पंजाब में रहे दूर, क्या हरियाणा में आएंगे पास? समझें आखिर कौन सा डर कांग्रेस को ले जा रहा AAP के करीब

कांग्रेस 7 सीटें देने को तैयार है. जबकि AAP ने  10 सीटों की मांग की है. AAP का कहना है कि पिछले लोकसभा चुनाव में AAP ने हरियाणा में एक लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ा था, एक लोकसभा के तहत 9 सीटें आती हैं. कहा तो यह भी जा रहा है कि सीटों की पहचान भी कर ली गई है

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नई दिल्ली/चंडीगढ़:

हरियाणा की 90 विधानसभा (Haryana Assembly Elections 2024) सीटों के लिए 5 अक्टूबर को एक ही फेज में वोटिंग होनी है. वोटिंग डेट के ऐलान के बाद से हरियाणा में BJP, कांग्रेस, इंडियन नेशनल लोकदल (INLD), जननायक जनता पार्टी (JJP) समेत राजनीतिक पार्टियां अपनी ताकत मजबूत करने के लिए सियासी गुणा-भाग लगाने में जुटी हैं. BJP भी टिकटों के बंटवारे और राज्य में अपनी ताकत मजबूत करने के लिए के लिए विचार-मंथन कर रही है. दूसरी ओर, हरियाणा की राजनीति में यूपी के दलों का भी दखल बढ़ा है. सत्ता में वापसी की कोशिश में INLD ने मायावती की बहुजन समाज पार्टी (BSP) से गठबंधन किया है. वहीं, दुष्यंत चौटाला की JJP ने नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद की पार्टी से हाथ मिलाया है. अब राज्य में कांग्रेस के आम आदमी पार्टी से दोस्ती की अटकलें लगाई जा रही हैं.  

सवाल ये है कि लोकसभा चुनाव में AAP और कांग्रेस ने दिल्ली और हरियाणा में गठबंधन किया था. ये गठबंधन फेल रहा था. पंजाब में भी बात नहीं बन पाई थी. ऐसे में आखिर कौन सा डर है, जो कांग्रेस को एक बार फिर से आम आदमी पार्टी के करीब लेकर जा रही है?

कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, सोमवार को हुई चुनाव समिति की मीटिंग में राहुल गांधी ने नेताओं से पूछा कि क्या हमें हरियाणा में आम आदमी पार्टी से गठबंधन करना चाहिए? राहुल ने यह भी सवाल पूछा कि विधानसभा चुनाव के मद्देनजर ये गठबंधन संभव है या नहीं? अगर गठजोड़ हुआ, तो इसके फायदे-नुकसान क्या होंगे? राहुल ने इसके बारे में रिपोर्ट मांगी है.

चुनाव समिति की मीटिंग के बाद कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया ने कहा कि गठबंधन हो सकता है. इसके लिए AAP और INDIA के सहयोगी बाकी दलों के साथ बातचीत चल रही है. हम हरियाणा में वोटों का ध्रुवीकरण और BJP को रोकना चाहते हैं. 

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आखिर कांग्रेस को किस बात की फिक्र?
दरअसल, कांग्रेस इस बात से फिक्रमंद है कि INLD-BSP गठबंधन और JJP-आज़ाद समाज पार्टी के बीच गठबंधन से कांग्रेस को मिलने वाले दलित वोटों में सेंध लग सकती है. आखिरकार इसका खामियाजा चुनाव में उठाना पड़ सकता है. लिहाजा कांग्रेस कोई रिस्क नहीं लेना चाहती. इसलिए कांग्रेस वोटों का बंटवारा रोकने के लिए AAP से भी डील करने पर विचार कर रही है.

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AAP-सपा को लेकर राहुल गांधी की क्या है रणनीति?
ऐसा भी कहा जा रहा है कि राहुल गांधी हरियाणा में कांग्रेस की राजनीतिक पिच तैयार करना चाहते हैं, ताकि BJP के खिलाफ विपक्ष पहले से और ज्यादा ताकतवर हो. इसके लिए छोटी पार्टियों को साथ लाने की रणनीति पर काम किया जा रहा है. गठबंधन को लेकर राहुल गांधी के इस कदम के पीछे कई कारण दिए जा रहे हैं. पहला-विपक्ष के कोई भी वोट न कटे. क्योंकि इससे पहले पार्टी को गुजरात में नुकसान झेलना पड़ा था. गुजरात के चुनाव में कांग्रेस और AAP अकेले लड़ी थी. इससे कांग्रेस के वोट बैंक पर असर पड़ा.

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दूसरी वजह- राहुल गांधी विपक्षी एकता को जिंदा रखना चाहते हैं. वो ये मैसेज देना चाहते हैं कि विपक्ष पूरी तरह से एकजुट है. तीसरी वजह- हरियाणा में AAP के प्रभाव से होने वाले नुकसान से बचने की है. क्योंकि पंजाब में AAP का अच्छा इंपैक्ट है. ऐसे में कांग्रेस को ये भी डर है कि अगर पंजाब से सटे हरियाणा में AAP अकेले चुनाव लड़ी, तो उसका नुकसान हो सकता है.

