जनसंख्या नियंत्रण ( population control) के लिए कानून बनाने की सुगबुगाहट के बीच भारत की प्रजनन दर (Fertilty Rate) में तेज गिरावट देखने को मिली है. हालांकि यूपी, बिहार में अभी भी प्रजनन दर राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2019-21 (NFHS 2019-21 ) की रिपोर्ट के अनुसार, प्रजनन दर में तेज गिरावट आई है और वो इस स्थिति में आ गई है कि जितनी लोगों की मृत्यु हो रही है, उसके मुकाबले अगली पीढ़ी में उतने लोगों का जन्म नहीं हो रहा है. एनएफएचएस सर्वे के अनुसार, शहरी इलाकों में प्रजनन दर 1.6 है और ग्रामीण क्षेत्र में यह 2.1 है. यानी शहरी परिवारों (urban Population) में हर महिला की बात करें तो बच्चों के जन्म का औसत दो से कम है. जबकि ग्रामीण क्षेत्र में भी यह दो के करीब आ गया है. यानी जनसंख्या नियंत्रण का हम दो हमारे दो का लक्ष्य साकार होते दिख रहा है.
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हालांकि अभी भी यूपी, बिहार समेत पांच राज्यों में प्रजनन दर दो से ऊपर है. ये बिहार(3), मेघालय (2.9), यूपी (2.4), झारखंड (2.3) और मणिपुर में (2.2) है. मध्य प्रदेश और राजस्थान में प्रजनन दर राष्ट्रीय औसत के बराबर यानी 2 पर है. पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में यह 1.6 है. महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, नगालैंड और त्रिपुरा में प्रजनन दर 1.7 है, यानी हर महिला बच्चों के जन्म का औसत दो से कम है. केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में यह 1.8 है. हरियाणा, असम, गुजरात, उत्तराखंड और मिजोरम में यह 1.9 है.
स्वास्थ्य मंत्रालय ने नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे का जो नवीनतम आंकड़ा जारी किया है. उससे पता चलता है कि देश में कुल प्रजनन दर ( प्रति महिला औसत बच्चे) 2.0 पर आ गया है. जो वर्ष 2015-16 में 2.2 था. यह सर्वे ऐसे वक्त आया है, जब देश में जनसंख्या नियंत्रण के लिए कई राज्यों में कानून बनाने की कवायद चल रही है. या फिर दो से ज्यादा बच्चों वाले परिवारों के लिए सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का दायरा सीमित करने की तैयारी चल रही है.
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असम, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने भी ऐसा ही संकेत दिया है. लंबे समय से यह तर्क दिया जा रहा है कि देश की बढ़ती जनसंख्या के कारण शिक्षा, स्वास्थ्य या अन्य क्षेत्रों का पर्याप्त लाभ पूरी आबादी को नहीं मिल पा रहा है. साथ ही देश के संसाधनों पर भारी बोझ पड़ रहा है.फिलहाल देश की 60 फीसदी से ज्यादा आबादी की उम्र 30 साल से कम है. देश में बढ़ती बेरोजगारी जैसी कई चुनौतियों के लिए जनसंख्या विस्फोट को जिम्मेदार माना जाता है.
सामाजिक और आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ अरविंद मिश्रा का कहना है कि भारत अगले 2-3 दशकों तक युवा कार्यशील आबादी का लाभ उठा सकता है और जनसंख्या स्थिरीकरण के संकेतों से पता चलता है कि आगे चलकर ये बुजुर्ग आबादी के तौर पर हमारे ऊपर ज्यादा बोझ नहीं पड़ेगा. जैसा कि चीन जैसे देशों में देखा जा रहा है.