देश के लिए जो कर सकता था किया.. बहुत-बहुत धन्यवाद.. CJI बी आर गवई कुछ यूं हुए विदा

सप्रीम कोर्ट बार संघ के अध्यक्ष विकास सिंह ने CJI गवई की सादगी को याद करते हुए उनकी उस बात को याद किया कि वह जब अपने गांव गए थे तो सुरक्षाकर्मी नहीं ले गए थे और कहा था कि “अगर कोई मुझे मेरे ही गांव में मार रहा है, तो मैं जीने का हकदार नहीं हूं”

विज्ञापन
Read Time: 6 mins
CJI गवई का विदाई भाषण.
फटाफट पढ़ें
Summary is AI-generated, newsroom-reviewed
  • CJI बीआर गवई ने लगभग चार दशक की न्यायिक यात्रा के बाद संतोष और संतृप्ति के साथ सुप्रीम कोर्ट से विदाई ली.
  • उन्होंने कहा कि देश के लिए उन्होंने जो कुछ भी कर सकता था, न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप वह किया है.
  • उन्होंने पर्यावरण संरक्षण और नागरिक अधिकारों की रक्षा को अपने कार्यकाल में महत्वपूर्ण प्राथमिकता दी.
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
हमें बताएं।
नई दिल्ली:

देश के चीफ जस्टिस बीआर गवई ने शुक्रवार को अपने विदाई समारोह के दौरान भावुक हो गए. उन्होंने कहा कि देश के लिए जो कर सकता था किया. एक वकील और न्यायाधीश के रूप में करीब चार दशक की अपनी यात्रा के समापन पर संतोष और संतृप्ति की भावना के साथ और ‘न्याय के विद्यार्थी' के रूप में न्यायालय छोड़ रहा हूं. CJI गवई ने एक रस्मी पीठ के साने कहा कि आप सभी को सुनने के बाद, और खासकर अटॉर्नी जनरल (आर वेंकटरमणि) और कपिल सिब्बल की कविताओं और आप सभी की गर्मजोशी भरी भावनाओं को जानने के बाद, मैं भावुक हो रहा हूं.

ये भी पढ़ें- स्वागत के लिए जमीन पर लेटी महिलाएं... पीएम मोदी का दक्षिण अफ्रीका में कुछ यूं हुआ ग्रैंड वेलकम

पूरी संतुष्टि के साथ अदालत कक्ष से निकल रहा हूं

इस पीठ में नए चीफ जस्टिस नियुक्त हुए न्यायमूर्ति सूर्यकांत और जस्टिस विनोद चंद्रन भी थे. भावुक दिख रहे CJI गवई ने विधि अधिकारियों, वरिष्ठ अधिवक्ताओं और युवा वकीलों से खचाखच भरे अदालत कक्ष में कहा,“जब मैं इस अदालत कक्ष से आखिरी बार निकल रहा हूं तो पूरी संतुष्टि के साथ निकल रहा हूं, इस संतोष के साथ कि मैंने इस देश के लिए जो कुछ भी कर सकता था, वह किया है. …धन्यवाद, बहुत-बहुत धन्यवाद.''

PTI फोटो.

कार्यवाही के दौरान, अधिवक्ताओं ने CJI गवई की न्यायपालिका पर छोड़ी गई छाप को याद किया. बता दें कि CJI गवई, केजी बालकृष्णन के बाद दूसरे दलित और पहले बौद्ध प्रधान न्यायाधीश हैं. उन्होंने कहा, “मेरा हमेशा से मानना ​​है कि हर कोई, हर न्यायाधीश, हर वकील, उन सिद्धांतों से चलता है जिन पर हमारा संविधान काम करता है, यानी बराबरी, न्याय, आज़ादी और भाईचारा. मैंने संविधान के दायरे में रहकर अपना कर्तव्य अदा करने की कोशिश की, जो हम सभी को बहुत प्यारा है”

न्याय के एक छात्र के तौर पर पद छोड़ रहा हूं

बता दें कि CJI गवई ने 14 मई को चीफ जस्टिस के तौर पर छह महीने से अधिक कार्यकाल के लिए शपथ ली थी. वह 23 नवंबर, 2025 को पद छोड़ेंगे और शुक्रवार उनका आखिरी कार्य दिवस था. अपनी यात्रा के बारे में बता करते हुए चीफ जस्टिस ने कहा, “जब मैं 1985 में (कानून के) पेशे में आया, तो मैंने लॉ स्कूल में एडमिशन लिया. आज, जब मैं पद छोड़ रहा हूं, तो मैं न्याय के एक छात्र के तौर पर पद छोड़ रहा हूं.”

