भारत समेत दुनिया भर में जब कोरोना का डेल्टा वैरिएंट (Delta Variant) कहर ढा रहा था तो कोविशील्ड (Covishield) वैक्सीन लोगों के लिए मजबूत सुरक्षा कवच बनकर उभरी. लैंसेट की स्टडी (Lancet Study) में कहा गया है कि डेल्टा वायरस जिस वक्त उफान पर था, तब कोविशील्ड वायरस के खिलाफ काफी प्रभावी पाई गई. लैंसेट के इनफेक्शियस डिसीसेज जर्नल में यह अध्ययन प्रकाशित किया गया है. लैंसेट की यह स्टडी अप्रैल-मई के दौरान भारत में कोरोना के डेल्टा वैरिएंट के विनाशकारी असर के दौरान कोविशील्ड की प्रभावशीलता आंकने के लिए किया गया था. उस दौरान बड़ी संख्या में मौतों और रोजाना के लाखों के मामलों ने पूरे स्वास्थ्य ढांचे को चरमरा कर रख दिया था.
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लैंसेट के मुताबिक कोविशील्ड की दोनों डोज लेने वाले लोगों में टीके की प्रभावक्षमता 63 प्रतिशत पाई गई है. मध्यम से गंभीर बीमारी के चरण के दौरान, टीके की प्रभावकारिता 81 प्रतिशत पाई गई है. इस शोध का निष्कर्ष उस समय सामने आया है जब हाल ही दक्षिण अफ्रीका में कोविड का नया संस्करण ओमिक्रॉन या बी.1.1.529 सामने आया है और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसे "चिंता के प्रकार" के रूप में नामित किया है. इसके बाद से ही विश्वभर में खतरे की घंटी बज चुकी है.
डब्ल्यूएचओ ने कहा कि ओमिक्रॉन संस्करण विश्व स्तर पर "बहुत अधिक" जोखिम वाला संस्करण है. डब्ल्यूएचओ ने इस बात पर जोर दिया कि अभी यह बताना मुकिल होगा कि यह कितना संक्रामक और खतरनाक हो सकता है.
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उधर कोविशील्ड-निर्माता सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने वैश्विक वैक्सीन-साझाकरण कार्यक्रम COVAX के तहत निम्न और मध्यम आय वाले देशों में वितरण के लिए वैक्सीन निर्यात फिर से शुरू कर दिया है. कंपनी के अनुसार, अब तक कोविशील्ड की कुल संख्या 1.25 बिलियन से ज्यादा खुराक का निर्माण किया जा चुका है. इस महीने की शुरुआत में, WHO ने कोविशील्ड वैक्सीन को स्वीकृत आपातकालीन उपयोग COVID-19 टीकों की अपनी सूची में जोड़ा था.
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