मानसिक रूप से दिव्यांग लोगों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई अप्रत्यक्ष भेदभाव: सुप्रीम कोर्ट

पीठ ने कहा है कि मानसिक दिव्यांग होना सक्षम शरीर वाले व्यक्तियों की तुलना में कार्यस्थल मानकों का पालन करने की क्षमता को कम करती है. ऐसे व्यक्तियों को अधिक हानि होती है और अनुशासनिक कार्रवाई की चपेट में आ जाते हैं.

विज्ञापन
Read Time: 20 mins
पीठ ने अपीलकर्ता के चिकित्सा इतिहास में यह नोट किया कि वह जुनूनी बाध्यकारी विकार और अवसाद से ग्रस्त है
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि मानसिक रूप से दिव्यांग व्यक्तियों (Mentally Challenged) के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करना अप्रत्यक्ष भेदभाव का एक पहलू है. ऐसे लोग दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम (आरपीडब्ल्यूडी) के तहत सुरक्षा का हकदार है. जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ ने फैसला सुनाया है कि मानसिक रूप से दिव्यांग कर्मचारी के खिलाफ शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई भेदभावपूर्ण और कानून के प्रावधानों का उल्लंघन है.

कोरोना से मौतों पर मुआवजे में देरी से सुप्रीम कोर्ट नाराज, महाराष्ट्र-राजस्थान को दिया आदेश

अदालत ने केंद्रीय पुलिस बल में एक सहायक कमांडेंट रविंदर कुमार धारीवाल द्वारा दायर एक अपील को स्वीकार कर लिया है, जिसे बिना पूर्व स्वीकृति के टेलीविजन चैनलों और अन्य प्रिंट मीडिया के समक्ष आकर कथित तौर पर असंसदीय भाषा के कथित उपयोग के लिए जांच और निलंबन का सामना करना पड़ा था. उस पर डिप्टी कमांडेंट के साथ बदसलूकी के आरोप थे. पीठ ने अपीलकर्ता के चिकित्सा इतिहास में यह नोट किया कि वह 2009 में जुनूनी बाध्यकारी विकार और अवसाद से ग्रस्त है और उसे 40 से 70 प्रतिशत दिव्यांग वाले स्थायी रूप से दिव्यांग के रूप में वर्गीकृत किया गया था.

मंदिर में दुकानों की लीज की नीलामी में भाग लेने से गैर हिंदुओं को रोका नहीं जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

Advertisement

पीठ ने कहा है कि मानसिक दिव्यांग होना सक्षम शरीर वाले व्यक्तियों की तुलना में कार्यस्थल मानकों का पालन करने की क्षमता को कम करती है. ऐसे व्यक्तियों को अधिक हानि होती है और अनुशासनिक कार्रवाई की चपेट में आ जाते हैं. लिहाजा मानसिक रूप से दिव्यांग व्यक्तियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करना अप्रत्यक्ष भेदभाव का एक पहलू है. पीठ ने उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि वह आरपीडब्ल्यूडी अधिनियम के तहत सुरक्षा का हकदार है. भले ही वह अपने वर्तमान रोजगार लिए अनुपयुक्त पाए जाते हैं. साथ ही निर्देश दिया कि अपीलकर्ता को एक वैकल्पिक पद पर फिर से नियुक्त करते समय यदि यह आवश्यक है, तो वेतन, परिलब्धियां और सेवा की शर्तें संरक्षित होनी चाहिए.

Advertisement

सुप्रीम कोर्ट ने बंगाल सरकार की ओर से गठित आयोग को पेगासस मामले की जांच से रोका

Advertisement
Featured Video Of The Day
Delhi Water Crisis: Yamuna में Amonia की मात्रा बढ़ी, कई इलाक़ों में पानी की परेशानी
Topics mentioned in this article