अंग्रेजी शिक्षा, स्कॉलरशिप, फीस... गुड शेफर्ड स्कूल चलाने वाले ग्रुप ने कैसे की 296 करोड़ के चंदे की हेराफेरी?

ED को ऐसे सबूत मिले हैं कि संगठन के शीर्ष अधिकारियों में शामिल डॉ. जोसेफ डी’सूजा बिज़नेस क्लास में विदेश यात्राएं करते थे. कई फर्जी बिल बनाकर अकाउंट से पैसे निकाले गए और नकद निकासी के बाद इन पैसों से निजी संपत्तियां खरीदी गईं.

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गुड शेफर्ड स्कूल घोटाला मामले में बड़ा खुलासा.
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  • ED ने OM India समूह के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग जांच में लगभग 15 करोड़ रुपये की संपत्ति अटैच की हैं.
  • तेलंगाना CID ने OM India पर 296 करोड़ रुपये के चंदे के गलत इस्तेमाल का खुलासा कर FIR दर्ज की है.
  • जांच में पाया गया कि छात्रों के डेटा में बड़े पैमाने पर हेरफेर कर विदेशी दाताओं को अधिक पैसा वसूला गया.
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नई दिल्ली:

प्रवर्तन निदेशालय ने गुड शेफर्ड स्कूल नेटवर्क चलाने वाले ऑपरेशन मोबिलाइज़ेशन (OM India) ग्रुप पर बड़ी कार्रवाई करते हुए 12 संपत्तियां अटैच की हैं, जिनकी वर्तमान बाजार कीमत लगभग 15 करोड़ रुपये बताई जा रही है. ED ने यह कार्रवाई मनी लॉन्ड्रिंग कानून के तहत की है. यह संपत्तियां उन पैसों से खरीदी गई थीं, जिन्हें जांच एजेंसियां गैर-कानूनी कमाई मानती हैं.

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296 करोड़ रुपये की हेराफेरी का खुलासा

यह मामला तब सामने आया जब तेलंगाना CID ने OM India से जुड़े संगठनों के खिलाफ FIR और चार्जशीट दर्ज की. CID की जांच में पता चला कि Operation Mercy India Foundation (OMIF) और उसके सहयोगी संगठनों ने लगभग 296.6 करोड़ रुपये के विदेशी और भारतीय दान का गलत इस्तेमाल किया. यह पैसा मूल रूप से दलित और गरीब बच्चों की शिक्षा, स्कूलों के निर्माण और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों पर खर्च होना था, लेकिन आरोप है कि इसे निजी फायदे के लिए इस्तेमाल किया गया.

चार्जशीट के अनुसार, इस पूरे नेटवर्क को डॉ. जोसेफ डी'सूजा और उनके बेटे जॉश लॉरेंस डी'सूजा नियंत्रित करते थे. दोनों पर आरोप है कि उन्होंने दान में आई रकम को अलग-अलग खातों में डालकर जमीन-जायदाद खरीदने और निजी उपयोग में लगाने के लिए इस्तेमाल किया.

छात्र डेटा में बड़े स्तर पर फर्जीवाड़ा

ED की छापेमारी में सबसे गंभीर तथ्य यह सामने आया कि छात्रों के डेटा में बड़े पैमाने पर हेरफेर किया गया. एक ही छात्र को कई अलग-अलग कोड दिए गए. कुछ मामलों में, अलग-अलग सालों में अलग-अलग छात्रों को एक ही कोड से दिखाया गया. कई बच्चों की तस्वीरें, जन्म की तारीख, माता-पिता के नाम, कक्षा और जाति तक बदली गईं. इसका मकसद विदेशी दाताओं को ये दिखाना था कि बहुत बड़ी संख्या में बच्चे पढ़ रहे हैं, ताकि अधिक चंदा मिल सके.

