इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 30 अगस्त को एक ट्रेन डिब्बे के अंदर "खून से लथपथ" पाई गई महिला कांस्टेबल पर हमले को लेकर रविवार को उत्तर प्रदेश सरकार और रेलवे पुलिस दोनों को फटकार लगाई. मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर ने मामले के बारे में प्राप्त एक व्हाट्सएप संदेश के आधार पर न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव के साथ रविवार को अपने आवास पर देर शाम सुनवाई बुलाई.
दो-न्यायाधीशों की पीठ ने रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) को "अपने कर्तव्यों के निर्वहन में विफल रहने" के लिए फटकार लगाई और सरकारी रेलवे पुलिस (जीआरपी) को 13 सितंबर तक मामले की जांच पर स्थिति अपडेट देने का आदेश दिया. जीआरपी के अनुसार, महिला कांस्टेबल 30 अगस्त को सरयू एक्सप्रेस डिब्बे में "खून से लथपथ" मिली थी और उसके चेहरे और सिर पर चोट लगी थी. उसके बाद उसे लखनऊ के एक अस्पताल में ले जाया गया जहां उसकी हालत स्थिर बताई जा रही है.
पुलिस ने कहा कि उसी दिन महिला के भाई ने प्राथमिकी दर्ज कराई थी. पुलिस और महिला के परिवार दोनों ने मामले में किसी भी यौन उत्पीड़न के पहलू से इनकार किया है. अदालत ने केंद्र, रेल मंत्रालय, आरपीएफ के महानिदेशक, उत्तर प्रदेश सरकार और गृह मंत्रालय और राज्य महिला आयोग को भी नोटिस जारी किया. जांच की प्रभारी अधिकारी पूजा यादव ने घटना के बाद कहा था, "प्रयागराज जिले की रहने वाली 47 वर्षीय महिला हेड कांस्टेबल सुल्तानपुर जिले में तैनात थी."
जो कि 'सावन मेला' ड्यूटी पर सुल्तानपुर से अयोध्या आ रही थी, उसे अयोध्या में उतरना था. लेकिन ट्रेन में सो जाने के कारण वह मानकपुर नामक रेलवे स्टेशन पर पहुंच गई. यह घटना अयोध्या और मनकापुर के बीच हुई." यूपी पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) में घायल महिला कांस्टेबल से मुलाकात की. पुलिस अभी तक मामले को सुलझा नहीं पाई है और महिला पर क्रूर हमले के पीछे के मकसद का पता लगाने में असमर्थ है.
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