सदन में वोट के बदले नोट के मामले में SC की संविधान पीठ ने सुनवाई पूरी की, फैसला सुरक्षित

सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि सदन में वोट के लिए रिश्वत में शामिल सांसदों/विधायकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई से छूट दी जाए या नहीं

विज्ञापन
Read Time: 28 mins
सुप्रीम कोर्ट.
नई दिल्ली:

सदन में वोट के बदले नोट के मामले में सात जजों की संविधान पीठ (Constitution bench) ने सुनवाई पूरी करके फैसला सुरक्षित रखा है. दो दिनों की सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) तय करेगा कि सदन में वोट के लिए रिश्वत (bribery for votes) में शामिल सांसदों/विधायकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई से छूट दी जाए या नहीं. 

सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने छूट निर्धारित करने के लिए एक कार्यात्मक परीक्षण का सुझाव दिया और कहा कि यह परिणाम के डर के बिना, एक विधायक/ सासंद के कर्तव्य का निर्वहन करने के लिए आवश्यक बोलने या मतदान के कार्यों तक विस्तारित हो सकता है.

दरअसल अनुच्छेद 105(2) संसद सदस्यों (सांसदों) को संसद या किसी संसदीय समिति में उनके द्वारा कही गई किसी भी बात या दिए गए वोट के संबंध में अभियोजन से छूट प्रदान करता है. जबकि अनुच्छेद 194(2) विधानसभा सदस्यों (विधायकों) को समान सुरक्षा प्रदान करता है.

Advertisement

आपराधिक कार्य में भी क्या सदन में विशेषाधिकार का कवच काम करेगा?


इससे पहले बुधवार को  CJI जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि किसी आपराधिक कार्य में भी क्या सदन में विशेषाधिकार का कवच काम करेगा? क्या हमें कानून के दुरुपयोग की आशंका पर राजनीतिक भ्रष्टाचार को छूट देनी चाहिए? क्योंकि कानून के दुरुपयोग की आशंका अदालत से सुरक्षा के लिए उत्तरदायी होती है. हम सिर्फ इस बेहद महीन मुद्दे पर विचार करेंगे कि जब मामला आपराधिक कृत्य का हो तब भी विशेषाधिकार का संरक्षण मिलेगा या नहीं, क्योंकि कानून और उसके तहत संरक्षण के प्रावधानों का इस्तेमाल राजनीतिक भ्रष्टाचार के लिए नहीं किया जा सकता. 

Advertisement

CJI ने कहा कि घूसखोरी के मुद्दे को थोड़ी देर के लिए भूल भी जाएं तो सवाल हैं. मान लीजिए किसी ने किसी सांसद पर कोई मुकदमा कर दिया कि उसने सदन में किसी अहम मुद्दे पर चुप्पी साध ली, ऐसे में विशेषाधिकार की बात जायज है. 

Advertisement

जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने कहा कि हम संवैधानिक प्रावधान और उसके इस्तेमाल के बीच संतुलन बनाने के नजरिए से इस मामले में सुनवाई कर रहे हैं.  

Advertisement

वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन ने दलील दी कि कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने पीवी नरसिम्हा राव मामले में समुचित तार्किक और मजबूत फैसला दे रखा है, उससे सारी चीजें स्पष्ट हैं. 

राजनीतिक नैतिकता संविधान के अनुच्छेद 10 से निर्देशित


CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि कोई अदालत किसी से ये नहीं कहेगी कि आपने भाषण में यह या वह बात क्यों बोली? या आपने किसी खास को ही वोट क्यों डाला? राजनीतिक नैतिकता संविधान के अनुच्छेद 10 से निर्देशित होती है. 

वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि रिश्वतखोरी के तथ्य सामने आने के बाद इसमें अपराधिक पहलू आया है. सदन में सदस्य को ज्यादा आजादी रहेगी. इस पर CJI ने कहा कि हम इस पहलू पर नहीं जा रहे हैं. हम राजाराम पाल वाले फैसले पर पुनर्विचार नहीं करेंगे. हमारा मानना है कि बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी पर कोई शिकंजा नहीं होना चाहिए. 

