क्या राज्य खनिज संपदा वाली जमीन पर टैक्स लगा सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट में 9 जजों की संविधान पीठ ने इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया और सभी पक्षकारों को तीन-तीन पेजों की लिखित दलील देने को कहा. 8 दिनों की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा. दरअसल राज्यों पर असर डालने वाले मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 9 जजों के संविधान पीठ ने सुनवाई की है. राज्यों के टैक्स लगाने के अधिकार से जुड़ी 85 याचिकाओं पर सुनवाई शुरू हुई है. कोर्ट को यह तय करना है कि क्या राज्य खनिज संपदा वाली जमीन पर टैक्स लगा सकते हैं? यह मामला 25 साल से लंबित है.
कोर्ट के फैसले से झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और उत्तर-पूर्व के खनिज समृद्ध राज्यों के कर राजस्व पर गंभीर असर पड़ सकता है.अदालत को टैक्स को लेकर केंद्र और राज्य सरकार की शक्तियों से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों की महत्वपूर्ण व्याख्या करनी है. ये मामला 2011 में 9 जजों की बेंच को भेजा गया था. तीन जजों की बेंच ने 9 जजों की बेंच को भेजे जाने के लिए 11 सवाल तैयार किए थे. इनमें महत्वपूर्ण टैक्स कानून के सवाल शामिल हैं. जैसे कि क्या 'रॉयल्टी' को टैक्स के समान माना जा सकता है? क्या राज्य विधानमंडल भूमि पर टैक्स लगाते समय भूमि की उपज के मूल्य के आधार पर टैक्स का उपाय अपना सकता है?
तीन जजों की पीठ ने इस मामले को सीधे 9 जजों के पास भेजा था, क्योंकि इस मामले में पांच जजों और सात जजों के संविधान पीठ के फैसलों के बीच विरोधाभास था. सुनवाई के दौरान केंद्र ने हलफनामा दाखिल कर खनिज पर रॉयल्टी से अधिक टैक्स लगाने का विरोध किया. राज्यों द्वारा रॉयल्टी से अधिक टैक्स लगाने की अनुमति ना देने को कहा.केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि खनिज समृद्ध राज्यों द्वारा लगाए गए टैक्स से मुद्रास्फीति बढ़ेगी. खनन क्षेत्र में FDI में बाधा आएगी. भारतीय खनिज महंगा हो जाएगा. व्यापार घाटे में वृद्धि और राज्यों के बीच विषम आर्थिक विकास के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार कम प्रतिस्पर्धी हो जाएगा.
खनन मंत्रालय ने कहा है कि चूंकि खनिज अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे बिजली, स्टील, सीमेंट, एल्यूमीनियम आदि के लिए महत्वपूर्ण कच्चा माल हैं, इसलिए कीमतों में कोई भी वृद्धि राज्यों द्वारा लगाए गए अतिरिक्त उपकर के कारण ये खनिज देश में मुद्रास्फीति को बढ़ावा देंगे. उदाहरण के लिए, यदि प्रमुख उत्पादक राज्यों में से एक द्वारा कोयले पर अतिरिक्त उपकर लगाया जाता है तो ऐसे राज्य से कोयला खरीदने वाले सभी राज्य बिजली शुल्क बढ़ाने के लिए मजबूर होंगे, जो सीधे मुद्रास्फीति को प्रभावित करेगा.