आपराधिक मामलों में आरोपियों के खिलाफ बुलडोजर की कार्रवाई पर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने कड़ी टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि सिविल अथॉरिटी के लिए उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना घरों को ध्वस्त करना 'फैशन' बन गया है. उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ ने इस महीने की शुरुआत में राहुल लांगरी के घर को ध्वस्त करने से संबंधित एक मामले में ये टिप्पणियां की, जिस पर संपत्ति की जबरन वसूली के लिए जानबूझकर चोट पहुंचाने का मामला चल रहा है.
राहुल लांगरी पर एक व्यक्ति को धमकी देने और उस पर हमला करने का आरोप है, जिसके बाद उस व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली. लांगरी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है. पुलिस ने बाद में नगर निकाय से संपर्क किया और उज्जैन में उसके दो मंजिला घर को ढहा दिया गया.
लांगरी की पत्नी राधा ने अदालत का दरवाजा खटखटाया. अपनी याचिका में उसने कहा कि पिछले मालिक रायसा बी के नाम पर एक नोटिस दिया गया था और अगले ही दिन उनकी बात सुने बिना घर को तोड़ दिया गया. उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि घर अवैध नहीं था. उन्होंने कहा कि घर हाउसिंग बोर्ड में पंजीकृत था और उन्होंने बैंक से ऋण लिया था.
अदालत ने कहा, "जैसा कि इस अदालत ने बार-बार देखा है, स्थानीय प्रशासन और स्थानीय निकायों के लिए न्याय के सिद्धांत का पालन किए बिना कार्रवाई तैयार करके, किसी भी घर को ध्वस्त करना और उसे अखबार में प्रकाशित करना अब फैशन बन गया है. ऐसा प्रतीत होता है कि इस मामले में भी याचिकाकर्ताओं के परिवार के सदस्यों में से एक के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया गया और विध्वंस गतिविधियों को अंजाम दिया गया."
अदालत ने कहा कि घरों को तोड़ने के बजाय याचिकाकर्ताओं को निर्माण को नियमित कराने के लिए कहा जाना चाहिए था. इसमें कहा गया है कि घर के मालिक को इसे नियमित कराने का उचित अवसर देने के बाद ही तोड़फोड़ आखिरी रास्ता होना चाहिए.
याचिकाकर्ता वकील तहजीब खान ने कहा, "अगर कोई अपराधी किसी घर में रहता है, तो इसका मतलब ये नहीं है कि उस घर का हर व्यक्ति अपराधी है. उसके घर को ढहाने से निर्दोषों को भी सजा मिलेगी."