J&K में चुनाव, जनगणना और महिला आरक्षण : गृह मंत्री अमित शाह को इन 10 चुनौतियों का करना होगा सामना

नए कार्यकाल का कामकाज संभालते ही गृह मंत्री अमित शाह ने साफ कर दिया कि आगामी पांच सालों में क्या-क्या काम किया जाएगा. साथ ही किन क्षेत्रों पर ज्यादा फोकस किया जाएगा.

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अमित शाह ने बतौर गृह मंत्री मंगलवार को कार्यभार संभाल लिया.
नई दिल्ली:

नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बन गए हैं. उन्होंने दूसरी बार अमित शाह (Amit Shah) को गृह मंत्री बनाया है.  नए कार्यकाल का कामकाज संभालते ही अमित शाह ने साफ कर दिया कि आगामी पांच सालों में क्या-क्या काम किया जाएगा. साथ ही किन क्षेत्रों पर ज्यादा फोकस किया जाएगा. अमित शाह ने पीएम मोदी का शुक्रिया अदा करते हुए ये भी कहा कि प्रधानमंत्री के सुरक्षित और मजबूत भारत के सपने को साकार करने के लिए तेजी से काम किया जाएगा.

नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में अमित शाह सरकार का हिस्सा नहीं थे. वो सरकार के बाहर रहकर पार्टी के कामों में जुटे थे. दूसरे कार्यकाल में उन्हें गृह मंत्री बनाया गया था. इस दौरान शाह ने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 को निरस्त करने और नागरिकता संशोधन कानून (CAA) लागू करने समेत कई अहम फैसले लिए. आइए समझते हैं कि मोदी 3.0 में गृह मंत्रालय की जिम्मेदारियां संभालने वाले अमित शाह के सामने कौन सी 10 चुनौतियां:-

1. जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव और राज्य की बहाली
अमित  शाह के नेतृत्व में केंद्र और गृह मंत्रालय के लिए तत्काल चुनौती जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराना और उसका राज्य का दर्जा बहाल करना है. क्योंकि पांच साल पहले जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा वापस ले लिया गया था और इसे केंद्र शासित प्रदेश में बदल दिया गया था.

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मोदी सरकार वैसे तो आतंकवाद को लेकर 'जीरो टॉलरेंस' की नीति अपनाती है. लेकिन जम्मू-कश्मीर में इस नीति को चुनौतियां मिली हैं. पिछले एक महीने में पीर पंजाल एक्सिस के दक्षिण में दो बड़े आंतकी हमले हुए हैं. 5 मई को पुंछ में सेना के काफिले पर हमला हुआ था, जिसमें एयरफोर्स के एक अधिकारी की मौत हो गई थी. जबकि 4 लोग घायल हो गए थे. अब आतंकियों ने रियासी जिले में तीर्थयात्रियों को निशाना बनाया. दोनों हमलों की जिम्मेदारी लश्कर समर्थित TRF ने ली थी.

बेशक खुफिया ग्रिड को मजबूत किया गया है, लेकिन वो विदेशी आतंकवादियों के इस समूह को पकड़ने में सक्षम नहीं हैं. लिहाजा गृह मंत्रालय को इस साल जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों के सुचारू संचालन के लिए योजनाओं को सही तरीके से लागू करना होगा. सुरक्षा के चाक-चौबंद इंतजाम करने होंगे.

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इसके साथ ही चुनाव के बाद जम्मू-कश्मीर में राज्य का दर्जा बहाल करने के वादे को पूरा करने की जिम्मेदारी भी शाह के कंधों पर है. लिहाजा वो सबसे पहले यह सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहेंगे कि पाकिस्तान का छद्म युद्ध (प्रॉक्सी वॉर) शांति में खलल न डाले.

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2. मणिपुर में शांति बहाली
मणिपुर 3 मई 2023 से हिंसा की आग में जल रहा है. गृह मंत्रालय की तमाम कोशिशों के बाद भी राज्य सरकार राज्य में जातीय हिंसा पर अंकुश नहीं लगा पाई है. अब जिरबाम जिला समेत नए क्षेत्रों में हिंसा की आग पहुंच गई है. ऐसे में शांति की राह देख रहे मणिपुर में फिर से कानून-व्यवस्था को कायम करना बड़ी चुनौती है. इसके साथ ही मणिपुर को फिर से मेन स्ट्रीम में लाना होगा. वैसे गृह मंत्रालय की तरफ से इसके लिए लगातार काम किया जा रहा है. लेकिन बीच-बीच में हिंसा की घटनाएं भी सामने आ रही हैं. ऐसे में वहां शांति बहाली का काम आसान नहीं होगा.

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने भी कहा कि शांति की राह देख रहे मणिपुर को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. वहां हिंसा बंद होनी चाहिए. 

