फीस वृद्धि को लेकर स्टूडेंट और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में ठनी, छात्रों ने निकाला मशाल जुलूस

विश्वविद्यालय प्रशासन कह रहा है कि यूजीसी से ग्रांट कम हो गई है, अपने खर्चे खुद उठाने के लिए सरकार कहती है. लिहाजा फीस बढ़ाना उनकी मजबूरी है.

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इलाहाबाद (यूपी):

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र बीते 11 दिनों से छात्र संघ भवन पर आमरण अनशन पर बैठे हुए हैं. यह अनशन उस फीस वृद्धि के खिलाफ है, जिसमें छात्र कह रहे हैं कि तकरीबन 400 परसेंट की वृद्धि कर दी गई है. इसको लेकर छात्रों ने पहले ज्ञापन देकर विरोध किया. जब उनकी बात नहीं मानी गई तब वो आमरण अनशन पर बैठ गए. इसके साथ ही वह अपने आंदोलन को धार देने के लिए मशाल जुलूस के साथ दूसरे तरीके की गतिविधियां भी कर रहे हैं, लेकिन प्रशासन अभी इनकी मांग को लेकर खामोश है.

गुरुवार शाम इलाहाबाद विश्वविद्यालय से चंद्रशेखर आजाद पार्क तक जाने वाले रास्ते में सैकड़ों मशालें जल उठीं. इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों के हाथों में ये मशाल विश्वविद्यालय की 400% फीस वृद्धि को लेकर थी. छात्र कह रहे हैं कि तमाम कोशिशों के बावजूद भी प्रशासन जब उनकी समस्या नहीं देख पा रहा था, तो यह मशाल जलानी पड़ी है. अगर अब भी प्रशासन नहीं जागा, तो फिर बड़ा आंदोलन होगा.

छात्र राहुल पटेल ने कहा कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय में जिस तरह से छात्रों के हितों पर कुठाराघात किया जा रहा है, उसको लेकर छात्र आज 10 दिन से आमरण अनशन पर बैठे हैं. इलाहाबाद कुलपति को सैकड़ों बार ज्ञापन दिया गया, सरकार को ज्ञापन के जरिए अवगत कराया गया, लेकिन किसी ने हमारी नहीं सुनी. इसीलिए आज छात्र मशाल जलाकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय से आजाद चौक तक जुलूस निकाल रहे हैं. अगर अब भी फीस वृद्धि को वापस नहीं लेंगे, तो हम आगे बड़ा आंदोलन करेंगे. जिसकी जिम्मेदारी विश्वविद्यालय प्रशासन की होगी.

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इस मशाल जुलूस के बाद छात्रों के आंदोलन उग्र होने के अंदेशे पर विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्रसंघ भवन के पास के इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मुख्य गेट पर ताला लगा दिया, जिससे कि छात्र अंदर बाहर नहीं जा सके. आंदोलनरत छात्रों को यह नागवार गुजरा लिहाजा आज सुबह उस गेट का ताला तोड़ दिया. छात्र तोड़ने की वजह बताते हैं कि उनके आंदोलनरत साथी की तबीयत खराब हो रही थी, गेट में ताला बंद होने की वजह से एंबुलेंस नहीं आ पा रही थी, जिसकी वजह से उन्हें यह कदम उठाना पड़ा.

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छात्र सत्यम कुशवाहा ने कहा कि छात्रों के इस आंदोलन को देखकर विश्वविद्यालय फरमान जारी करता है. इलाहाबाद विश्वविद्यालय का जो मुख्य मार्ग है इसे बंद कर दिया जाए. आज हमारे आंदोलनरत साथी की तबीयत खराब हो गई. उसको ले जाने के लिए हमने इस यूनियन गेट के ताले को तोड़ दिया, और अगर इसे दोबारा बंद किया जाता है तो हम रजिस्ट्रार के गेट में ताला लगाएंगे.

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गौरतलब है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय में फीस वृद्धि को लेकर छात्र तकरीबन 11 दिनों से अनशन पर बैठे हैं. इसके पहले उन लोगों ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय और सरकार को ज्ञापन देकर अपनी बात कहने की कोशिश की थी और जब उनकी बात नहीं सुनी गई तो वह आमरण अनशन पर बैठ गए. अनशन पर बैठे तकरीबन पांच छह बच्चों की तबीयत खराब हुई है और वह अस्पताल में भर्ती भी हुए हैं, लेकिन फिर भी छात्र अपनी मांग को लेकर डटे हुए हैं. क्योंकि उन्हें लगता है कि इस फीस वृद्धि की वजह से आम किसान परिवार का बच्चा शिक्षा से वंचित हो जाएगा.

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छात्र अमित कुमार पांडे ने कहा कि 400 प्रतिशत की फीस वृद्धि कहीं ना कहीं हम गरीब छात्रों पर मार है. एक मध्यमवर्ग परिवार का किसान का बेटा एलएलबी करने के लिए ₹300 की जगह 6000 से 7000 रुपया कहां से देगा. इस तरह कर के छात्रों को शिक्षा से वंचित नहीं किया जाए.

इधर विश्वविद्यालय प्रशासन कह रहा है कि यूजीसी से ग्रांट कम हो गई है, अपने खर्चे खुद उठाने के लिए सरकार कहती है. लिहाजा फीस बढ़ाना उनकी मजबूरी है, फिर भी फी 1912 के बाद नहीं बढ़ी थी उस लिहाज से बहुत मामूली बढ़ाई है.

इलाहाबाद विश्वविद्यालय वीसी के पीआरओ जया ठाकुर ने कहा कि फीस की रिस्ट्रक्चरिंग की जरूरत थी, यूजीसी और गवर्नमेंट की तरफ से लगातार हो रहा है कि विश्वविद्यालय अपने रिसोर्सेज जहां तक हो सके गवर्न करें. हम लोगों के ग्रांट में कटौती हो रही है, यूनिवर्सिटी के डेवलपमेंट के लिए तो मिलता है नई चीज बनाने के लिए, लेकिन मेंटेनेंस हमें खुद करना पड़ता है. इसीलिए फीस बनाते समय हम लोगों ने छात्र हित को ध्यान में रखा और जितनी जरूरत थी, सिर्फ उतनी ही बढ़ाई है.

विश्वविद्यालय प्रशासन भले ही कह रहा है कि फीस 1922 के बाद बढ़ रही है, लेकिन छात्र कह रहे हैं कि 2001 में भी एक बार 5 गुना फीस बढ़ाई गई थी, जिस पर आंदोलन हुआ था. इसके बाद फीस वापस तो हुई थी, लेकिन फिर भी दोगुनी हो गई थी.

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