- सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा सरकार, केंद्र व अन्य को सतकोसिया टाइगर रिजर्व में अवैध निर्माण पर नोटिस किया है.
- याचिका में जिला कलेक्टरों द्वारा जारी अनापत्ति प्रमाण पत्र को वन्यजीव संरक्षण कानूनों का उल्लंघन बताया गया है.
- सतकोसिया टाइगर रिजर्व पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र है, जिसमें लुप्तप्राय प्रजातियां रहती है.
ओडिशा के सतकोसिया टाइगर रिजर्व में जारी अवैध इको-टूरिज्म गतिविधियों पर दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, उच्चाधिकार प्राप्त समिति और ओडिशा सरकार को नोटिस जारी किया. वन्यजीव संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण मामले में सीजेआई की अगुआई वाली तीन जजों की पीठ ने सतकोसिया टाइगर रिजर्व के भीतर और आसपास निर्माण और विकास गतिविधियों के लिए अंगुल, नयागढ़, बौध और कटक के जिला कलेक्टरों द्वारा दिए गए अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) को रद्द करने की मांग वाली याचिका के जवाब में जारी किया गया है.
CJI जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजरिया की पीठ के समक्ष याचिकाकर्ता के वकील गौरव कुमार बंसल ने बताया कि पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील और कानूनी रूप से संरक्षित सतकोसिया टाइगर रिजर्व में पर्यटन बुनियादी ढांचे और अन्य प्रस्तावित निर्माणों के अनियंत्रित विस्तार गंभीर चिंता का विषय है.
याचिका में इस बात पर जोर दिया गया है कि 2007 में अधिसूचित और 1,136.70 वर्ग किमी में फैला सतकोसिया टाइगर रिजर्व, एक अनूठा पारिस्थितिक परिदृश्य है. इसमें महानदी द्वारा विभाजित सतकोसिया गॉर्ज अभयारण्य और बैसीपल्ली वन्यजीव अभयारण्य भी शामिल हैं. यह क्षेत्र एशियाई हाथी, घड़ियाल और मगरमच्छ जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों का घर है.
इस रिजर्व को इसकी समृद्ध जलीय और पक्षी जैव विविधता के कारण रामसर साइट के रूप में भी मान्यता दी गई है. क्षेत्र की माननीय पारिस्थितिक विविधता के कारण अंतिम अधिसूचित इको-सेंसिटिव ज़ोन (ईएसजेड) की कमी इस क्षेत्र को पर्यावरणीय शोषण के लिए खुला छोड़ देती है. एनटीसीए के 2018 के दिशानिर्देशों में टाइगर रिजर्व के आसपास न्यूनतम 1-किमी ईएसजेड की आवश्यकता होती है
याचिका में यह भी खुलासा किया गया है कि महानदी पर एक उच्च स्तरीय पुल और वाणिज्यिक होटल और रिसॉर्ट्स बनाने की योजना आवश्यक पर्यावरणीय मंजूरी के बिना बनाई जा रही है. पर्यटन के लिए ऐसे बुनियादी ढांचे के लिए अनंतिम एनओसी मुख्य वन्यजीव वार्डन और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) जैसे वैधानिक अधिकारियों के परामर्श के बिना जारी किए गए हैं.
बंसल ने अपनी याचिका में कहा कि वन, वन्यजीव और पर्यावरण कानून के तहत महत्वपूर्ण सुरक्षा उपायों को राज्य एजेंसियों द्वारा अनधिकृत निर्माण, अधिकार क्षेत्र से बाहर अनुमोदन और पर्यटन-आधारित विकास मॉडल के माध्यम से सक्रिय रूप से कमजोर किया जा रहा है, जो स्थापित संरक्षण आदेशों की अवहेलना करता है.
बंसल ने तर्क दिया कि ओडिशा सरकार की कार्रवाई संरक्षण से व्यावसायीकरण की ओर एक सचेत नीतिगत बदलाव का प्रतिनिधित्व करती है. यह एनटीसीए के 2012 के दिशानिर्देशों और एमओईएफसीसी के 2021 के इको-पर्यटन मानदंडों का उल्लंघन करती है. इतना ही नहीं यह समुदाय-आधारित, कम प्रभाव वाले पर्यटन को अनिवार्य करते हैं और संरक्षित क्षेत्रों के अंदर स्थायी संरचनाओं को प्रतिबंधित करते हैं.