"दलबदल को इनाम देने का इससे कोई बेहतर तरीका नहीं...": सुप्रीम कोर्ट में शिवसेना के चीफ व्हिप

एकनाथ शिंदे की अपील के जवाब में प्रभु ने आज लिखा, "विधायक पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं और महाराष्ट्र विधानसभा के सदस्यों के रूप में अयोग्य घोषित किए जाने के योग्य हैं."

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जिरवाल ने बागी विधायकों के खिलाफ अयोग्यता कार्रवाई को वैध ठहराया है.

नई दिल्ली:

"दलबदल को पुरस्कृत करने का इससे बेहतर तरीका नहीं हो सकता है कि वह अपने नेता को मुख्यमंत्री का पद दे". शिवसेना के चीफ व्हिप सुनील प्रभु ने राज्य के सियासी संकट पर कल होने वाली बड़ी सुनवाई से पहले सुप्रीम कोर्ट से यह बात कही है. सुनील प्रभु ने सुप्रीम कोर्ट को लिखा, बागी विधायकों को अयोग्यता की कार्यवाही पूरी होने तक निलंबित किया जाना चाहिए.  बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 27 जून को डिप्टी स्पीकर को नोटिस जारी किया था और एकनाथ शिंदे गुट द्वारा अयोग्यता नोटिस के खिलाफ दायर याचिका पर जवाब मांगा था. 

उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट के सदस्यों में शिवसेना के चीफ व्हिप सुनील प्रभु और डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल शामिल हैं. दोनों ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया है. अदालत कल दोनों पक्षों की याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।

एकनाथ शिंदे की अपील के जवाब में प्रभु ने आज लिखा, "विधायक पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं और महाराष्ट्र विधानसभा के सदस्यों के रूप में अयोग्य घोषित किए जाने के योग्य हैं."

नरहरि सीताराम जिरवाल ने बागी विधायकों के खिलाफ अयोग्यता कार्रवाई को वैध ठहराया है. साथ ही हलफनामे में कहा है कि उन्हें हटाने के लिए नोटिस केवल तभी दिया जा सकता है जब विधानसभा सत्र चल रहा हो. इस मामले में अब सोमवार को सुनवाई होनी है. 

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उन्होंने हलफनामे में सवाल उठाया कि अगर एकनाथ शिंदे गुट 24 घंटे में सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दे सकता है तो 48 घंटों में मेरे द्वारा जारी अयोग्यता नोटिस का जवाब क्यों नहीं दे सकता है. अयोग्यता याचिकाओं का जवाब देने के लिए याचिकाकर्ताओं को 48 घंटे देने में कुछ भी गलत नहीं है. 

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जिरवाल का कहना है कि सबसे पहले 48 घंटे का नोटिस दिया गया था. साथ ही उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता ने कभी मुझसे संपर्क नहीं किया. उन्होंने कहा कि असत्यापित ईमेल के जरिये 39 विधायकों के पार्टी छोड़ने  का नोटिस मेरे पास आया था, इसलिए मैंने इसे अस्वीकार कर दिया. उन्होंने कहा कि कथित नोटिस एक ऐसे व्यक्ति की ईमेल आईडी से भेजा गया था, जो विधानसभा का सदस्य नहीं है और एक ऐसे व्यक्ति द्वारा दिया गया जो विधायक नहीं है. इसलिए उसकी प्रामाणिकता/सत्यता पर संदेह किया और इसे इसे रिकॉर्ड पर लेने से इनकार कर दिया गया.  

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उन्होंने उक्त मेल का जवाब देते हुए कहा था कि वह प्रस्ताव को अस्वीकार कर रहे हैं. कथित नोटिस को रिकॉर्ड में लेने से इनकार करने की सूचना उसी ईमेल आईडी पर भेजी गई थी, जहां से यह आया था.  जिरवाल ने अपने जवाब में कहा कि यह समझने में विफल हूं कि याचिकाकर्ता इस तथ्य को सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान मे क्यों नहीं लाए. 

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जिरवाल का कहना है कि उन्हें हटाने के लिए नोटिस केवल तभी दिया जा सकता है जब विधानसभा का सत्र चल रहा हो. संविधान, संसदीय सम्मेलन और विधानसभा नियमों के प्रावधानों के तहत, डिप्टी स्पीकर को हटाने का नोटिस तभी दिया जा सकता है जब विधानसभा का सत्र चल रहा हो. इसलिए नोटिस संविधान के अनुच्छेद 179 (सी) के तहत कभी भी वैध नोटिस नहीं था. 

उन्होंने कहा कि जब शिंदे गुट के लोगो ने 24 घंटे के भीतर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और मेरे द्वारा जारी नोटिस को चुनौती दी तो मैं यह समझने में विफल रहा कि पहली बार में जवाब दाखिल करने के लिए 48 घंटे का नोटिस कैसे और क्यों, अपने आप में अनुचित और उल्लंघन है.

सुप्रीम कोर्ट ने 27 जून को डिप्टी स्पीकर के अयोग्यता नोटिस के खिलाफ एकनाथ शिंदे खेमे द्वारा दायर याचिका पर जवाब मांगते हुए डिप्टी स्पीकर को नोटिस जारी किया था. हालांकि अदालत ने कोई अंतरिम आदेश जारी करने से इनकार कर दिया था.  

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