घरेलू हिंसा एक्‍ट के तहत बहू को संयुक्‍त घर में रहने का हक नहीं, उसे बेदखल किया जा सकता है : दिल्‍ली HC

जस्टिस खन्ना ने कहा कि मौजूदा मामले में दोनों ससुराल वाले वरिष्ठ नागरिक हैं और वे शांतिपूर्ण जीवन जीने तथा बेटे-बहू के बीच के वैवाहिक कलह से प्रभावित न होने के हकदार हैं.

विज्ञापन
Read Time: 25 mins
दिल्‍ली हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता बहू की अपील को खारिज कर दिया
नई दिल्ली:

दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi high court) ने एक अहम फैसले में कहा है कि घरेलू हिंसा अधिनियम (Domestic Violence Act) के तहत किसी बहू (Daughter in-law) को संयुक्त घर में रहने का अधिकार नहीं है और उसे ससुराल के बुजुर्ग लोगों की ओर से बेदखल किया जा सकता है, जो शांतिपूर्ण जीवन जीने के हकदार हैं. जस्टिस योगेश खन्ना एक बहू द्वारा निचली अदालत के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रहे थे जिसके तहत उसे ससुराल में रहने का अधिकार नहीं दिया गया था. उन्होंने कहा कि एक संयुक्त घर के मामले में संबंधित संपत्ति के मालिक पर अपनी बहू को बेदखल करने को लेकर कोई प्रतिबंध नहीं है.उन्होंने कहा कि मौजूदा मामले में यह उचित रहेगा कि याचिकाकर्ता को उसकी शादी जारी रहने तक कोई वैकल्पिक आवास प्रदान कर दिया जाए.

जस्टिस  खन्ना ने कहा कि मौजूदा मामले में दोनों ससुराल वाले वरिष्ठ नागरिक हैं और वे शांतिपूर्ण जीवन जीने तथा बेटे-बहू के बीच के वैवाहिक कलह से प्रभावित न होने के हकदार हैं.उन्‍होंने अपने हालिया आदेश में कहा, “मेरा मानना है कि चूंकि दोनों पक्षों के बीच तनावपूर्ण संबंध हैं, ऐसे में जीवन के अंतिम पड़ाव पर वृद्ध सास-ससुर के लिए याचिकाकर्ता के साथ रहना उपयुक्त नहीं होगा. और इसलिए यह उचित होगा कि याचिकाकर्ता को घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम की धारा 19(1)(एएफ) के तहत कोई वैकल्पिक आ‍वास मुहैया कराया जाए.”अदालत ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच संबंध ‘‘तनावपूर्ण'' हैं और यहां तक ​​​​कि पति द्वारा भी पत्नी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई थी जो किराये के घर में अलग रहता है तथा जिसने संबंधित संपत्ति पर किसी भी तरह का दावा नहीं जताया है.

हाईकोर्ट  ने कहा, “घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा-19 के तहत आवास का अधिकार संयुक्त घर में रहने का एक अपरिहार्य अधिकार नहीं है, खासकर उन मामलों में, जहां बहू अपने बुजुर्ग सास-ससुर के खिलाफ खड़ी है.”अदालत ने कहा, “मौजूदा मामले में सास-ससुर लगभग 74 और 69 साल के वरिष्ठ नागरिक हैं तथा वे अपने जीवन के आखिरी पड़ाव पर होने के कारण बेटे-बहू के बीच के वैवाहिक कलह से ग्रस्त हुए बिना शांति से जीने के हकदार हैं.” हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की अपील को खारिज कर दिया और इसके साथ ही प्रतिवादी ससुर के हलफनामे को स्वीकार कर लिया कि वह अपने बेटे के साथ बहू के वैवाहिक संबंध जारी रहने तक याचिकाकर्ता को वैकल्पिक आवास मुहैया कराएंगे.

Advertisement

प्रतिवादी ससुर ने 2016 में निचली अदालत के समक्ष इस आधार पर कब्जे के लिए एक मुकदमा दायर किया था कि वह संपत्ति के पूर्ण मालिक हैं और याचिकाकर्ता का पति यानी कि उनका बेटा किसी अन्य स्थान पर स्थानांतरित हो गया है तथा वह अपनी बहू के साथ रहने के इच्छुक नहीं हैं.वहीं, याचिकाकर्ता, जो दो छोटी बच्चियों की मां है, ने तर्क दिया था कि संपत्ति परिवार की संयुक्त पूंजी के अलावा पैतृक संपत्ति की बिक्री से हुई आय से खरीदी गई थी, लिहाजा उसे भी वहां रहने का अधिकार है.निचली अदालत ने प्रतिवादी के पक्ष में कब्जे का आदेश पारित किया था और माना था कि संपत्ति प्रतिवादी की खुद की अर्जित संपत्ति थी तथा याचिकाकर्ता को वहां रहने का कोई अधिकार नहीं है.

Advertisement

- ये भी पढ़ें -

* अशनीर ग्रोवर अब कर्मचारी, निदेशक, संस्थापक नहीं, उनका परिवार गड़बड़ियों में था शामिल, BharatPe का आरोप
* 31 फ्लाइट्स 8 मार्च तक 6300 से अधिक भारतीयों को यूक्रेन से लाएंगी भारत : रिपोर्ट
* शार्प शूटरों और दिल्ली पुलिस के बीच जबर्दस्त मुठभेड़, गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंजा बाहरी उत्तरी जिला

Advertisement

VIDEO: यूक्रेन-रूस युद्ध के बीच अर्थव्यवस्था पर असर, लोगों को जरूरी सामान की हो रही किल्लत

Advertisement
Featured Video Of The Day
Weather Update: Delhi में Air Pollution का Level हुआ गंभीर; Maharashtra में क्या करेंगे Bhujbal?
Topics mentioned in this article