विदेशी आक्रांताओं के नाम पर रखे गए शहरों, सड़कों और इमारतों के नाम बदलने के लिए आयोग बनाने की मांग

सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल, याचिकाकर्ता वकील अश्विनी उपाध्याय ने हजार से ज्यादा नामों का हवाला दिया

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सुप्रीम कोर्ट.
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर देश में विदेशी आक्रमणकारियों के नाम पर शहरों, सड़कों, इमारतों और संस्थानों के नाम बदलने के लिए आयोग बनाने मांग की गई है. याचिकाकर्ता वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका में हजार से ज्यादा नामों का हवाला दिया गया है. री- नेमिंग कमीशन बनाने का आदेश जारी करने की अपील के लिए दाखिल इस याचिका में संविधान के अनुच्छेद 21, 25 और 29 का हवाला देते हुए ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने की बात भी कही गई है.

इस सिलसिले में औरंगजेब रोड, औरंगाबाद, इलाहाबाद, राजपथ जैसे कई नामों में बदलाव कर उनका स्वदेशीकरण करने का जिक्र किया गया है. ऐतिहासिक गलतियों को ठीक करने के लिए अश्विनी उपाध्याय ने कोर्ट के कई निर्णयों का भी उल्लेख किया है. 

याचिका में ये प्रश्न उठाया गया है कि क्या प्राचीन ऐतिहासिक सांस्कृतिक धार्मिक स्थलों का नाम बर्बर आक्रमणकारियों के नाम पर जारी रखना संप्रभुता के विरुद्ध नहीं है? याचिका में कहा गया है कि हाल ही में सरकार ने राष्ट्रपति भवन में बने मुगल गार्डन का नाम अमृत उद्यान किया है लेकिन दिल्ली में अभी भी इस तरह की ढेर सारी जगहें हैं, जो विदेशी आक्रांताओं के नाम पर हैं. बाबर रोड, हुमायूं रोड, अकबर रोड, जहांगीर रोड, शाहजहां रोड, बहादुर शाह रोड, शेरशाह रोड, औरंगजेब रोड, तुगलक रोड, सफदरजंग रोड, नजफ खान रोड, जौहर रोड, लोधी रोड, चेम्सफोर्ड रोड और हैली रोड के नाम नहीं बदले गए हैं.

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याचिका में कहा गया है कि, भगवान कृष्ण और बलराम के आशीर्वाद से पांडवों ने खांडवप्रस्थ (निर्जन भूमि) को इंद्रप्रस्थ (दिल्ली) में परिवर्तित कर दिया, लेकिन उनके नाम पर एक भी सड़क, नगरपालिका वार्ड, गांव या विधानसभा क्षेत्र नहीं है. भगवान कृष्ण, बलराम, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव, कुंती, द्रौपदी और अभिमन्यु जैसे राष्ट्रीय और सांस्कृतिक नायक-नायिकाओं का कोई जिक्र तक नहीं है. विदेशी आक्रांताओं के नाम पर सड़कें, नगरपालिका वार्ड, ग्राम एवं सभा निर्वाचन क्षेत्र हैं, जो न केवल सम्प्रभुता के विरुद्ध है बल्कि इससे संविधान के अनुच्छेद 21 में दिए गए गरिमापूर्ण जीवन जीने के साथ अपनी धर्म-संस्कृति को बचाए व बनाए रखने के मौलिक अधिकार का हनन भी है. 

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याचिकाकर्ता ने कहा है कि, ऐतिहासिक ‘अजातशत्रु नगर' का नाम बर्बर “बेगू” के नाम पर रखा गया था और ‘बेगूसराय' कहा जाता है. प्राचीन शहर ‘नालंदा विहार' का नाम अक्रांता शरीफुद्दीन के नाम पर बिहार शरीफ कर दिया गया. बिहार में ही मिथिलांचल के सांस्कृतिक शहर ‘द्वार बंग' का नाम बदलकर क्रूर ‘दरभंग खान' के कारण ‘दरभंगा' हो गया. धार्मिक शहर ‘हरिपुर' का नाम ‘हाजी शम्सुद्दीन शाह' ने बदलकर हाजीपुर कर दिया. सिंहजनी' का नाम ‘जमाल बाबा' के नाम पर ‘जमालपुर' हुआ. वैदिक शहर ‘विदेहपुर' का नाम बर्बर मुजफ्फर खान के नाम पर ‘मुजफ्फरपुर कर दिया गया.

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याचिका में कहा गया है कि, मुगलिया हुकूमत और फिर ब्रिटिश हुकूमत ने अपने-अपने जुल्म जोर का लोहा मनवाने और मूल भारतीय नागरिकों का मनोबल तोड़ने के साथ उनके गरिमापूर्ण जीवन पर ग्रहण लगाने के मकसद से देश के लगभग सभी राज्यों में शहरों, सड़कों, इमारतों व संस्थानों के नाम हटाकर अपने नए नाम दिए. अहमदाबाद शहर का नाम महाभारत के हीरो कर्ण के नाम पर कर्णावती को हटाकर रखा गया.

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याचिका में ऐसे ही हजार से ज्यादा ऐतिहासिक नामों का उद्धरण दिया गया है जिनको विदेशी आक्रांताओं जैसे मुगलों, अफगानों, अंग्रेजों ने बदलकर हमारी संस्कृति और इतिहास को मिटाने की कोशिश की है. 

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