गुजरात दंगे और 1984: दोनों एक जैसे, कपिल सिब्बल ने जाकिया जाफरी केस की सुनवाई के दौरान कहा

गुजरात में साल 2002 में हुए दंगों के समय मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी को स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम की ओर से क्लीन चिट मिलने के बाद इस मामले में याचिका दाखिल की गई है. याचिका में एसआईटी की रिपोर्ट पर सवाल खड़े किए गए हैं.

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सिब्बल ने कहा क्योंकि जांच एजेंसी ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई, इससे पीड़ितों  का दुख दोगुना हो गया है
नई दिल्ली:

गुजरात में साल 2002 में हुए दंगों के समय मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी को स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम की ओर से क्लीन चिट मिलने के बाद इस मामले में याचिका दाखिल की गई है. याचिका में एसआईटी की रिपोर्ट पर सवाल खड़े किए गए हैं. जाकिया जाफरी की ओर से दलील देते हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि SIT को खुद अपनी विशेष पड़ताल करने की जरूरत है, क्योंकि उसने गुलबर्गा सोसायटी सहित पूरे गुजरात में हुए दंगों की जांच के लिए अपनी भूमिका और जिम्मेदारी नहीं निभाई है. सिबल ने कहा कि SIT तो खुद दंगाइयों को बचाने में लगी रही. स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम की रिपोर्ट से ये जाहिर होता है कि तब के प्रशासन को सब पता था कि कहां क्या हो रहा है, लेकिन वो वीएचपी, बजरंग दल और आरएसएस के लोगों को सब कुछ करने की छूट देते हुए बचाने में लगे थे.

2002 दंगों में नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट के खिलाफ याचिका, जाकिया जाफरी ने SIT पर उठाए सवाल

सिब्बल ने कहा क्योंकि जांच एजेंसी ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई, इससे पीड़ितों  का दुख दोगुना हो गया है. सरकार ने भी SIT चीफ को साइप्रस का उच्चायुक्त बना कर भेज दिया. उधर अहमदाबाद पुलिस चीफ की कॉल डिटेल्स से खुलासा हुआ कि वो दंगा आरोपियों से लगातार फोन संपर्क में थे, लेकिन उनको सजा देने के बजाय डीजीपी बनाकर इनाम दिया गया.

1984 जैसे थे गुजरात दंगे: सिब्बल
सिब्बल ने गुजरात दंगों की तुलना 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों से की. उन्होंने कहा, "मैं तब महारानी बाग में रहता था, मैंने देखा था कि दिल्ली में जिन जिन घरों में सिख रहते थे उन घरों और सिख लोगों को चुन चुन कर निशाना बनाया गया था, वैसे ही गुजरात में मुसलमानों को निशाना बनाया गया.

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जाकिया जाफरी ने SIT की जांच पर उठाए थे सवाल 
इस मामले में अगली सुनवाई 16 नवंबर को होगी. इससे पहले बुधवार को जाकिया जाफरी ने SIT की जांच पर सवाल उठाए थे. उन्होंने कहा था कि SIT ने जांच में प्रक्रिया का पालन नहीं किया. जाकिया की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा था कि इस पूरे मामले में SIT ने CDR की जांच नहीं की. न ही गवाहों से बात नहीं की गई, न हीं फोन की जांच की गई, आखिर किस आधार पर उसने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की.   गुलबर्गा सोसायटी की घटना में विस्फोटक को लाने और इस्तेमाल करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई. अगर SIT गुलबर्गा मामले को ही देख रही थी तो SIT सभी मामलों को क्यों देख रही थी?

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एसआईटी ने आरोपों को नकारा
वहीं SIT की तरफ मुकुल रोहतगी ने याचिकाकर्ता की ओर से दी गई दलीलों को नकारते हुए कहा कि इस मामले में की गई शिकायत पर जांच में ऐसा कुछ भी नहीं मिला जिसके आधार पर इस जांच को आगे बढ़ाया जाए. लिहाजा SIT ने मामले में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी. सिब्बल ने कहा कि NHRC कि तरफ से दाखिल याचिका को देखें तो साफ हो जाता है कि SIT का मकसद सिर्फ गुलबर्गा ही नहीं था. धार्मिक भावनाएं भड़का कर लोग अपनी सत्ता की फसल के लिए उपजाऊ मिट्टी तैयार करते हैं. धार्मिक भावनाएं भड़काने की ऐसी घटनाएं ज्वालामुखी के लावा की तरह होती हैं. जहां भी लावा जाता है वहां सबकुछ जल जाता है. ऐसी घटनाएं भविष्य के लिए उन्माद की जमीन तैयार करती हैं.

