केंद्र ने हिमालय क्षेत्र में आबादी का दबाव सहन करने की क्षमता पर आकलन के लिए निर्देश मांगा

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अशोक कुमार राघव नाम के व्यक्ति द्वारा दायर की गई जनहित याचिका के जवाब में यह हलफनामा दाखिल किया गया है. इससे पहले, 21 अगस्त को न्यायालय ने केंद्र और याचिकाकर्ता को चर्चा करने और एक उपाय सुझाने को कहा था, ताकि न्यायालय हिमालय क्षेत्र के राज्यों और शहरों के जनसंख्या का दबाव सहन कर सकने की क्षमता पर निर्देश जारी कर सके.

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नई दिल्ली: केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से हिमालय क्षेत्र के 13 राज्यों को यह निर्देश देने का अनुरोध किया है कि वे जनसंख्या का दबाव सहन कर सकने की अपनी क्षमता का आकलन करें और उनमें से प्रत्येक की ओर से सौंपी गई कार्य योजना का मूल्यांकन करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का प्रस्ताव किया. ‘जनसंख्या का दबाव सहन कर सकने की क्षमता', आबादी का वह अधिकतम आकार है, जिसे पारिस्थितिकी तंत्र खुद को नुकसान पहुंचाये बगैर बनाये रख सकता है.

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अशोक कुमार राघव नाम के व्यक्ति द्वारा दायर की गई जनहित याचिका के जवाब में यह हलफनामा दाखिल किया गया है. इससे पहले, 21 अगस्त को न्यायालय ने केंद्र और याचिकाकर्ता को चर्चा करने और एक उपाय सुझाने को कहा था, ताकि न्यायालय हिमालय क्षेत्र के राज्यों और शहरों के जनसंख्या का दबाव सहन कर सकने की क्षमता पर निर्देश जारी कर सके.

याचिका में, 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में फैले हिमालय क्षेत्र के लिए जनसंख्या का दबाव सहन कर सकने की क्षमता और ‘मास्टर प्लान' का आकलन करने का अनुरोध किया गया है.

मंत्रालय ने शीर्ष न्यायालय को बताया कि उसने हिमालय क्षेत्र के सभी 13 राज्यों के शहरों और पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों सहित पर्वतीय पर्यटन स्थलों की जनसंख्या का दबाव सहन कर सकने की क्षमता का आकलन करने के लिए अतीत में 30 जनवरी 2020 के अपने पत्र के जरिये दिशानिर्देश दिये थे.

मंत्रालय ने न्यायालय को बताया कि उसने 19 मई 2023 को स्मरण पत्र भेजकर राज्यों से अनुरोध किया था कि यदि इस तरह के अध्ययन नहीं किये गये हैं तो वे इस उद्देश्य के लिए कार्य योजना सौंप सकते हैं.

मंत्रालय ने कहा, ‘‘उपरोक्त उल्लेख किये गये कदमों के आलोक में प्रतिवादी (मंत्रालय) द्वारा उठाये गये कदम, जहां क्षेत्र में विशेषज्ञों ने व्यापक कार्य किये हैं, यह जरूरी है कि प्रत्येक पर्वतीय पर्यटन स्थल के तथ्यात्मक पहलुओं की विशेष रूप से पहचान की जाए और स्थानीय प्राधिकारियों की मदद से जानकारी जुटाई जाए.''

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पिछले महीने मानसून की बारिश से हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में व्यापक स्तर पर हुए नुकसान के मद्देनजर केंद्र का हलफनामा महत्व रखता है. मंत्रालय ने कहा कि प्रत्येक पर्वतीय पर्यटन स्थल की जनसंख्या का दबाव सहन कर सकने की क्षमता का सटीक आकलन करने का अंतिम लक्ष्य हासिल करने के लिए कुछ कदम उठाने होंगे.

केंद्र ने कहा, ‘‘हिमालय क्षेत्र के सभी 13 राज्यों को जी बी (गोविंद बल्लभ) पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान द्वारा तैयार दिशानिर्देशों के अनुसार, जनसंख्या का दबाव सहन कर सकने की क्षमता का आकलन करने के लिए कदम उठाने के वास्ते समयबद्ध तरीके से एक कार्रवाई रिपोर्ट और एक कार्य योजना प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जाए.''

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इसने इन सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को संबद्ध राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में, समयबद्ध तरीके से एक समिति गठित करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया है. समिति गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान द्वारा तैयार दिशानिर्देशों के मुताबिक एक अध्ययन करेगी.

सरकार ने कहा कि यह संस्थान उत्तराखंड के अल्मोड़ा में स्थित है. यह राष्ट्रीय हरित अधिकरण के समक्ष लंबित मामलों में, जनसंख्या का दबाव सहन कर सकने की क्षमता के विषय पर राज्य के मसूरी और हिमाचल प्रदेश के मनाली और मैक्लॉडगंज के लिए एक विशेष अध्ययन कर रहा है.

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सरकार ने कहा कि इसलिए जनसंख्या का दबाव सहन कर सकने की क्षमता का अध्ययन करने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने में संस्थान के अनुभव को ध्यान में रखते हुए यह सुझाव दिया जाता है कि हिमालय क्षेत्र के 13 राज्यों द्वारा तैयार किए गए संबद्ध अध्ययन की जांच/मूल्यांकन जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान के निदेशक की अध्यक्षता वाली एक तकनीकी समिति द्वारा की जा सकती है.

याचिका में कहा गया है, ‘‘जनसंख्या का दबाव सहन कर सकने की क्षमता का अध्ययन नहीं किये जाने के चलते, भूस्खलन, जमीन धंसने, भूमि में दरार पड़ने जैसे गंभीर भूगर्भीय खतरे पैदा हो रहे हैं, जैसा कि जोशीमठ (उत्तराखंड) में देखने को मिल रहा है. साथ ही, पर्वतीय क्षेत्रों में गंभीर पारिस्थितिकीय एवं पर्यावरणीय विनाश हो रहा है.''

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याचिका में कहा गया है, ‘‘हिमाचल प्रदेश में धौलाधर सर्किट, सतलुज सर्किट, ब्यास सर्किट और ट्राइबल सर्किट में फैले लगभग सभी पर्वतीय पर्यटन स्थल, तीर्थस्थल और अन्य पर्यटन स्थल भी जनसंख्या के अधिक दबाव का सामना कर रहे हैं तथा राज्य में इनमें से किसी भी स्थान पर जनसंख्या के दबाव सहन कर सकने की क्षमता का आकलन नहीं किये जाने के कारण वे लगभग ढहने के कगार पर हैं.''

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