Guna Lok Sabha Seat: ज्योतिरादित्य के खिलाफ गुना में कांग्रेस आजमाएगी BJP का 2019 वाला दांव तो मिलेगी कामयाबी ?

सिंधिया राजघराने के तमाम बड़े नामों ने जब-जब चुनावी राजनीति में प्रवेश किया तो उन्होंने डेब्यू के लिए गुना को ही चुना. चाहे राजमाता विजयराजे सिंधिया हों, माधवराव सिंधिया हों या फिर खुद केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ही क्यों न हों? ये महज संयोग नहीं है..दरअसल 50 के दशक तक सिंधिया राज घराने का 'समर कैपिटल' गुना ही हुआ करता था...यहां के आम लोग आज भी आम या खास बातचीत में सिंधिया घराने के वारिसों को महाराज या श्रीमंत कहकर ही संबोधित करते हैं.

विज्ञापन
Read Time: 6 mins

Guna Lok Sabha Seat:दिल्ली से जब आप चलते हैं और मध्यप्रदेश के मालवा और चंबल इलाके में आपको जाना हो तो पहला पड़ाव होगा गुना. इससे इस जिले की खास जमीनी स्थिति का तो पता चलता है लेकिन एक और बात गुना को अहम बनाती है- वो ये है कि सिंधिया राजघराने के तमाम बड़े नामों ने जब-जब चुनावी राजनीति में प्रवेश किया तो उन्होंने डेब्यू के लिए गुना को ही चुना. चाहे राजमाता विजयराजे सिंधिया हों, माधवराव सिंधिया हों या फिर खुद केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ही क्यों न हों? ये महज संयोग नहीं है..दरअसल 50 के दशक तक सिंधिया राज घराने का 'समर कैपिटल' गुना ही हुआ करता था...यहां के आम लोग आज भी आम या खास बातचीत में सिंधिया घराने के वारिसों को महाराज या श्रीमंत कहकर ही संबोधित करते हैं. यहां ऐसा माना जाता था कि 'महल' का आदमी जहां से भी खड़ा हो जाएगा, जिस भी पार्टी से खड़ा हो जाएगा, जीतना तो उसका तय है. लेकिन इस धारणा में ट्विस्ट आया साल 2019 में जब ज्योतिरादित्य सिंधिया को उनके सिपहसलार रहे कृष्णपाल सिंह यादव ने भारी मतों से हरा दिया. ऐसे में सवाल ये है कि गुना सीट पर सिंधिया हारे क्यों? इसके साथ ही ये भी जानना जरूरी हो जाता है कि गुना संसदीय सीट का चुनावी इतिहास क्या है?

गुना के सियासी गुणा-भाग पर बात करने से पहले जान लेते हैं खुद गुना का इतिहास क्या है? दरअसल गुना का इतिहास सिंधिया घराने से जुड़ा हुआ है. इस राजघराने की शुरुआत 1740 के आसपास राणो जी सिंधिया ने की थी. वह मराठा योद्धा थे. उन्होंने सबसे पहले मालवा क्षेत्र पर जीत हासिल कर उज्जैन को अपनी पहली राजधानी बनाया. इसके बाद 1800 तक आते-आते, शाजापुर से होते हुए ग्वालियर सिंधिया परिवार की राजधानी बन गई. तब से लेकर आज़ादी तक, शिवपुरी, शयोपुर और गुना का यह पूरा क्षेत्र ग्वालियर राजघराने के सिंधिया परिवार की रियासत का हिस्सा रहा. पहले गुना के शिवपुरी में बहुत हरियाली और कई झरने-तालाब हुआ करते थे. तब सिंधिया परिवार यहां अपने गर्मियों के दिन बिताने आता था. सिंधिया शासन में गुना खूब फला-फूला. साल 1897 में ही यहां ट्रेन की शुरुआत हो गई थी जिसे 1899 में बढ़ा कर राजस्थान के बिना तक कर दिया गया. 
बहरहाल 1957 में नए मध्यप्रदेश में जब पहला चुनाव हुआ तो उसमें जीवाजी महाराज की पत्नी राजमाता विजया राजे सिंधिया ने इसी गुना लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. इस जीत के बाद गुना से सिंधिया परिवार का सियासी नाता भी जुड़ गया.गुना लोकसभा सीट पर यदि आप पार्टियों के हार जीत का विश्लेषण करें तो पता चलता है कि यहां हुए अब तक हुए चुनावों में नौ बार कांग्रेस को जीत हासिल हुई. बीजेपी यहां पांच बार, एक बार जनसंघ और एक बार स्वतंत्र पार्टी जीती. लेकिन इससे दिलचस्प ये है कि गुना सीट पर अब तक 16 चुनाव हुए हैं और उसमें से 14 बार राजपरिवार का उम्मीदवार विजयी रहा है. यहां सबसे ज्यादा 6 बार राजमाता विजय राजे सिंधिया सांसद रहीं उसके बाद माधव राव सिंधिया 4 बार और ज्योतिरादित्य सिंधिया भी 4 बार देश की संसद में गुना का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं.