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सिब्बल हुए भावुक
भावुक होते हुए सिब्बल ने कहा कि ऐसी ही घटनाओ में ही पाकिस्तान में उन्होंने अपने नाना नानी को खो दिया था. जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने कहा कि 2002 के दौरान 167 शिकायतें दर्ज की गई थीं. सिब्बल ने कहा जब इस मामले की शिकायत कोर्ट ने दर्ज की तो इसके बाद कोर्ट ने कहा मामले की जांच करें, आरोपी पर मुकदमा चलाएं या क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करें. इसके बाद मामले की जांच सीलबंद रिपोर्ट के जरिए पेश की गई. पीठ में शामिल जस्टिस ए एम खानविलकर ने कहा कि हम इस पर बात करें कि SIT ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इस मामले में ऐसा कुछ नहीं है जिसमें आगे जांच की जाए. तब मजिस्ट्रेट ने भी इस मामले में जांच को आगे बढ़ाए जाने के आदेश नहीं दिए.

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जस्टिस खानविलकर ने कहा कि आपका कहना है कि इस मामले में धारा 161 के तहत बयान नहीं कराए गए, केवल प्रारंभिक जांच की गई है. सिब्बल ने कहा कि हमारी विरोध याचिका के बावजूद मजिस्ट्रेट ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की, जबकि हमने अपनी विरोध याचिका में निजी चैनल के स्टिंग के कुछ हिस्सों का उल्लेख भी किया था. यही हमारा विषय है जिस पर हम बात कर रहे हैं. जब तक आप सबूतों की जांच नहीं करेंगे तब तक कोई भी अदालत, चाहे मजिस्ट्रेट हो या हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकतीं कि साजिश थी या नहीं.

जस्टिस  एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की दलीलें सुनीं. 2002 के गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी को SIT की क्लीन चिट के खिलाफ जाकिया जाफरी की याचिका पर सुनवाई हुई. जाकिया जाफरी दिवंगत कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की पत्नी हैं, जिनकी अहमदाबाद में गुलबर्ग सोसाइटी में हत्या कर दी गई थी. पिछली सुनवाई के दौरान जाकिया जाफरी की ओर से पेश कपिल सिब्बल ने कहा था कि जांच एजेंसियों ने गुजरात दंगों के मामले में आरोपियों की मदद की थी. जांच एजेंसियों का आरोपियों की मदद का यह ट्रेंड अब कई राज्यों में हो रहा है, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने आरोप पर आपत्ति जाहिर की थी.

सिब्बल ने कहा, 'मैं किसी राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश नहीं करना चाहता, केवल कानून के शासन को कायम रखना चाहता हूं. मामले की जांच करने वाली SIT की ओर से मुकुल रोहतगी ने कहा था कि सिब्बल गुजरात के तत्कालीन सीएम (नरेंद्र मोदी) के खिलाफ आरोपों को क्यों नहीं पढ़ रहे हैं, खासकर जब जाकिया जाफरी की शिकायत के सभी आरोप गुजरात के तत्कालीन सीएम के खिलाफ हैं. पूरी विरोध याचिका तत्कालीन मुख्यमंत्री के खिलाफ है. आरोप लगाया गया था कि गुजरात के सीएम ने ट्रेन जलने के बाद 72 घंटे तक कोई कार्रवाई नहीं करने का आदेश दिया. हर आरोप गुजरात के तत्कालीन सीएम के खिलाफ है. वह इसे क्यों नहीं पढ़ना चाहते? अगर ये आरोप नहीं है तो और कुछ नहीं है.

सिब्बल ने कहा, "मुझे लोगों के साथ व्यवहार करने में दिलचस्पी नहीं है, बल्कि जिस तरह से राज्य ने प्रतिक्रिया दी है, उस पर है. मैं उस स्थिति में नहीं रहना चाहता, जहां मुझे किसी ऐसी बात पर बहस करने के लिए कहा जाए जो मैं नहीं चाहता. मेरे काबिल दोस्त कीचड़ भरे पानी में भेजना चाहते है, मैं उनके कहने के बाद भी नहीं जाऊंगा."

2002 के गुजरात दंगों के दौरान गुलबर्ग हाउसिंग सोसाइटी हत्याकांड में मारे गए कांग्रेस विधायक एहसान जाफरी की विधवा जकिया जाफरी ने SIT रिपोर्ट को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. रिपोर्ट में राज्य के उच्च पदाधिकारियों द्वारा गोधरा हत्याकांड के बाद सांप्रदायिक दंगे भड़काने में किसी भी "बड़ी साजिश" से इनकार किया गया है. 2017 में गुजरात हाईकोर्ट ने SIT की क्लोजर रिपोर्ट के खिलाफ जकिया की विरोध शिकायत को मजिस्ट्रेट द्वारा खारिज करने के खिलाफ उसकी चुनौती को खारिज कर दिया था.

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