कूटनीति की अपनी सीमाएं थीं, आस्‍था ने दिखाया रास्‍ता... ऐसे टली निमिषा प्रिया की फांसी  

चंद्रन ने NDTV से कहा, 'हम यमनी न्याय प्रणाली के आभारी हैं कि उन्होंने हमें यह अवसर दिया. हमने बस यही मांगा था - एक मौका क्षमा याचना का, बिना शर्त माफी मांगने का.'

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  • यमन में हत्या के दोषी केरल की नर्स निमिषा प्रिया को 16 जुलाई को फांसी दी जानी थी, लेकिन फांसी टाल दी गई.
  • निमिषा ने यमन में अपने व्यापार सहयोगी की मौत के बाद अपराध छिपाने के लिए उसके शरीर के टुकड़े कर दिए थे.
  • यमनी शरिया कानून के तहत पीड़ित परिवार मुआवजा स्वीकार कर माफी दे सकता है, जिससे फांसी की सजा रद्द हो सकती है.
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नई दिल्‍ली:

सना में सूरज उगने तक एक दरवाजा थोड़ा-सा ही खुला था, निमिषा प्रिया के लिए अपनी लड़ाई जारी रखने के लिए इतना ही काफी था. कई दिनों से, 'सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल' के सदस्य एक ऐसी अंतिम तारीख की ओर देख रहे थे, जिसे बदला नहीं जा सकता था- 16 जुलाई, 2025, इस तारीख को यमन में हत्या की दोषी ठहराई गई केरल की नर्स निमिषा को फांसी दी जानी थी. लेकिन फांसी की पूर्व संध्या पर काफी कुछ बदल गया. 

काउंसिल के वकील और मुख्य सदस्य सुभाष चंद्रन ने एनडीटीवी को बताया, 'मामला शुरू होने के बाद पहली बार पीड़ित का भाई बातचीत के लिए आया. हमने पूरी रात बात की. सुबह देर तक, फांसी टाल दी गई. हमें वही मिला जो हम चाहते थे, परिवार को मनाने के लिए कुछ समय.' चंद्रन मानते हैं, समय ही सब कुछ है.

निमिषा ने क्‍या किया था, जिसकी सजा मिली

निमिषा की कहानी अब सब जानते हैं. एक प्रशिक्षित नर्स जो 2008 में काम के लिए यमन गई थी, वह अपने यमनी व्यापार सहयोगी, तलाल अब्दो महदी के साथ एक अपमानजनक रिश्ते में फंस गई. 2017 में, उसे नशीला पदार्थ देने का दोषी ठहराया गया था, कथित तौर पर अपना पासपोर्ट वापस पाने के लिए... लेकिन उसकी ज्‍यादा खुराक से मौत हो गई. घबराहट में, उसने उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और अपराध को छिपाने की कोशिश की. उसे अंततः मौत की सजा सुनाई गई और फिर, तारीख तय की गई.

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लेकिन यमनी शरिया कानून के तहत, एक जीवनरेखा बची थी- ब्‍लड मनी. यदि पीड़ित का परिवार मुआवजा स्वीकार करता है और माफी जारी करता है, तो सजा रद्द की जा सकती है. निमिषा के समर्थकों ने कथित तौर पर 10 लाख डॉलर तक की पेशकश की. लेकिन हफ्तों तक, वो दरवाजा मजबूती से बंद रहा.

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'कूटनीति की सीमाएं थीं, आस्था ने दिखाया रास्‍ता' 

चंद्रन के अनुसार, यह दूतावास या अदालतें नहीं थीं जिन्होंने इस मामले की दिशा बदली, बल्कि यह आस्था, दृढ़ता और केरल और यमन के बीच एक अप्रत्याशित हॉटलाइन थी. उन्होंने कहा, 'यमन जैसे युद्धग्रस्त देश में कूटनीति की अपनी सीमाएं हैं.' 'भारत सरकार ने अपनी पूरी कोशिश की. लेकिन चुनौतियां हैं, इसलिए हमने बैकचैनल का सहारा लिया- धर्म के लिए, मानवता के लिए. और यहीं से बदलाव आया.' 

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उन्होंने केरल के मरकज के माध्यम से एक प्रमुख भारतीय मुस्लिम धर्मगुरु, कंथापुरम एपी अबूबकर मुसलियार के प्रयासों का विशेष उल्लेख किया, जिनके हस्तक्षेप ने यमन में राजनीतिक और धार्मिक नेताओं के साथ सीधा संपर्क स्थापित करने में मदद की. इससे रात भर बातचीत का सत्र चला जिसने अंततः पीड़ित परिवार के एक सदस्य को बातचीत की मेज पर लाया.

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पीड़ित परिवार का जिक्र करते हुए चंद्रन ने कहा, 'वे समूहों के दबाव में थे, लेकिन केरल के नेता यमनी धर्मगुरुओं के संपर्क में थे, इसलिए उन्हें मना लिया गया.' आगे उन्‍होंने कहा, 'शुरुआत में, वे बिल्कुल बात नहीं करना चाहते थे. लेकिन मनाने पर, उन्होंने बात सुनी. इसने हमें बस इतनी उम्मीद दी.' 

कोई और कानूनी रास्ता नहीं- केवल दया ही उपाय 

चंद्रन आगे के रास्ते के बारे में स्पष्ट हैं. 'अब कोई और सुनवाई नहीं होगी. न्यायपालिका ने जो कर सकती थी वह कर दिया है. अब यह पूरी तरह से पीड़ित परिवार पर निर्भर है. यदि वे दिया स्वीकार करते हैं और उसे माफ कर देते हैं, तो निमिषा जीवित रहेगी. यदि नहीं, तो हम उसे खो देंगे.'

उन्‍होंने कहा, 'हम यमनी न्याय प्रणाली के आभारी हैं कि उन्होंने हमें यह अवसर दिया. हमने बस यही मांगा था - एक मौका क्षमा याचना का, बिना शर्त माफी मांगने का, यह दिखाने का कि हमारा कोई अनादर करने का इरादा नहीं है, केवल गहरा पश्चाताप है.' 

भारत सरकार और जनता से सीधी अपील करते हुए चंद्रन ने कहा, 'हम भारत सरकार, धार्मिक नेताओं और प्रभाव रखने वाले हर व्यक्ति से अनुरोध करते हैं- कृपया हमारी मदद करें. खिड़की खुली है. लेकिन हम नहीं जानते कि कब तक.'

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