COVID-19 महामारी के कारण अनिश्चितताओं की वजह से न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में मुद्रा नोटों यानी नकदी की मांग में वृद्धि हुई है. आधिकारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी. सूत्रों ने हालांकि उस आलोचना को खारिज कर दिया कि नोटबंदी अर्थव्यवस्था में नकदी को कम करने में विफल रही है. सरकारी सूत्रों ने कहा कि नोटबंदी के बाद डिजिटल भुगतान प्रणाली के विकास से अंततः नकदी पर निर्भरता पर अंकुश लगेगा. आधिकारिक आंकड़े प्लास्टिक कार्ड, नेट बैंकिंग और यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) सहित विभिन्न तरीकों से डिजिटल भुगतान में उछाल की ओर इशारा करता है.
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भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) का यूपीआई प्रणाली देश में भुगतान के एक प्रमुख माध्यम के रूप में तेजी से उभर रहा है. यूपीआई को 2016 में लॉन्च किया गया था और इसके जरिए लेन-देन महीने-दर-महीने बढ़ रहा है. अक्टूबर 2021 में, मूल्य के संदर्भ में लेनदेन 7.71 लाख करोड़ रुपए या 100 अरब डॉलर से अधिक था. अक्टूबर में यूपीआई के जरिए कुल 421 करोड़ लेनदेन किए गए.
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सूत्रों ने यह भी बताया कि अमेरिका में भी, कुल नकदी लेनदेन 2020 के अंत तक 2.07 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गई, जो एक साल पहले की तुलना में 16 प्रतिशत अधिक है और यह 1945 के बाद से एक साल की सबसे बड़ी प्रतिशत वृद्धि भी है. सूत्रों ने बताया कि आर्थिक अनिश्चितता की अवधि के दौरान नकदी की मांग हमेशा बढ़ती है और चूंकि नकदी संपत्ति का सबसे तरल रूप है, इसलिए भारी अनिश्चितता की अवधि के दौरान नकदी में वृद्धि की उम्मीद रहती है. महामारी के दौरान नकदी की मांग में वृद्धि एक विश्वव्यापी घटना रही है.
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