मुफ़्त शिक्षा का दावा, लेकिन वसूली जारी

गुड शेफर्ड स्कूल नेटवर्क के बारे में विदेशी दाताओं को यह बताया जाता था कि बच्चों को मुफ़्त इंग्लिश मीडियम शिक्षा दी जा रही है. लेकिन ED की जांच में सामने आया कि स्कूल सभी बच्चों से ट्यूशन फीस, किताबों के पैसे, यूनिफॉर्म और बस फीस नियमित रूप से वसूलते थे. यानी विदेशों से मिलने वाली सहायता के बावजूद छात्रों और उनके परिवारों से पूरा पैसा लिया जाता था.

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सरकारी RTE और स्कॉलरशिप की रकम भी हड़प ली गई

स्कूलों को सरकार ने RTE (Right to Education) और दूसरी छात्रवृत्ति योजनाओं के तहत भी पैसा दिया था. यह रकम बच्चों की फीस में छूट देने के लिए थी, लेकिन यह पैसा बच्चों को देने के बजाय सीधे OMIF के हेड ऑफिस के खातों में ट्रांसफर किया गया. ED ने बताया कि इस तरह से कम से कम 15.37 करोड़ रुपये की रकम को ग़ैर-कानूनी कमाई के तौर पर पहचाना गया है.

चर्च गतिविधियों के लिए पैसे का इस्तेमाल

2014 से 2017 के बीच स्कूलों द्वारा किताबों, यूनिफॉर्म और बस सेवाओं पर जो खर्च दिखाया गया, वह वास्तव में Good Shepherd Community Society (GSCS) को ट्रांसफर किया गया था. यह संस्था मुख्य रूप से धार्मिक गतिविधियों में शामिल है. जांच में पाया गया कि छात्रों से वसूला गया पैसा धार्मिक कार्यक्रमों, चर्च की जरूरतों और जमीन खरीदने में खर्च हुआ.

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जोगिनी बचाव के नाम पर झूठा प्रचार और विदेशी फंडिंग

ED ने यह भी पाया कि संगठन ने विदेशों में फंड जुटाने के लिए एक बेहद गलत प्रचार किया. आम छात्रों और कुछ असंबंधित बच्चों की तस्वीरें विदेशी वेबसाइटों और सोशल मीडिया पर डालकर उन्हें जोगिनी यानी यौन शोषण टेंपल अटेंडेंट पीड़ित बताया गया. जबकि इन बच्चों का जोगिनी परंपरा से कोई संबंध नहीं था. इस झूठे प्रचार के आधार पर विदेशी दाताओं से ज्यादा रकम वसूली गई. जहां आम छात्र प्रायोजन के लिए 20–28 डॉलर प्रति माह मिलता था, वहीं जोगिनी बचाव के नाम पर 60-68 डॉलर हर महीने तक वसूला गया.

फर्जी खर्च, महंगी विदेश यात्राएं और नकद निकासी

ED को ऐसे सबूत मिले हैं कि संगठन के शीर्ष अधिकारियों में शामिल डॉ. जोसेफ डी'सूजा बिज़नेस क्लास में विदेश यात्राएं करते थे. कई फर्जी बिल बनाकर अकाउंट से पैसे निकाले गए और नकद निकासी के बाद इन पैसों से निजी संपत्तियां खरीदी गईं. डॉ. डी'सूजा को पूरे नेटवर्क का आध्यात्मिक और प्रशासनिक प्रमुख बताया गया है, जबकि उनका बेटा जॉश लॉरेंस वित्तीय और संचालन संबंधी फैसले लेता था.

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FCRA लाइसेंस रद्द होने के बाद भी जारी रहा पैसा

MHA की FCRA डिविजन ने नियमों के उल्लंघन पर OM India संस्थाओं के कई लाइसेंस रिन्यू नहीं किए और उनके FCRA खाते फ्रीज कर दिए. लेकिन आरोप है कि इसके बाद भी विदेशी पैसा आता रहा. इस बार फंड OM Books Foundation (OMBF) के जरिए लाया गया, जहां इसे छपाई से जुड़े फर्जी बिलों के माध्यम से भारत में ट्रांसफर किया गया. ED ने साफ किया है कि यह जांच अभी जारी है.

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