नागरिकों को यह सुनिश्चित करने चाहिए कि प्रेस किसी भी प्रभाव से मुक्त रहे : न्यायमूर्ति चंद्रचूड़

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने छठे एम सी छागला स्मृति व्याख्यान में लॉ कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के छात्रों एवं संकाय सदस्यों और न्यायाधीशों को संबोधित करते हुए कहा कि यह तय करना सरकार पर नहीं छोड़ा जा सकता कि वह सत्य तय करे.

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सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि फेक न्यूज (फर्जी खबर) और झूठ से मुकाबले के लिए नागरिकों को यह सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिए कि प्रेस किसी भी प्रभाव-राजनीतिक या आर्थिक- से मुक्त हो और निष्पक्ष तरीके से जानकारी मुहैया कराये. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने छठे एम सी छागला स्मृति व्याख्यान में लॉ कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के छात्रों एवं संकाय सदस्यों और न्यायाधीशों को संबोधित करते हुए कहा कि यह तय करना सरकार पर नहीं छोड़ा जा सकता कि वह सत्य तय करे. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि यहां तक ​​कि वैज्ञानिकों, सांख्यिकीविदों, अनुसंधानकर्ताओं और अर्थशास्त्रियों जैसे विशेषज्ञों की राय हमेशा सच नहीं हो सकती है क्योंकि हो सकता है कि उनकी कोई राजनीतिक संबद्धता नहीं हो लेकिन उनके दावे वैचारिक लगाव, वित्तीय सहायता की प्राप्ति या व्यक्तिगत द्वेष के कारण प्रभावित हो सकते है.

उन्होंने कहा, ‘‘इस तरह, राष्ट्र की सभी नीतियों को हमारे समाज की सच्चाई के आधार पर बनाया हुआ माना जा सकता है. हालांकि, इससे किसी भी तरह से यह निष्कर्ष नहीं निकलता है कि सरकारें राजनीतिक कारणों से झूठ में लिप्त नहीं हो सकती, यहां तक ​​​​कि लोकतंत्र में.'' उन्होंने कहा, ‘‘वियतनाम युद्ध में अमेरिका की भूमिका पेंटागन पेपर्स के प्रकाशित होने तक सामने नहीं आयी थी.'' उन्होंने कहा कि महामारी के संदर्भ में, ‘‘हम देखते हैं कि दुनिया भर में देशों द्वारा कोविड​​​​-19 संक्रमण दर और मौतों पर आंकड़ों में हेरफेर करने की कोशिश की प्रवृत्ति सामने आयी है.'' उन्होंने कहा, ‘‘सबसे पहली बात यह करनी है कि हमें हमारे सार्वजनिक संस्थानों को मजबूत करना है. नागरिकों के रूप में, हमें यह सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिए कि हमारे पास एक ऐसा प्रेस हो जो किसी भी प्रकार के राजनीतिक या आर्थिक प्रभाव से मुक्त हो, जो हमें निष्पक्ष तरीके से जानकारी प्रदान करेगा.''

उन्होंने कहा कि विशेषज्ञों को अक्सर विचार मंचों द्वारा नियोजित किया जाता है जो विशिष्ट राय का समर्थन करने के लिए अनुसंधान करते हैं, लेकिन हाशिए पर रहने वाले समुदायों की सच्चाई अक्सर समाज में उनकी स्थिति के कारण सामने नहीं आ पाती.'' न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा ‘‘फर्जी समाचार'' या झूठी सूचना कोई नई प्रवृत्ति नहीं है और यी तब से है जब से प्रिंट मीडिया अस्तित्व में है, लेकिन प्रौद्योगिकी में तेज प्रगति और इंटरनेट पहुंच के प्रसार के साथ ही यह समस्या और बढ़ गई है. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने छठे न्यायमूर्ति एम सी छागला स्मारक व्याख्यान में ‘बलपूर्वक सत्य बोलना: नागरिक एवं कानून'' विषय पर अपने संबोधन में कहा कि विचारों के ध्रुवीकरण के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को दोषी ठहराया जाता है, ‘‘लेकिन ऐसा करने से हमारे समुदायों के भीतर गहरे अंतर्निहित मुद्दों की अनदेखी होती है.''

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उन्होंने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि "फर्जी समाचार" की घटनाएं बढ़ रही हैं. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘फर्जी समाचार या झूठी सूचना कोई नई घटना नहीं है, यह तब से अस्तित्व में है जब से ये प्रिंट मीडिया अस्तित्व में है. प्रौद्योगिकी में तेज प्रगति और इंटरनेट के प्रसार ने निश्चित रूप से इस समस्या को और बढ़ा दिया है.'' न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि लोकतंत्र को जीवित रहने के लिए सत्य की शक्ति की आवश्यकता होती है और ऐसे में यह माना जा सकता है कि एक ताकत के साथ सत्य बोलना एक अधिकार के साथ-साथ लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य भी है. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र और सच्चाई साथ-साथ चलते हैं. चंद्रचूड़ ने हालांकि, दार्शनिक हाना आरेंट को उद्धृत करते हुए कहा कि ‘‘अधिनायकवादी सरकारें प्रभुत्व स्थापित करने के लिए लगातार झूठ पर भरोसा करती हैं.'' उन्होंने कहा, ‘‘इसी तरह, आधुनिक लोकतंत्र में सत्य महत्वपूर्ण है जिसे तर्क के क्षेत्र के रूप में वर्णित किया जाता है. किसी भी निर्णय के पीछे पर्याप्त तर्क होने चाहिए तथा ऐसा तर्क जो झूठ पर आधारित हो, वह कोई तर्क नहीं होता.''

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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