राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) नेता अजित पवार ने कहा है कि वो मरते दम तक NCP में रहेंगे. हालांकि इस दावे के बाद भी उनके बीजेपी के साथ जाने की चर्चा रुक नहीं रही है. अजित पवार के निवास देवगिरी पर जयंत पाटील, छगन भुजबल, सुनील तटकरे और अनिल देशमुख जैसे पार्टी के बड़े नेताओं ने जाकर उसने मुलाकात की. सूत्रों के अनुसार इन नेताओं को शरद पवार ने अजित पवार का मन टटोलने के लिए भेजा था. साथ ही ये हिदायत देने के लिए भी कहा था कि बीजेपी के साथ जाने का कदम उनके लिए राजनीतिक रूप से आत्मघाती बन सकता है.
सवाल ये है कि बीजेपी के साथ जाने से अजित पवार को फायदा होगा या नुकसान ? जानकारों की माने तो फायदा कम नुकसान ज्यादा होगा. क्योंकि एक तो अजित पवार के साथ सिर्फ 15 विधायक हैं. जबकि दलबदल कानून से बचने के लिए एनसीपी के 53 विधायक में से दो तिहाई यानी 37 के करीब विधायकों की जरूरत होगी. मतलब बीजेपी के साथ जाने पर विधायकी जाने का खतरा है.
दूसरी बारामती में उन्हे सीधे शरद पवार से लड़ना होगा. शरद पवार के सामने उनका टिक पाना मुश्किल है. अजित पार्टी में भले लोकप्रिय हैं, लेकिन पकड़ आज भी शरद पवार की ही है.
साल 2019 में अजित पवार ने देवेंद्र फडणवीस के साथ मिलकर सुबह अचानक से उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी और सरकार बना ली थी. लेकिन शरद पवार को भनक लगते ही उन्होंने सभी बागी विधायकों को वापस बुला लिया था. हालांकि बाद में खुद शरद पवार ने खुलासा कर सबको हैरान कर दिया था कि अगर अजित पवार ने ऐसा नहीं किया होता, तो राज्य से राष्ट्रपति शासन नहीं हटता और महाविकास अघाड़ी की सरकार नहीं बन पाती. यानी ये अजित पवार की बगावत नहीं बल्कि शरद पवार की राजनीतिक चाल थी. सब कुछ उनकी मर्जी से हुआ था. लेकिन अब ऐसी कोई परिस्थिति नहीं है.
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बीजेपी अब फिर से अजित पवार पर भरोसा करेगी ये मुश्किल ही लगता है. ये जरूर है कि अजित पवार सहित कई एनसीपी विधायकों के ऊपर ईडी, आईटी और सीबीआई की जांच की तलवार लटकी हुई है. इसलिए जेल जाने से बचने के लिए बीजेपी के साथ जाना अच्छा साबित होगा, ऐसा मानने वाले विधायक अजित पवार के साथ हैं. लेकिन वो भी चाहते हैं कि शरद पवार की अनुमति के बिना जाना ठीक नहीं है. कहा ये भी जा रहा है कि शरद पवार ने भी सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने का इंतजार करने की सलाह दी है.
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