उन्होंने एक वकील से हाई कोर्ट के जस्टि, सुप्रीम कोर्ट के जज और आखिर में देश के चीफ जस्टिस के बनने के अपने 40 साल से ज़्यादा के सफर को “बहुत संतोषजनक” बताया. उन्होंने कहा कि हर पद को ताकत के तौर पर नहीं, बल्कि “समाज और देश की सेवा करने के मौके” के तौर पर देखा जाना चाहिए.

Advertisement

CJI गवई ने पिता को किया याद

डॉ. बीआर अंबेडकर के सहयोगी और अपने पिता की तारीफ करते हुए CJI गवई ने कहा कि उनका न्यायिक दर्शन आर्थिक और राजनीतिक न्याय के लिए आंबेडकर की प्रतिबद्धता पर आधारित है. उन्होंने हमेशा मौलिक अधिकारों को राज्य नीति के दिशानिर्देशक सिद्धांत के साथ संतुलित करने की कोशिश की. उनके कई फैसलों ने संवैधानिक स्वतंत्रता का सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण जरूरतों के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश की.

उन्होंने कहा कि पर्यावरण के मामले उनके दिल के करीब रहे हैं. उन्होंने पर्यावरण, पारिस्थितिकी और वन्यजीवन के मुद्दों से अपने लंबे जुड़ाव के बारे में बताया. CJI गवई ने कहा कि इन इतने सालों में उन्होंने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने की कोशिश की, साथ ही यह भी पक्का किया कि पर्यावरण और वन्यजीवन बना रहे.

Advertisement

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने की CJI गवई की तारीफ

न्यायालय में कामकाज के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि चीफ जस्टिस के तौर पर उन्होंने जो भी फैसले लिए, वे सब मिलकर लिए. उनका मानना ​​था कि हमें एक संस्थान के तौर पर काम करना चाहिए. वहीं चीफ जस्टिस की तारीफ करते हुए न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि वह एक सहकमी से कहीं ज़्यादा रहे. वह मेरे भाई और विश्वस्त हैं, और बहुत ईमानदार इंसान हैं. उन्होंने धैर्य और गरिमा के साथ मामलों को संभाला. युवा वकीलों को हिम्मत दी. उनकी सख्ती हमेशा हास्य से भरी होती थी. एक भी दिन ऐसा नहीं जाता था जब उन्होंने किसी हठी वकील को जुर्माना लगाने की धमकी न दी हो, लेकिन उन्होंने कभी ऐसा नहीं किया.

अटॉर्नी जनरल वेंकटरमणी ने “भूषण” का अर्थ आभूषण या साज-सज्जा बताते हुए कहा कि जस्टिस गवई ने न्यायपालिका और कानून की दुनिया को सजाया है. वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उनसे एक न्यायाधीश के तौर पर हुई मुलाकात को याद करते हुए कहा, “आप एक इंसान के तौर पर कभी नहीं बदले”

Advertisement

जानें किस-किस ने की CJI गवई की तारीफ

विधि अधिकारी ने हाल के फैसलों में “भारतीयता की ताजी हवा” की तारीफ की, और कहा कि राज्यपालों पर संविधान पीठ का फैसला पूरी तरह से देसी न्यायशास्त्र पर आधारित था. उन्होंने कहा, “निर्णय, निर्णय ही होना चाहिए, कानून समीक्षा का लेख नहीं.'' सप्रीम कोर्ट बार संघ के अध्यक्ष विकास सिंह ने CJI गवई की सादगी को याद करते हुए उनकी उस बात को याद किया कि वह जब अपने गांव गए थे तो सुरक्षाकर्मी नहीं ले गए थे और कहा था कि “अगर कोई मुझे मेरे ही गांव में मार रहा है, तो मैं जीने का हकदार नहीं हूं”

सिब्बल ने कहा कि उच्चतम न्यायालय में CJI गवई की नियुक्ति इस देश में हुए “बहुत बड़े सामाजिक मंथन” का प्रतीक है. सिब्बल ने कहा कि उनके सफर ने दिखाया है कि एक आदमी अपने न्यायिक करियर के सबसे ऊंचे मुकाम पर पहुंचकर भी एक आम आदमी की सादगी बनाए रख सकता है. बता दें कि जस्टिस गवई को 14 नवंबर, 2003 को मुंबई उच्च न्यायालय में अतिरिक्त् न्यायाधीश के रूप में प्रोन्नत किया गया था. वह 12 नवंबर, 2005 को उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश बने. 24 मई, 2019 को वह उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश बने.

Advertisement

इनपुट- भाषा

Featured Video Of The Day
Baba Siddique Murder: बाबा सिद्दीकी को मारने वाले गैंगस्टर जीशान अख्तर ने खोले कई राज | Breaking