इस बीच ग्राउंड पर मौजूद एक अधिकारी बताते हैं कि वहां तनाव क्यों बढ़ता जा रहा है? अधिकारी ने बताया, "कई क्षेत्रों में टारगेटेड एक्सटॉर्शन यानी लक्षित जबरन वसूली अभी भी जारी है. अमित शाह की अपील के बावजूद चुराए गए सभी हथियार वापस नहीं किए गए हैं.'' ऐसे में साफ है कि ज्यादातर जिलों में जातीय हिंसा न फैले, इसके लिए केंद्र को सख्त कदम उठाने होंगे.

3. सिख उग्रवाद
हाल के दिनों में कनाडा के साथ भारत के रिश्ते मुश्किल में दिख रहे हैं. मेपल देश में खालिस्तान समर्थक अलगाववादी समूहों की मौजूदगी को लेकर भी तनाव बना हुआ है. खुफिया एजेंसियों ने पंजाब में कट्टरवाद और अलगाववाद के मुद्दे को भी खतरे में डाल दिया है. लोकसभा चुनाव में खालिस्तानी विचारक अमृतपाल सिंह समेत दो सिख कट्टरपंथियों ने पंजाब से जीत हासिल की है. यह कट्टरपंथियों के बढ़ते प्रभाव को रेखांकित करती है. लिहाजा गृह मंत्रालय के सामने अलगाववाद को रोकने की भी बड़ी चुनौती है.

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4. नये कानूनों को लागू करने की चुनौती
देश की आपराधिक न्याय प्रणाली को एक नया आकार देने के मकसद से अमित शाह ने तीन क्रांतिकारी कानून पेश किए थे. अब गृह मंत्रालय के सामने भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 को लागू करने की चुनौती है. ये तीनों कानून भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे. 

अमित शाह द्वारा 2023 में संसद में पेश किए गए ये कानून 1 जुलाई से लागू होने वाले हैं. गृह मंत्रालय के एक सीनियर अधिकारी बताते हैं, ''कई राज्यों में अपर्याप्त प्रशिक्षित कर्मियों और साज-सामान की कमी है. लिहाजा नए कानूनों को लागू करना एक चुनौतीपूर्ण कदम हो सकता है."

5. चीन भारत सीमा विवाद
गृह मंत्रालय के लिए अगले पांच साल अनसुलझे चीन-भारत सीमा विवाद (Sino-India Border Dispute) से पैदा होने वाली परेशानियों और खतरों से निपटने के लिए भी महत्वपूर्ण होंगे. क्योंकि सिनो-भारत सीमा विवाद राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से चुनौतीपूर्ण बना हुआ है.

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6. यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) को लागू करना
यूनिफॉर्म सिविल कोड मोदी सरकार का एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसे देशभर में लागू करना बहुत बड़ी चुनौती साबित होगी. बतौर गृह मंत्री अमित शाह को अपने दृष्टिकोण से सभी कठिनाइयों पर काबू पाना होगा.

7. नक्सल प्रभावित इलाकों में शांति
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में देश को नक्सली मुक्त करने के दावे किए गए थे. अमित शाह ने माओवादी हिंसा को खत्म करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, नक्सलवादी या माओवादी हिंसा में 70 प्रतिशत की कमी आई है. शाह ने वादा किया है कि देश अगले तीन साल में माओवादी समस्या से मुक्त हो जाएगा. इसलिए उनके नेतृत्व में सावधानीपूर्वक ऑपरेशन जारी रखना होगा.

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8. नागा शांति समझौता
नागा शांति वार्ता अब तक बेनतीजा रही है. लिहाजा अमित शाह के नेतृत्व में गृह मंत्रालय रणनीतिक शांति समझौते के माध्यम से पूर्वोत्तर राज्यों में शांति बहाल करने की कोशिश करेगा. 

9. जनगणना के आंकड़े जारी करना
आम चुनाव के कारण जनगणना कराने की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है. लोकसभा चुनाव में कई राज्यों में जातिगत जनगणना की मांग उठाई गई है. इसमें नीतीश कुमार भी शामिल हैं, जिनकी पार्टी केंद्र की NDA सरकार में भागीदार है. ऐसे में गृह मंत्रालय के लिए आगे की राह आसान नहीं होने वाली. यह देखना दिलचस्प होगा कि अपनी चाणक्य नीति के लिए चर्चित अमित शाह इस समस्या का क्या तोड़ निकालते हैं.

10. महिला आरक्षण को लागू करना
128वां संवैधानिक संशोधन विधेयक 2023 या नारी शक्ति वंदन अधिनियम अभी लागू नहीं हुआ है. जनगणना को ध्यान में रखते हुए 2026 के परिसीमन के बाद ही इसे लागू किया जाएगा. सीधे शब्दों में कहें तो महिला आरक्षण विधेयक दशकीय जनगणना के बाद ही लागू हो सकता है. इसे लागू करना सरकार के लिए आसान नहीं होगा.

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