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गठबंधन हुआ, तो क्या होगा सीट शेयरिंग फॉर्मूला?
कांग्रेस 7 सीटें देने को तैयार है. जबकि AAP ने  10 सीटों की मांग की है. AAP का कहना है कि पिछले लोकसभा चुनाव में AAP ने हरियाणा में एक लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ा था, एक लोकसभा के तहत 9 सीटें आती हैं. कहा तो यह भी जा रहा है कि सीटों की पहचान भी कर ली गई है. चुनाव समिति की मीटिंग में कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल और AAP के राघव चड्ढा के बीच बुधवार सुबह अगली बैठक हो सकती है. 

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AAP के साथ गठबंधन के पक्ष में नहीं हरियाणा कांग्रेस
हालांकि, प्रदेश के सभी कांग्रेसी नेता आम आदमी पार्टी से किसी भी तरह के समझौते के खिलाफ हैं. इन नेताओं ने आलाकमान को भी ये बात बता दी है. वैसे पार्टी के एक वर्ग को लगता है कि अब किसी पार्टी से समझौते के लिए काफी देर हो चुकी है. पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्‌डा शुरुआत से कांग्रेस-AAP के गठबंधन का विरोध करते आए हैं. वो पहले भी कई बार कह चुके हैं कि लोकसभा चुनाव 2024 के लिए भले ही गठबंधन हुआ, लेकिन हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 अकेले लड़ेंगे. 

पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्‌डा ने कहा, "अगर गठबंधन होता है, तो AAP को केवल 3-4 सीटें दे सकते हैं. मगर, आप इससे ज्यादा मांग रही है, इसलिए गठबंधन मुश्किल है. हालांकि, इसका फैसला हाईकमान को ही लेना है."

संजय सिंह ने राहुल गांधी की बातों से जताई सहमति
राहुल गांधी का बयान सामने आने के बाद AAP के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने कहा, "मैं राहुल गांधी के बयान का स्वागत करता हूं. BJP को हराना हमारी प्राथमिकता है. उनकी नफरत की राजनीति, उनकी जनविरोधी, किसान विरोधी, BJP की युवा विरोधी नीति और महंगाई के खिलाफ हमारा मोर्चा है. उन्हें हराना हमारी प्राथमिकता है, लेकिन, आधिकारिक तौर पर हमारे हरियाणा प्रभारी और प्रदेश अध्यक्ष आगे की बातचीत के आधार पर अरविंद केजरीवाल को इस बारे में बताएंगे और फिर इस पर आगे कुछ बात की जाएगी."

हरियाणा में फिलहाल AAP ने अकेले चुनाव लड़ने का किया ऐलान
हरियाणा की सभी 90 सीटों पर AAP पहली बार अकेले चुनाव लड़ रही है. इससे पहले 2019 में AAP ने 47 सीटों पर चुनाव लड़ा था. लेकिन एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. इस बार जेल में होने के कारण अरविंद केजरीवाल प्रचार नहीं कर पा रहे हैं. उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल और पंजाब के सीएम भगवंत मान रैलियां कर रहे हैं.

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AAP-कांग्रेस के बीच दिल्ली और हरियाणा में गठंबधन का क्या रहा नतीजा?
लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच दिल्ली की सभी 7 सीटों को लेकर गठबंधन हुआ था. कांग्रेस ने 3 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जबकि AAP ने 4 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. हालांकि, दोनों ही पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. सभी 7 सीटें BJP के खाते में गई थी. जबकि हरियाणा की 10 लोकसभा सीटों में से 5 सीटें कांग्रेस ने और 5 सीटें BJP ने जीती थीं. 

पंजाब में नहीं हो पाया गठबंधन
पंजाब में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच लोकसभा चुनाव में गठबंधन नहीं हुआ था. AAP ने एक भी सीट देने से इनकार कर दिया था. ऐसे में दोनों पार्टियों ने यहां की 13 लोकसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ा. इससे कांग्रेस को फायदा मिला. उसने 7 सीटें जीत ली. जबकि AAP को 3 ही सीटें मिलीं. बाकी 3 सीटों पर एक अकाली दल और 2 निर्दलीय विजयी रहे. 

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चंडीगढ़ में दिखा दमखम
पंजाब के उलट चंडीगढ़ में 2 चुनाव में AAP-कांग्रेस के गठबंधन का फॉर्मूला हिट रहा. दोनों पार्टियों ने नगर निगम के 35 वार्डों का चुनाव गठबंधन में लड़ा. AAP को 13 और कांग्रेस ने 7 वार्डों में जीत हासिल की. जबकि BJP 14 पर ही सिमट गई थी. एक सीट अकाली दल को मिली. काफी सियासी उठापटक के बाद AAP का मेयर बना.

आखिरकार गठबंधन को लेकर गेंद कांग्रेस आलाकमान और AAP संयोजक अरविंद केजरीवाल के पाले में हैं. देखना है कि राघव चड्ढा और केसी वेणुगोपाल की बातचीत का क्या नतीजा सामने आता है.

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