1967 में मशहूर नेता जेबी कृपलानी भी यहां जीत कर संसद पहुंच चुके हैं. गुना के जातिगत समीकरण को देखा जाए तो यहां अनुसूचित जनजाति की आबादी सबसे अधिक  दो लाख 30 हजार से ज्यादा है. उसके बाद अनुसूचित जाति की आबादी है, जो एक लाख से अधिक है.यहां  ब्राह्नण 80 हजार, यादव 73 हजार, कुशवाहा 60 हजार, रघुवंशी 32 हजार, मुस्लिम 20 हजार और वैश्य जैन-20 हजार हैं. गुना की कुल जनसंख्या की बात की जाए तो यहां की जनसंख्या करीब 25 लाख है.

Advertisement

अब लगे हाथ हम गुना सीट के दो दिलचस्प किस्सों को भी जान लेते हैं.

पहला किस्सा राजमाता विजय राजे सिंधिया से जुड़ा है. हुआ यूं कि एक बार जब वे चुनावी मैदान में खड़ी हुईं तो काफी बीमार हो गईं. इतनी बीमार की वे बस नामांकन भरने की ही जा सकी. इसके बाद उन्होंने कोई चुनाव प्रचार नहीं किया. लेकिन मतदान से दो दिन पहले अफवाह उड़ी कि राजमाता नहीं रहीं. इसके बाद राजमाता समर्थकों ने पूरे गुना में उनके फोटो के साथ पोस्टर लगाए. पोस्टर पर लिखा था- मैं जिंदा हूं. इसका नतीजा ये हुआ कि जब नतीजे आए तो राजमाता भारी मतों से विजयी हुईं.

दूसरा किस्सा साल 2019 के चुनाव का है. बीजेपी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को घेरने के लिए उन्हीं के साथी रहे केपी यादव को मैदान में उतार दिया. तब सभी मान रहे थे कि सिंधिया आसानी से जीत जाएंगे. लेकिन  इसी दौरान ज्योतिरादित्य सिंधिया की पत्नी ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डाल दिया...उसमें लिखा था- जो कभी महाराज के साथ एक सेल्फी के लिए लाइन में लगे रहते थे, बीजेपी ने उन्हें टिकट दिया है. गुना को नजदीक से जानने वाले बताते हैं कि केपी यादव के लिए की गई इस टिप्पणी को लोगों ने दिल पर ले लिया और फिर उन्हें अपना सांसद चुनकर ये बताने की कोशिश की थी, कि असली लोकतंत्र क्या होता है? हालांकि सिंधिया की हार की वजहें और भी रही हैं लेकिन आम चर्चा में यही वजह रही. बहरहाल इस बार मामले में ट्विस्ट ये है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में हैं और पार्टी ने केपी यादव का टिकट काटकर उन्हें कमल का सिंबल दे दिया है. अब देखना ये है कि कांग्रेस साल 2024 चुनाव में क्या बीजेपी के 2019 वाला दांव आजमाती है या नहीं और यदि आजमाती है तो परिणाम वैसे ही आएंगे क्या? 

Advertisement

ये भी पढ़ें: Key Constituency 2024:छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर कमलनाथ का रहा है राज...क्या इस बार खिलेगा 'कमल'?

Featured Video Of The Day
Israel Hamas War: Gaza पर चल रही खास डील..जो रोक देगी इजरायल-हमास की महाजंग !