भले ही हमारा देश आजादी की 75 वीं सालगिरह मना रहा है, लेकिन आज भी हमारे देश में कुछ गांव ऐसे हैं जहां पर दलितों (Dalits) को मरने के बाद श्मशान घाट (Cremation Ground) तक उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं. ताजा मामला सामने आया है गुना जिले (Guna District) के बांसाहैड़ा खुर्द गांव में, जहां पर 45 वर्षीय रामकन्या बाई हरिजन का कल सुबह 10 बजे निधन हो गया था. हालांकि तेज बारिश के चलते मृतक का शव डेढ़ घंटे तक घर में ही रखा रहा. बारिश बंद ना होने के कारण परिवार और गांव वाले मिलकर कीचड़ के रास्ते से श्मशान घाट तक पहुंचे.
श्मशान घाट में ना तो टीन शेड मौजूद था और ना ही वहां पर कोई चबूतरा बना हुआ था, जिस पर ग्रामीण अंतिम संस्कार कर सकें. ऐसे में ग्रामीणों ने गांव से दो टीन की चद्दर मंगवाई और 8 से 10 ग्रामीणों ने चिता से कुछ ऊंचाई पर लगाया गया, जिसके बाद चिता को तैयार कर अंतिम संस्कार किया गया.
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ग्रामीणों ने बताया कि आज तक उनके ग्राम में श्मशान घाट नहीं है, जिसके चलते उन्हें हर बारिश में इस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है और प्रशासनिक तौर पर भी इसकी शिकायत कई बार की गई है, लेकिन आज तक कोई भी निर्माण कार्य श्मशान घाट को लेकर नहीं किया गया. गांव में सबसे ज्यादा दलित समुदाय के 1000 से अधिक परिवार निवास करते हैं, लेकिन यहां के लोग कहते हैं कि इस वर्ष बारिश में किसी का निधन ना हो.
ग्रामीणों ने बताया कि बारिश में पंचायत की तरफ से भी कोई मदद मुहैया नहीं कराई गई, जिसके चलते डीजल और टायरों से चिता को जलाया गया.
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