कर्नाटक हिजाब मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इस दौरान जस्टिस हेमंत गुप्ता ने शैक्षणिक संस्थाओं में हिजाब पहनने के अधिकार पर बहस कर रहे एक वकील से कहा, "आप इसे अतार्किक अंत तक नहीं ले जा सकते.अगर आप कहते हैं कि ड्रेस का अधिकार एक मौलिक अधिकार है तो अनड्रैस का अधिकार भी एक मौलिक अधिकार बन जाता है! " इस पर वकील देवदत्त कामत ने कहा, "मैं यहां घिसे-पिटे तर्क देने के लिए नहीं हूं. मैं एक बात साबित कर रहा हूं,
सुप्रीम कोर्ट और वकील के बीच लंबी बहस के बाद जस्टिस गुप्ता ने कहा, "यहां समस्या यह है कि एक विशेष समुदाय एक हेडस्कार्फ़ (हिजाब) पर जोर दे रहा है जबकि अन्य सभी समुदाय ड्रेस कोड का पालन कर रहे हैं. अन्य समुदाय के छात्र यह नहीं कह रहे हैं कि हम यह और वह पहनना चाहते हैं." जब वकील कामत ने कहा कि कई स्टूडेंट रद्राक्ष और क्रॉस को धार्मिक प्रतीक के तौर पर पहनते हैं तो जज ने कहा, "रुद्राक्ष, यज्ञोपवीत आदि बाहर से नहीं दिखता. वो सब यूनिफॉर्म के अंदर होते हैं.यूनिफॉर्म पर कोई असर नहीं दिखता. "
कामत ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता का मतलब यह नहीं है कि एक समुदाय के छात्र अपने धार्मिक चिन्ह का उपयोग नहीं करेंगे. इस पर जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि भले ही संविधान में सेक्युलर यानी धर्म निरपेक्ष शब्द 1976 में जोड़ा गया है लेकिन हम उससे पहले भी सेक्युलर ही थे. इस पर कामत ने दलील दी कि अनुच्छेद 19 में यह माना गया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार में पोशाक भी शामिल है. ट्रांसजेंडर मामले का हवाला देते हुए कहा कि यह कहा गया है कि पोशाक अनुच्छेद 19 (1) (ए) का एक हिस्सा है . उन्होंने कहा, "मैं यह नहीं कह रहा हूं कि मैं ड्रेस नहीं पहनूंगा.. लेकिन अगर ड्रेस के साथ मैं इसके साथ एक हेडस्कार्फ़ पहनता हूं..तो क्या यह ड्रेस कोड का उल्लंघन करेगा."जस्टिस गुप्ता ने कहा कि हमें बताएं कि अनुच्छेद 19 1 ए के दायरे में ड्रेस कहातक आता है. हम इसे मुद्दे को अतार्किक अंत तक नहीं ले जा सकते.. अगर आप कहते हैं कि पोशाक का अधिकार एक मौलिक अधिकार है तो कपड़े पहनने का अधिकार भी मौलिक अधिकार बन जाता है! महिलाएं सलवार कमीज पहनना चाहती हैं, पुरुष धोती कुर्ता पहनना चाहते हैं.. सभी परिधान के अधिकार के अंतर्गत आते हैं.
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