ऑनलाइन टिकट बुकिंग शुल्क पर मनोरंजन कर नहीं लगाया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

मद्रास हाई कोर्ट ने आदेश में कहा था कि तमिलनाडु मनोरंजन कर अधिनियम, 1939 के तहत सिनेमा मालिक द्वारा प्रदान की गई इंटरनेट सेवा पर कर नहीं लगा सकता. मद्रास हाईकोर्ट के इस आदेश को वाणिज्य कर अधिकारी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी.

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सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा है कि ऑनलाइन टिकट बुकिंग शुल्क पर मनोरंजन कर नहीं लगाया जा सकता. कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है. कोर्ट ने कहा कि तमिलनाडु मनोरंजन कर अधिनियम,1939 के तहत ऑनलाइन टिकट बुकिंग शुल्क पर मनोरंजन कर नहीं लगाया जा सकता. जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने ये फैसला सुनाया है. दरअसल, ऑनलाइन टिकट बुकिंग पर मनोरंजन कर लगाया जा सकता है या नहीं इस अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट विचार कर रहा था. 

जस्टिस बीवी नागरत्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने सुनवाई के दौरान मौखिक रूप से टिप्पणी करते हुए कहा था कि यह अतिरिक्त शुल्क मनोरंजन के लिए नहीं है, बल्कि यह उन लोगों की सुविधा के लिए है, जो सिनेमाघर जाए बिना ऑनलाइन टिकट बुक करते हैं.कोर्ट ने कहा था कि यह कर मनोरंजन के लिए नहीं है, क्योंकि मनोरंजन का मतलब फिल्म देखना है, जबकि यह कर सिनेमा घर मालिकों की तरफ से अपने घर बैठे टिकट बुक करने के लिए प्रदान की गई सेवा के लिए किया गया अतिरिक्त भुगतान है. यदि कोई ऑनलाइन टिकट खरीदना चाहते हैं, तो आपको 10 या 20 किलोमीटर की यात्रा कर सिनेमा घर जाने की आवश्यकता नहीं है. इसके लिए आपको 30 रुपये अतिरिक्त देने होंगे.

दरअसल, मद्रास हाईकोर्ट ने अपने आदेश मे कहा था कि सिनेमा हॉल मालिक द्वारा प्रदान की गई अतिरिक्त या अन्य सुविधा के लिए किया गया यह एक अतिरिक्त भुगतान है. 1939 के उक्त अधिनियम के बहुत बाद, इंटरनेट के आगमन के साथ, भले ही समय-समय पर संशोधन किया गया हो लेकिन उक्त अधिनियम सिनेमा मालिक द्वारा प्रदान की गई इंटरनेट सेवा पर कर लगाने का प्रावधान नहीं कर सकता.

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हाईकोर्ट ने कहा था कि मनोरंजन कर केवल टिकट की लागत पर लगाया जाने वाला कर है, जो किसी व्यक्ति को सिनेमा हॉल या थिएटर में प्रवेश पाने का अधिकार देता है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि ऑनलाइन सिनेमा टिकट बुक करना सभी सिनेमा देखने वालों के लिए अनिवार्य शर्त नहीं है और यह न केवल वैकल्पिक है बल्कि सिनेमा हॉल मालिक के वेब पोर्टल पर सभी को प्रदान की जाने वाली एक अलग सुविधा है. मद्रास हाई कोर्ट ने आदेश में कहा था कि तमिलनाडु मनोरंजन कर अधिनियम, 1939 के तहत सिनेमा मालिक द्वारा प्रदान की गई इंटरनेट सेवा पर कर नहीं लगा सकता. मद्रास हाईकोर्ट के इस आदेश को वाणिज्य कर अधिकारी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी.

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