वक्फ प्रोपर्टी के रिजस्ट्रेशन बढ़ाने का मामला, सुप्रीम कोर्ट ने समय सीमा बढ़ाने से किया इनकार

जस्टिस दत्ता ने कहा कि यदि पोर्टल में दिक्कतें हैं तो इसके प्रमाण पेश किए जाएं.SG ने दावा किया कि बड़ी संख्या में वक़्फ़ पहले ही पंजीकृत हो चुके हैं.वरिष्ठ वकील एम.आर.शम्शाद ने तर्क दिया कि मुद्दा पंजीकरण नहीं, बल्कि पंजीकृत संपत्तियों के डिजिटाइज़ेशन का है और यह पहलू अंतरिम आदेश में नहीं देखा गया.

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नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने उम्मीद पोर्टल पर वक्फ प्रोपर्टी के रजिस्ट्रेशन की समयसीमा बढ़ाने से साफ इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर किसी कारण से रजिस्ट्रेशन नही हो पा रहा तो समय सीमा बढाने की मांग वक्फ ट्रिब्यूनल से की जा सकती है.याचिकाओ में कहा गया है कि इस पोर्टल पर वक़्फ प्रोपर्टी के रजिस्ट्रेशन के लिए 6 महीने का वक़्त दिया गया था.⁠लेकिन वक़्फ एक्ट पर अंतरिम फैसला आने के ही 5 महीने बीत गए.ऐसे में अब रजिस्ट्रेशन के लिए अर्जी देने में बहुत कम वक़्त रह गया है.इस समयसीमा को बढ़ाया जाना चाहिए.याचिकाकर्ताओं ने सर्वर मे हो रही समस्या और मुतवल्लियों की अनुपस्थिति का भी मुद्दा याचिकाकर्ताओं की तरफ से उठाया गया.

कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि यूनिफाइड वक़्फ़ मैनेजमेंट, एम्पावरमेंट, एफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट एक्ट की धारा 3B के तहत वक़्फ़ ट्रिब्यूनल को उपयुक्त मामलों में समय बढ़ाने का अधिकार है.जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने सभी आवेदनों का निस्तारण करते हुए आवेदकों को निर्देश दिया कि वे निर्धारित अवधि के भीतर संबंधित ट्रिब्यूनल्स से समय-विस्तार मांग सकते है.सुनवाई की शुरुआत में सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने दलील दी कि संशोधन 8 अप्रैल से लागू हुआ, पोर्टल 6 जून को बना, नियम 3 जुलाई को आए और एक्ट को लेकर अंतरिम आदेश 15 सितंबर को आया.छह महीने की समयसीमा बेहद कम है, क्योंकि सौ, डेढ़ सौ साल पुराने वक़्फ़ों में वक्फ की जानकारी मिल पाना कठिन है और बिना इन विवरणों के पोर्टल अपलोड स्वीकार नहीं करता. 

सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने भी पोर्टल में तकनीकी खामियों का हवाला देते हुए अतिरिक्त समय की मांग की.सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दिया कि धारा 3B के प्रावधान के अनुसार ट्रिब्यूनल समय बढ़ा सकता है, इसलिए हर वक़्फ़ अलग-अलग ट्रिब्यूनल में जाकर विस्तार मांग सकता है. SG ने कहा कि पोर्टल 6 जून से चालू है और अंतिम तिथि 6 दिसंबर होगी.कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि इससे 10 लाख मुतवल्ली अलग-अलग आवेदन करने को मजबूर होंगे.उन्होंने कहा कि 100 साल पुराने वक़्फ़ की डीड कैसे खोजी जाएगी? कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में ट्रिब्यूनल से ही राहत मिल सकती है.

जस्टिस दत्ता ने कहा कि यदि पोर्टल में दिक्कतें हैं तो इसके प्रमाण पेश किए जाएं.SG ने दावा किया कि बड़ी संख्या में वक़्फ़ पहले ही पंजीकृत हो चुके हैं.वरिष्ठ वकील एम.आर.शम्शाद ने तर्क दिया कि मुद्दा पंजीकरण नहीं, बल्कि पंजीकृत संपत्तियों के डिजिटाइज़ेशन का है और यह पहलू अंतरिम आदेश में नहीं देखा गया. एक अन्य पक्ष ने कहा कि कई राज्यों ने धारा 4 के तहत वक़्फ़ सर्वे ही पूरा नहीं किया है, इसलिए पंजीकरण लागू नहीं किया जा सकता है. एडवोकेट निज़ाम पाशा ने कहा कि छह महीने की अवधि संशोधन की तारीख से गिनी जानी चाहिए और वह 10 अक्टूबर को समाप्त हो चुकी है, इसलिए ट्रिब्यूनल समय आगे नहीं बढ़ा सकता.SG ने इसे गलत बताते हुए कहा कि समयसीमा 6 दिसंबर तक है. 

अंत में कोर्ट ने कहा कि धारा 3B के प्रावधान के अनुसार ट्रिब्यूनल समय बढ़ा सकता है. इसलिए सभी आवेदक अंतिम तिथि से पहले ट्रिब्यूनल से संपर्क करें.याचिकाओं का निस्तारण कर अदालत ने विस्तार देने से इंकार कर दिया.यह मामला वक्फ संशोधन एक्ट, 2025 से संबंधित है, जिसने सभी वक़्फ़ संपत्तियों जिसमें “वक़्फ़ बाय यूज़” भी शामिल—का उम्मीद पोर्टल पर अनिवार्य पंजीकरण लागू किया है. AIMPLB, सांसद असदुद्दीन ओवैसी सहित कई पक्षों ने समयसीमा बढ़ाने की मांग की थी.ओवैसी ने अपनी याचिका में कहा कि छह में से पांच महीने कोर्ट की सुनवाई में ही बीत गए और समय न बढ़ा तो पुराने वक़्फ़ों को धारा 3B और 36(10) के संयुक्त प्रभाव से अप्रत्याशित नुकसान झेलना पड़ सकता है.

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