ड ईयर में होगा. यदि हम सीट 5% भी बढ़ाते हैं तो इन्‍हें समायोजित किया जा सकता है.  इस मसले पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री से अपॉइंटमेंट भी मांगी है. छात्रों और उनके परिवार ने भी हमसे संपर्क किया है. IMA मानती है कि देश में डॉक्टर की ज़रूरत है और इन बच्चों को लेकर हमने तभी यह निर्णय लिया है.' 

गौरतलब है कि एनएमसी (विदेशी चिकित्सा स्नातक लाइसेंसधारी) विनियम, 2021 के प्रावधानों में ढील देने या यूक्रेन से लौटे मेडिकल छात्रों को भारत या विदेश में निजी कॉलेजों में अपना पाठ्यक्रम पूरा करने में सक्षम बनाने के विकल्प तलाशने की संभावनाओं पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विचार कर रहे हैं.सूत्रों ने कहा कि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी), स्वास्थ्य मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और नीति आयोग के अधिकारी जल्द ही महत्वपूर्ण बैठक करेंगे और मानवीय आधार पर इस मुद्दे की समीक्षा की जाएगी और सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जाएगा.एनएमसी (विदेशी चिकित्सा स्नातक लाइसेंसधारी) विनियम, 2021 के प्रावधानों के अनुसार पूरा पाठ्यक्रम, प्रशिक्षण और इंटर्नशिप या क्लर्कशिप पूरे अध्ययन के दौरान एक ही विदेशी चिकित्सा संस्थान में भारत के बाहर की जाएगी.

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प्रावधानों में यह भी कहा गया है कि चिकित्सा प्रशिक्षण और इंटर्नशिप का कोई भी हिस्सा भारत में या उस देश के अलावा किसी अन्य देश में नहीं किया जाएगा जहां से प्राथमिक चिकित्सा योग्यता प्राप्त की गई है.एक आधिकारिक सूत्र ने कहा कि वर्तमान में उन चिकित्सा छात्रों को समायोजित करने के लिए राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के नियमों के तहत कोई मानदंड और नियम नहीं हैं जो विदेश में पढ़ रहे थे और जो एक अकादमिक सत्र के बीच भारत लौट आए थे.सूत्र ने कहा, “हालांकि, ऐसी असाधारण स्थितियों को ध्यान में रखते हुए मानवीय आधार पर इस मुद्दे की समीक्षा की जाएगी और इसे सहानुभूतिपूर्वक देखा जाएगा.”आधिकारिक सूत्र ने कहा, “स्वास्थ्य मंत्रालय और आयोग में एनएमसी (विदेशी चिकित्सा स्नातक लाइसेंसधारी) विनियम, 2021 के प्रावधानों में छूट की संभावना का पता लगाने या ऐसे छात्रों को निजी मेडिकल कॉलेजों में अपना पाठ्यक्रम पूरा करने या विदेशों में कॉलेजों में स्थानांतरण की संभावनाओं का पता लगाने पर चर्चा जा रही हैं.”सूत्र के अनुसार रास्ता खोजने के लिए व्यापक चर्चा और संपूर्ण विचार-विमर्श की आवश्यकता है.यूक्रेन में छह साल का एमबीबीएस पाठ्यक्रम और दो साल का इंटर्नशिप प्रोग्राम है और यह भारत के निजी मेडिकल कॉलेजों की तुलना में काफी किफायती है. ऐसे में युद्धग्रस्त देश से लौट रहे हजारों छात्रों का भविष्य अधर में है. (भाषा से भी इनपुट )

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