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सात जजों की संविधान पीठ का गठन किया गया है. CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जेबी पारदीवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच सुनवाई कर रही है. 

इससे पहले 20 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया था. सदन में वोट के लिए रिश्वत में शामिल सांसदों/विधायकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई से छूट पर फिर से विचार करने को सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया था. 

पीवी नरसिम्हा राव मामले में फैसले पर फिर से विचार


पांच जजों की संविधान पीठ ने 1998 के पीवी नरसिम्हा राव मामले में अपने फैसले पर फिर से विचार करने का फैसला लिया. मामले को सात जजों की संविधान पीठ को भेजा गया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह राजनीति की नैतिकता पर प्रभाव डालने वाला एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. 

कोर्ट यह तय करेगा कि अगर सांसद या विधायक सदन में मतदान के लिए रिश्वत लेते हैं तो क्या तब भी उन पर मुकदमा नहीं चलेगा? 1998 का नरसिम्हा राव फैसला सांसदों को मुकदमे से छूट देता है. इसी फैसले पर दोबारा विचार होगा.  

JMM के सांसदों ने कथित रूप से रिश्वत ली थी


CJI चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि पीठ झारखंड मुक्ति मोर्चा सांसदों के रिश्वत मामले में फैसले की नए सिरे से जांच करेगी. इसमें 1993 में राव सरकार के खिलाफ विश्वास प्रस्ताव के दौरान सांसदों ने कथित तौर पर किसी को हराने के लिए रिश्वत ली थी. 

CJI ने कहा था, विधायिका के सदस्यों को परिणामों के डर के बिना सदन के पटल पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए. जबकि अनुच्छेद 19(1)(ए) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के व्यक्तिगत अधिकार को मान्यता देता है. 105(2) और 194(2) का उद्देश्य प्रथम दृष्टया आपराधिक कानून के उल्लंघन के लिए दंडात्मक कार्यवाही शुरू करने से प्रतिरक्षा प्रदान करना नहीं लगता है, जो संसद के सदस्य के रूप में अधिकारों और कर्तव्यों के प्रयोग से स्वतंत्र रूप से उत्पन्न हो सकता है.  ऐसे मामले में छूट केवल तभी उपलब्ध होगी जब दिया गया भाषण या दिया गया वोट देनदारी को जन्म देने वाली कार्यवाही के लिए कार्रवाई के कारण का एक आवश्यक और अभिन्न अंग है. 

मामला सीता सोरेन बनाम भारत संघ

यह मामला सीता सोरेन बनाम भारत संघ है. यह मामला जनप्रतिनिधि की रिश्वतखोरी से संबंधित है. इस मामले के तार नरसिंहराव केस से जुड़े हैं जहां सांसदों ने वोट के बदले नोट लिए थे. यह मसला अनुच्छेद 194 के प्रावधान दो से जुड़ा है जहां जन प्रतिनिधि को उनके सदन में डाले वोट के लिए रिश्वत लेने पर मुकदमे में घसीटा नहीं जा सकता, उन्हें छूट दी गई है. 

इस मामले में याचिकाकर्ता सीता सोरेन झारखंड के मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भाभी हैं और उस समय हुए वोट के लिए नोट लेने की आरोपी भी. सीता के खिलाफ सीबीआई जांच कराने की गुहार लगाते हुए 2012 में निर्वाचन आयोग में शिकायत दर्ज कराई गई थी. सीता सोरेन को जनसेवक के तौर पर गलत काम करने के साथ आपराधिक साजिश रचकर जन सेवक की गरिमा घटाने वाला काम करने का आरोपी बनाया गया था. झारखंड हाईकोर्ट ने 2014 में केस रद्द कर दिया था. तब हाईकोर्ट ने कहा कि सीता ने उस पाले में वोट नहीं किया था जिसके बारे में रिश्वत की बात कही जा रही है. 

Featured Video Of The Day
Russia Ukraine War: यूक्रेन पर मिसाइल दागकर Vladimir Putin ने मददगारों को धमकाया | NDTV India
Topics mentioned in this article