केरल में 26 अप्रैल को होने वाले लोकसभा चुनाव में बस कुछ ही दिन बचे हैं. ऐसे में सभी की निगाहें राज्य में करीब 24 प्रतिशत मुसलमानों के वोटिंग पैटर्न पर हैं, जो गेम चेंजर साबित हो सकते हैं. इसे केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन से बेहतर कोई नहीं जानता. वह पिछले एक सप्ताह से राज्य भर में वामपंथियों के लिए अपने अभियानों के दौरान नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और वामपंथी इसे कैसे देखते हैं, इस पर जोर दे रहे हैं. सीएम विजयन भी कथित तौर पर सीएए का मुद्दा नहीं उठाने के लिए कांग्रेस की आलोचना कर रहे हैं.
2019 के लोकसभा चुनाव में वामपंथियों का काफी खराब प्रदर्शन रहा था. वह सिर्फ एक सीट जीतने में सफल रहे, जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ ने 19 सीटें जीतीं और भाजपा का कमल खिलने में विफल रहा.
हालांकि, सीएम विजयन ने इस ट्रेंड को उलट दिया और उन्होंने 2021 के विधानसभा चुनावों में राज्य में पद बरकरार रखकर एक रिकॉर्ड बनाया. उनकी जीत के पीछे वामपंथियों के लिए बड़े पैमाने पर मुस्लिम वोट को निर्णायक फैक्टर माना जाता है.
नाम न छापने की शर्त पर एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, "2019 के लोकसभा चुनाव और 2021 के विधानसभा चुनाव में मतदान का पैटर्न स्पष्ट था. इस बार भी मुस्लिम समुदाय जिस तरह से सोचता है, वह निर्णायक फैक्टर हो सकता है." विश्लेषक ने कहा, "वामपंथी और कांग्रेस मुस्लिम समुदाय को प्रभावित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं. दरअसल जो कोई भी उनके वोटों का बड़ा हिस्सा हासिल करेगा वह फायदे में होगा."
केरल में राजनीतिक पार्टियों का प्रदर्शन
2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए तीसरे स्थान पर रहा और मात्र 15.64 प्रतिशत वोट शेयर हासिल कर पाया. वहीं 19 सीटें जीतने वाली कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ को 47.48 प्रतिशत वोट मिले और माकपा के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे को सिर्फ एक सीट मिली, जिसे 36.29 प्रतिशत वोट मिले.
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