भारत के चीफ जस्टिस (CJI) बी. आर. गवई ने 3 अक्टूबर, शुक्रवार को मॉरीशस में "सबसे बड़े लोकतंत्र में कानून का शासन" विषय पर आयोजित एक व्याख्यान के दौरान स्पष्ट किया कि भारतीय न्याय व्यवस्था 'बुलडोजर के शासन से नहीं, बल्कि कानून के शासन' से संचालित होती है. उन्होंने अपने ही एक फैसले का उल्लेख किया, जिसमें उच्चतम न्यायालय ने यह माना था कि कथित अपराधों के लिए अभियुक्तों के घरों को गिराना (बुलडोजर जस्टिस) कानूनी प्रक्रियाओं को दरकिनार करता है, कानून के शासन का उल्लंघन करता है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आश्रय के मौलिक अधिकार का हनन करता है. CJI गवई के इस बयान ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि कार्यपालिका न्यायिक भूमिका नहीं निभा सकती.
हालांकि, उनकी इस टिप्पणी पर भाजपा सांसद प्रवीण खंडेलवाल ने पलटवार करते हुए कहा है कि "बुलडोजर एक वो भाषा है, जिसे टेढ़ा आदमी भी समझता है," जिससे इस कानूनी बहस ने राजनीतिक रंग ले लिया है. CJI ने अपने संबोधन में केशवानंद भारती मामले, तीन तलाक को समाप्त करने वाले फैसले और निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार मानने वाले फैसलों का भी ज़िक्र किया, जिससे यह रेखांकित किया कि कानून का शासन भारत में सुशासन और सामाजिक प्रगति के मानक के रूप में कार्य करता है.
CJI गवई का यह बयान भारत के उन राज्यों की प्रशासनिक कार्रवाई पर सीधा संदेश है, जहाँ अपराध के आरोपियों के अवैध निर्माणों को ढहाने के लिए बुलडोजर का उपयोग अक्सर किया जाता है. CJI का यह स्पष्टीकरण न्यायिक व्यवस्था की सर्वोच्चता को स्थापित करता है, जो बताता है कि कोई भी प्रशासनिक कार्रवाई (जैसे तोड़फोड़) कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन नहीं कर सकती और नागरिक के मौलिक अधिकारों से समझौता नहीं किया जा सकता. यह बयान कार्यपालिका को उनकी सीमाओं और शक्तियों के दुरुपयोग न करने की चेतावनी देता है.
दूसरी ओर, भाजपा सांसद प्रवीण खंडेलवाल की प्रतिक्रिया यह दर्शाती है कि सत्तारूढ़ दल का एक वर्ग बुलडोजर की कार्रवाई को अनुशासन और त्वरित दंड की एक प्रभावी भाषा के रूप में देखता है, जिसे उनके अनुसार, कानून को तोड़ने वाले 'टेढ़े आदमी' तुरंत समझते हैं. यह प्रतिक्रिया कानून के शासन और तेज़ प्रशासनिक कार्रवाई के बीच चल रहे राजनीतिक और कानूनी द्वंद्व को उजागर करती है.