वर्ष 2016 की नोटबंदी की कवायद के बारे में नये सिरे से विचार करने के सुप्रीम कोर्ट के प्रयास का विरोध करते हुए केंद्र सरकार ने शुक्रवार को कहा कि शीर्ष अदालत ऐसे मामले में फैसला नहीं कर सकती है जब ''अतीत में लौटकर'' भी कोई ठोस राहत नहीं दी जा सकती.
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि की टिप्पणी उस वक्त आई जब शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से यह बताने के लिए कहा कि क्या उसने 2016 में 500 रुपये और 1000 रुपये के मूल्यवर्ग के नोट को अमान्य करार देने से पहले भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के केंद्रीय बोर्ड से परामर्श किया था. न्यायमूर्ति एस ए नजीर की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ नोटबंदी को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है.
पीठ के अन्य सदस्य हैं- न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना, न्यायमूर्ति वी रमासुब्रमण्यन और न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना. पीठ ने कहा, 'आपने यह दलील दी है कि उद्देश्य पूरा हो चुका है. लेकिन हम इस आरोप का समाधान चाहते हैं कि अपनाई गयी प्रक्रिया ‘त्रुटिपूर्ण' थी. आप केवल यह साबित करें कि प्रक्रिया का पालन किया गया था या नहीं.''
न्यायालय की यह टिप्पणी उस वक्त आई जब वेंकटरमणि ने नोटबंदी नीति का बचाव किया और कहा कि अदालत को कार्यकारी निर्णय की न्यायिक समीक्षा करने से बचना चाहिए. वेंकटरमणि ने कहा, 'यह अच्छी तरह से स्थापित है कि अगर जांच की प्रासंगिकता गायब हो जाती है, तो अदालत शैक्षणिक मूल्यों के सवालों पर राय नहीं देगी.''
उन्होंने कहा, 'नोटबंदी एक अलग आर्थिक नीति नहीं थी. यह एक जटिल मौद्रिक नीति थी. इस मामले में पूरी तरह से अलग-अलग विचार होंगे. आरबीआई की भूमिका विकसित हुई है. हमारा ध्यान यहां-वहां के कुछ काले धन या नकली मुद्रा पर (केवल) नहीं है. हम बड़ी तस्वीर देखने की कोशिश कर रहे हैं.''
इस बिंदु पर, न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि नोटबंदी का विरोध करने वाले याचिकाकर्ताओं का तर्क मुद्रा के संबंध में की जाने वाली हर चीज को लेकर है. न्यायमूर्ति गवई ने टिप्पणी की, 'यह आरबीआई का प्राथमिक कर्तव्य है और इसलिए आरबीआई अधिनियम की धारा 26(2) का (मुकम्मल) पालन होना चाहिए था. इस विवाद के साथ कोई विवाद नहीं है कि आरबीआई की मौद्रिक नीति निर्धारित करने में प्राथमिक भूमिका है.'
वेंकटरमणि ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने दलील दी है कि आरबीआई को स्वतंत्र रूप से अपना दिमाग लगाना चाहिए, लेकिन आरबीआई और सरकार के कामकाज को लचीले दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए, क्योंकि दोनों का सहजीवी संबंध है. न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि तर्क यह था कि अधिनियम आरबीआई में उन लोगों की विशेषज्ञता को मान्यता देता है और कानून आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की विशेषज्ञता को मान्य करता है.
उन्होंने कहा, 'साथ ही, कोई नेकनीयत वाला व्यक्ति यह नहीं कह सकता कि सिर्फ इसलिए कि आप असफल हुए, आपका इरादा भी गलत था। यह तार्किक अर्थ नहीं रखता है.' मामले की सुनवाई अधूरी रही और इस पर पांच दिसम्बर को फिर सुनवाई होगी.