'26% अदालतों में लेडी टॉयलेट और 16% में कोई शौचालय नहीं', कानून मंत्री की मौजूदगी में CJI ने गिनाई कमियां

चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कहा कि मैंने अथॉरिटी बनाने का प्रस्ताव कानून मंत्री को भेज दिया है. अब मुझे इंतजार है, उस पर सरकार की सकारात्मक प्रतिक्रिया का ताकि नेशनल ज्युडिशियल इंफ्रास्ट्रक्चर अथॉरिटी शीघ्र बनाने की प्रक्रिया शुरू हो  क्योंकि देश भर की अदालतों में  इसकी बेहद जरूरत है

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CJI ने कहा कि देशभर में केवल 5% अदालत परिसरों में ही बुनियादी चिकित्सा सहायता उपलब्ध हैं.

नई दिल्ली:

देश के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना (CJI NV Ramana) ने आज केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू (Law Minister Kiren Rijiju)  के सामने ही मंच पर से देश भर की अदालतों में बुनियादी सुविधाओं की कमी पर कई चिंताओं को उठाया. बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ में एनेक्सी की दो इमारतों के लोकार्पण समारोह में महाराष्ट्र के औरंगाबाद में उन्होंने कानून मंत्री से यह सुनिश्चित करने का भी आग्रह किया कि संसद के शीतकालीन सत्र में राष्ट्रीय न्यायिक अवसंरचना प्राधिकरण की स्थापना का प्रस्ताव लिया जाए. 

मुख्य न्यायाधीश ने आज एक कार्यक्रम में कहा, "भारत में अदालतों के लिए न्यायिक बुनियादी ढांचे को हमेशा से नजरअंदाज किया गया है. ऐसा इसलिए कि यह एक धारणा बन गई है कि देश में अदालतें भी जीर्ण-शीर्ण संरचनाओं के साथ भी काम कर सकती हैं. लेकिन इससे अदालतों की कार्यक्षमता प्रबावित होती है और वहां काम करना मुश्किल हो जाता है." उन्होंने कहा, "कोर्ट के ढांचागत विकास से फरियादियों की भी अदालतों तक पहुंच आसान होती है और न्याय की राह आसान हो जाती है." 

उन्होंने कहा, "देशभर में केवल 5 प्रतिशत अदालत परिसरों में बुनियादी चिकित्सा सहायता उपलब्ध हैं. और 26 प्रतिशत अदालतों में "महिलाओं के लिए कोई अलग शौचालय नहीं हैं और 16 प्रतिशत अदालतों में पुरुषों के लिए भी शौचालय नहीं हैं."  इससे आगे CJI ने कहा, "लगभग 50 प्रतिशत न्यायालय परिसरों में पुस्तकालय नहीं है और 46 प्रतिशत न्यायालय परिसरों में शुद्ध पानी की भी सुविधा नहीं है."

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CJI रमना ने इस बाबत 2018 में प्रकाशित एक अंतर्राष्ट्रीय शोध रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि समय से न्याय मिलने से देश को 9 फीसद सालाना वृद्धि के जैसी ही लागत आती है.  बिना दुरुस्त ढांचे के हम लंबित मामलों और निपटाए जाने वाले मुकदमों की खाई नहीं पाट सकते.  

CJI ने आंकड़ों के हवाले से कहा कि अब ये हकीकत भी जान लें कि देश की सिर्फ 54 फीसदी अदालतों के परिसरों में ही पीने के साफ पानी का इंतजाम है. उन्होंने कहा कि 32 फीसदी अदालतों में ही अलग से रिकॉर्ड रूम हैं. और अबी सिर्फ 27 फीसदी कोर्ट में ही जजों के टेबल पर कंप्यूटर लगे हैं. बाकी 73 फीसदी जजों के टेबल पर तो फाइलें ही रहती हैं.

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चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कहा कि मैंने अथॉरिटी बनाने का प्रस्ताव कानून मंत्री को भेज दिया है. अब मुझे इंतजार है, उस पर सरकार की सकारात्मक प्रतिक्रिया का ताकि नेशनल ज्युडिशियल इंफ्रास्ट्रक्चर अथॉरिटी शीघ्र बनाने की प्रक्रिया शुरू हो  क्योंकि देश भर की अदालतों में  इसकी बेहद जरूरत है. समारोह में केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे सहित सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के कई जज शामिल हुए.

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