- गाजियाबाद के हरीश राणा 2013 में गंभीर चोट के बाद 12 वर्षों से होश में नहीं हैं और ठीक होने की संभावना नहीं है.
- हरीश के पिता अशोक राणा ने बेटे के इलाज के लिए घर बेचा, नौकरी छोड़ी और गुजारे के लिए काम तक किया.
- SC ने 2018 और 2023 में हरीश के लिए इच्छामृत्यु की याचिका ठुकराई, लेकिन इस बार मेडिकल रिपोर्ट मंगवाई है.
मौत की दुआ और जिंदगी का इंतजार... शायद इससे बड़ी कोई त्रासदी नहीं होती. एक मां, जो कभी अपने बेटे के लिए लंबी उम्र मांगती थी, आज उसी बेटे के लिए सुकून भरी मौत की गुहार लगा रही है. वजह साफ है, उसका बेटा पिछले 12 सालों से जिंदा तो है, लेकिन जिंदगी में नहीं.
देश की सबसे बड़ी अदालत, सुप्रीम कोर्ट, 13 जनवरी को तय करेगी कि क्या उस नौजवान को उसकी तकलीफदेह जिंदगी से आजादी मिलेगी या उसे यूं ही मौत का इंतजार करना होगा. दिल्ली से सटे गाजियाबाद में रहने वाले हरीश राणा करीब 32 साल के हैं. 2013 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान वह चंडीगढ़ में अपने पीजी की चौथी मंजिल की बालकनी से गिर गए. सिर में गंभीर चोट आई और तब से हरीश कभी होश में नहीं आए.
ठीक होने की उम्मीद नहीं आती नजर
हरीश आज भी एक बिस्तर पर पड़े हैं. न वह बोल सकते हैं, न चल सकते हैं, न अपने दर्द का इजहार कर सकते. खाने के लिए पाइप, पेशाब के लिए बैग का इस्तेमाल करना पड़ रहा. सांसें चल रही हैं, लेकिन जिंदगी थम चुकी है.
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इलाज ने परिवार की पूरी दुनिया उजाड़ दी
पिता अशोक राणा ने बेटे के इलाज के लिए घर बेच दिया, नौकरी चली गई, पेंशन नाम की सिर्फ तीन हज़ार रुपये मिलते हैं. गुजारे के लिए उन्होंने सैंडविच और स्प्राउट बेचने शुरू कर दिए. नर्स का खर्च भी उठाना मुमकिन नहीं रहा, तो मां-बाप खुद बेटे की देखभाल करने लगे.
कोर्ट दो बार ठुकरा चुकी है इच्छामृत्यु की मांग
2018 और 2023 में हरीश के माता-पिता ने सुप्रीम कोर्ट से इच्छामृत्यु (पैसिव यूथेनेशिया) की अनुमति मांगी, लेकिन दोनों बार अदालत ने इनकार कर दिया. इस बार सुप्रीम कोर्ट ने एम्स से ताज़ा मेडिकल रिपोर्ट मंगाई. रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि हरीश की हालत में सुधार की कोई संभावना नहीं है.
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अदालत ने बताया 'बेहद दुखद मामला'
जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की बेंच ने इसे 'बेहद दुखद मामला' बताया है और 13 जनवरी को हरीश के मां-बाप को आखिरी बार उनकी इच्छा जानने के लिए बुलाया है. अगर अदालत सहमत होती है, तो हरीश से लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटाया जा सकता है.
आपको बता दें कि ‘निष्क्रिय इच्छा-मृत्यु' उस प्रक्रिया को कहते हैं, जिसमें किसी मरीज का जीवन बचाने के लिए आवश्यक जीवन रक्षक उपकरण हटाकर या उपचार रोककर वह स्थिति पैदा की जाती है, जिससे उसके प्राण स्वाभाविक ढंग से निकल सकें.
अब सवाल सिर्फ कानून का नहीं. इंसानियत, ज़िंदगी और मौत के बीच आखिरी फैसले का है. यह फैसला सुप्रीम कोर्ट को लेना है कि हरीश की जान बचाने की कोशिशें की जाएंगी या नहीं.













