भारत में जर्मनी के राजदूत वॉल्टर लिंडर का भारत में कार्यकाल ख़त्म हो गया है और वो अब रिटायर होकर वापस जर्मनी जा रहे हैं. लेकिन वो भारत के अंदर सबसे ज़्यादा यात्रा करने वाले राजदूत के तौर पर सामने आए. इसकी गवाही उनके सोशल मीडिया एकाउंट देते हैं. वापस जाने के पहले पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने ना सिर्फ़ रूस यूक्रेन युद्ध बल्कि भारत से अपने विशेष जुड़ाव पर भी जवाब दिया. उन्होंने यहां हिंदी सीखी और मेरे सवाल कि हिंदी आम भारतीयों से जुड़ने में कैसे काम आई पर कहा कि हिंदी दिल्ली और आसपास के इलाक़ों में लोगों से जुड़ने में काम आई.
लेकिन कई जगहों पर लोग हिंदी या अंग्रेज़ी भी नहीं बोलते. उन्होंने कहा “काश मैं दस और भाषाएं सीख पाता”. उन्होंने कहा कि गुजरात के अलांग में जब जहाज़ तोड़ने वाले मज़दूरों से उन्होंने हिंदी में बात की तो वो फ़ौरन हंस पड़े और ये हंसी किसी भी राजदूत के लिए सबसे बड़ा इनाम है. राजदूत लिंडर ने नई कूटनीति और पुराने तरीक़े की कूटनीति के बारे में भी बात की. कहा कि वो कूटनीति पुरानी हो गई जब प्रेस को एक बयान फ़ैक्स कर और सिर्फ़ दूसरे राजनयिकों वग़ैरह से मिल कर काम चल जाता था. अब मीडिया, ख़ास कर सोशल मीडिया, कूटनीति का बेहद बड़ा हिस्सा है. यही वजह है कि उन्होंने भारत में अपनी यात्राओं का वृतांत सोशल मीडिया पर पोस्ट किया और हज़ारों लोग उनसे जुड़े. लेकिन उन्होंने कहा कि इसमें सच्चाई ज़रूरी है.
रूस यूक्रेन युद्ध वाले सवाल पर जवाब देते हुए राजदूत लिंडर ने कहा कि भारत से भले ही रूस के ख़िलाफ़ प्रतिबंधों में शामिल होने की उम्मीद है लेकिन यूरोप को ये भी एहसास है कि लोकतांत्रिक देशों से मैत्री कितनी ज़रूरी है. उन्होंने कहा कि प्रतिबंध सब पर असर डाल रहे हैं लेकिन ये पुतिन और दुनिया में कहीं भी उनके जैसे तानाशाहों को रोकने के लिए ज़रूरी है. उनकी लाल एमबैंसडर गाड़ी सोशल मीडिया पर हिट रही थी. उसके बारे में एनडीटीवी के मेरे सहयोगी उमाशंकर सिंह के सवाल कि इसका क्या होगा राजदूत लिंडनर ने कहा कि वो ऐंम्बी से ही पूछेंगे.
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